Gonda : 45 फीसद नवजात स्तनपान से रहते हैं वंचित
जानकी शरण द्विवेदी
गोंडा। स्तनपान शिशु की वृद्धि व विकास के लिए आदर्श व्यवहार है। स्तनपान शिशु का पहला टीकाकरण है, जो उसे मानसिक तथा शारीरिक रूप से स्वस्थ रखता है। माँ के दूध में पाए जाने वाले पोषक तत्व शिशु की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाते हैं तथा शिशु को बाल्यावस्था में होने वाली बीमारियों से बचाते हैं। मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ रश्मि वर्मा का कहना है कि जो माताएं बच्चे को सही समय पर और सही तरीके से भरपूर स्तनपान कराती हैं, उन्हें बच्चे को लेकर बहुत चिंता करने की जरूरत नहीं होती है। मां के दूध की अहमियत सर्व विदित है। यह बच्चे को रोगों से लड़ने की ताकत प्रदान करने के साथ ही उसे आयुष्मान भी बनाता है। एसीएमओ डॉ जय गोविन्द ने बताया कि समुदाय में स्तनपान को बढ़ावा देने के उद्देश्य से ही प्रति वर्ष एक से सात अगस्त के तक ‘विश्व स्तनपान सप्ताह’ मनाया जाता है। इसके लिए हर वर्ष अलग-अलग वैश्विक थीम का भी निर्धारण होता है। इस वर्ष 2022 का थीम ‘स्तनपान को बढ़ावा, शिक्षा एवं सहयोग’ रखा गया है। इसका उद्देश्य स्तनपान को बढ़ावा देने में समुदाय के प्रथम पंक्ति के कार्यकर्ता (आशा, एएनएम, आंगनबाड़ी), डॉक्टर, लैक्टेशन कार्यकर्ता व मातृ समिति के सदस्य समेत सभी लोगों की भागीदारी सुनिश्चित करना है। प्रभारी डीपीओ (आईसीडीएस) धर्मेंद्र गौतम ने कहा कि मां का दूध बच्चे को संक्रामक बीमारियों से महफूज रखता है। इसलिए स्तनपान के फायदे को जानना हर महिला के लिए बहुत जरूरी है। समुदाय में स्तनपान सम्बन्धी व्यवहार परिवर्तन लाने का एक अभिन्न अंग आंगनबाड़ी कार्यकर्त्री हैं। अतः स्तन पान व्यवहार के प्रोत्साहन हेतु यह अत्यंत आवश्यक है कि आंगनबाड़ी कार्यकर्त्री गर्भावस्था के तीसरे माह से बच्चे के जन्म से दो साल तक माँ तथा परिवार के संपर्क में रहे, जिससे इस व्यवहार की शुरुआत अच्छी तरह से हो और छः माह तक शिशु को केवल माँ का दूध प्राप्त हो। उन्होंने कहा कि स्तनपान सप्ताह के लिए आंगनबाड़ी कार्यकत्रियों का दायित्व निर्धारित किया गया है, जिसके अनुसार वह घरों का भ्रमण करते हुए स्तनपान के प्रति जागरुकता फैलाएंगी तथा स्तनपान के प्रति समुदाय की राय लेकर चेकलिस्ट भरेंगी।
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गौरतलब हो कि नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-4 के अनुसार, गोंडा जनपद में 13.9 प्रतिशत बच्चों को ही जन्म के एक घंटे के अन्दर स्तनपान कराया जा रहा था, लेकिन एनएफएचएस सर्वे-5 में चार फ़ीसदी के इजाफे के साथ यह आंकड़ा 17.9 प्रतिशत हो गया है। इतना ही नहीं, एनएफएचएस सर्वे-4 में मात्र 48 फ़ीसदी बच्चों को ही छः माह तक केवल स्तनपान कराया जा रहा था, इस आंकड़े में लगभग आठ फ़ीसदी की बढ़ोत्तरी हुयी है और एनएफएचएस सर्वे-5 के अनुसार, जनपद में 55.9 प्रतिशत बच्चों को छः माह तक केवल स्तनपान कराया जा रहा है। जिला महिला अस्पताल गोंडा में तैनात नवजात शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. पुरुषार्थ का कहना है कि शिशु के लिए स्तनपान अमृत के समान होता है। स्तनपान शिशु को निमोनिया, डायरिया और कुपोषण के जोखिम से भी बचाता है। मां के दूध में शिशु के लिए पौष्टिक तत्वों के साथ पर्याप्त पानी भी होता है। इसलिए छः माह तक शिशु को मां के दूध के अलावा कुछ भी न दें। ध्यान रहे कि रात में मां का दूध अधिक बनता है, इसलिए मां रात में अधिक से अधिक स्तनपान कराएं। दूध का बहाव अधिक रखने के लिए जरूरी है कि मां चिंता और तनाव से मुक्त रहें। डॉ. पुरुषार्थ के अनुसार, यदि केवल स्तनपान कर रहा शिशु 24 घंटे में छह से आठ बार पेशाब करता है, स्तनपान के बाद कम से कम दो घंटे की नींद ले रहा है और उसका वजन हर माह करीब 700 से 800 ग्राम बढ़ रहा है, तो इसका मतलब है कि शिशु को मां का पूरा दूध मिल रहा है।
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जानकी शरण द्विवेदी
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