Saturday, December 13, 2025
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भक्ति की खोज में आती हैं चार प्रमुख बाधाएं : रमेश भाई शुक्ल

श्री रामनाम जागरण मंच के तत्वावधान में आयोजित श्रीराम कथा में कथावाचक ने की किष्किंधा कांड की व्याख्या

अतुल भारद्वाज

गोंडा। मनुष्य जब भी भक्ति की खोज में निकलता है, तो उसके मार्ग में चार प्रकार की प्रमुख बाधाएं आती हैं। यही बाधाएं भक्ति (सीता) की खोज में निकले हनुमान जी के मार्ग में भी आई थीं। यह विचार अखिल भारतीय श्री रामनाम जागरण मंच के तत्वावधान में आवास विकास कॉलोनी में आयोजित श्रीराम कथा के दौरान शुक्रवार को अंतरराष्ट्रीय कथावाचक रमेश भाई शुक्ल ने व्यक्त किए।
उन्होंने बताया कि हनुमान जी के मार्ग की पहली बाधा मैनाक पर्वत था, जो सोने के पहाड़ का प्रतीक है। जैसे ही मनुष्य भक्ति की ओर बढ़ता है, धन-दौलत मिलने लगती है और वह उसी में उलझकर भटक जाता है। दूसरी बाधा सुरसा है, जो झूठी प्रशंसा की इच्छा का प्रतीक है। थोड़ी सी उन्नति होते ही व्यक्ति चापलूसों से घिर जाता है और मार्ग से भटक जाता है। तीसरी बाधा सिंहिका राक्षसी है, जो ईर्ष्या का प्रतीक है। आज का मनुष्य अपने दुख से अधिक दूसरे के सुख से दुखी रहता है। चौथी और सबसे बड़ी बाधा लंकिनी है, जो प्रवृत्ति का प्रतीक है और लक्ष्य के द्वार पर खड़ी रहती है। इसे शांत किए बिना भक्ति की प्राप्ति संभव नहीं है।

भक्ति पाने वाले में जरूर होना चाहिए ये चार लक्षण!
कथावाचक ने कहा कि भक्ति को पाने के लिए चार लक्षण अनिवार्य हैं। भक्त के मुख में सदैव राम नाम होना चाहिए। सीता की खोज में निकले हनुमान जी ने भगवान राम द्वारा दी गई राम नाम लिखी मुद्रिका अपने मुख में रखी थी। दूसरा लक्षण है-आंख बंद कर गुफा से शीघ्र बाहर निकलना, अर्थात संसार के जंजालों से स्वयं को मुक्त करना। तीसरा लक्षण अहंकार से मुक्ति है, जिसे शत योजन सागर का प्रतीक बताया गया है। चौथा लक्षण है बाण के समान आगे बढ़ना। बाण की अपनी कोई शक्ति नहीं होती, वह धनुषधारी की शक्ति से चलता है। उसी प्रकार जीवन में राम के रूप में एक सद्गुरु का होना आवश्यक है।

भक्ति की खोज में आती हैं चार प्रमुख बाधाएं : रमेश भाई शुक्ल
गोंडा की श्रीराम कथा में किष्किंधा कांड की कथा का रसास्वादन करते श्रद्धालु।

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भक्ति की खोज में आती हैं चार प्रमुख बाधाएं : रमेश भाई शुक्ल
गोंडा की श्रीराम कथा में किष्किंधा कांड की कथा का रसास्वादन करते श्रद्धालु।
बड़े-बड़े योद्धा होने के बावजूद श्रीराम ने हनुमान को ही क्यों दी अपनी अंगूठी?

उन्होंने स्पष्ट किया कि सुग्रीव की सेना में जामवंत, अंगद, नल-नील, द्विविद और मयंद जैसे महान योद्धा होने के बावजूद भगवान राम ने अपनी अंगूठी हनुमान जी को दी, क्योंकि वे जानते थे कि विश्वास के बिना भक्ति संभव नहीं है। हनुमान जी विश्वास के प्रतीक हैं। राम नाम लिखी अंगूठी मुख में रखने से तीन लाभ होते हैं व्यक्ति संकटों से उबर जाता है, कभी थकता नहीं और लक्ष्य के प्रति सदैव सजग रहता है। यही कारण था कि हनुमान जी को मैनाक, सुरसा, सिंहिका और लंकिनी जैसी बाधाएं रोक नहीं सकीं।
इससे पूर्व किष्किंधा कांड की कथा सुनाते हुए रमेश भाई शुक्ल ने बताया कि बाली वध के बाद राम ने सुग्रीव को राजा बनाया और सीता की खोज में सहायता मांगी, लेकिन चार माह तक सुग्रीव ने प्रभु की सुध नहीं ली। जब राम ने चेतावनी दी, तब सुग्रीव शरण में आया और वानर सेना को चारों दिशाओं में भेजा। उन्होंने प्रश्न उठाया कि जब जटायु ने दक्षिण दिशा में सीता हरण की बात बता दी थी, तो सभी दिशाओं में सेना भेजने की आवश्यकता क्यों पड़ी। इसका कारण यह था कि मायावी रावण राम को भ्रमित कर सकता था। एक माह की समय-सीमा इसलिए तय की गई ताकि खोज अनंत काल तक न खिंच जाए।

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गोंडा की श्रीराम कथा में किष्किंधा कांड की कथा का रसास्वादन करते श्रद्धालु।

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भक्ति की खोज में आती हैं चार प्रमुख बाधाएं : रमेश भाई शुक्ल
गोंडा में श्रीराम कथा स्थल पर पर्यावरण सुरक्षा यज्ञ में आहुति देते श्रद्धालु।
….जब अपनी बड़ाई सुनकर भी ठस से मस नहीं हुए हनुमान!

रमेश भाई शुक्ल ने जामवंत और हनुमान जी के संवाद का वर्णन करते हुए कहा कि जामवंत ने सागर लांघने के सामर्थ्य के बारे में समुद्र के तट पर बैठी वानर सेना से एक-एक कर पूछा किंतु कोई भी तैयार न हुआ। अंगद ने कहा कि चला तो जाऊंगा किंतु वापस लौटने में संदेह है। हनुमान जी एक कोने में चुपचाप बैठे थे। वह कोई जवाब नहीं दे रहे थे। जामवंत ने उन्हें झकझोरने की कोशिश की। उन्होंने कहा कि हे महाबली, आप क्यों चुप मारकर बैठे हो? कुछ आप भी बोलो किंतु हनुमान जी चुप, जैसे कुछ सुना ही नहीं। फिर बोले-आप तो पवन के पुत्र हैं और उन्हीं के समान बलवान भी हैं। फिर भी वे चुप रहे।
तुम बुद्धि, विवेक और विज्ञान की खान हो, फिर भी चुप रहे। संसार में कौन सा ऐसा कार्य है, जो तुमसे नहीं हो सकता। यह सुनकर भी चुप रहे। किंतु जैसे ही जामवंत ने कहा कि रामकाज के लिए तुम्हारा जन्म हुआ है। राम का नाम सुनते ही हनुमान जी पर्वताकार हो गए और सहायकों सहित रावण को मारकर त्रिकूट पर्वत को उखाड़कर ले आने को तैयार हो गए। इस कथा से हमें यह शिक्षा मिलती है कि जब वीरों के वीर महावीर अपनी ताकत याद दिलाए जाने के बाद भी शांत रहे किंतु राम का नाम सुनकर उनके बल पर कुछ भी कर ड़ालने को उद्यत हो गए। तो हमें भी यह समझना चाहिए कि हमारी अपनी व्यक्तिगत रूप से कोई हैसियत नहीं है। हम सबके कर्ता राम हैं।
कथा के दौरान राजीव रस्तोगी, केएम शुक्ल, हवलदार तिवारी, संजीव वर्मा, सभाजीत तिवारी, हरिओम पांडेय, डॉ. प्रभा शंकर द्विवेदी, ईश्वर शरण मिश्र, एसएन मिश्र, सूबेदार शुक्ल, आनंद ओझा, संजय मिश्र, आनंद सिंह, घनश्याम तिवारी सहित अनेक श्रद्धालु उपस्थित रहे।

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गोंडा में श्रीराम कथा स्थल पर पर्यावरण सुरक्षा यज्ञ में आहुति देते श्रद्धालु।

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भक्ति की खोज में आती हैं चार प्रमुख बाधाएं : रमेश भाई शुक्ल
गोंडा में श्रीराम कथा स्थल पर पर्यावरण सुरक्षा यज्ञ में आहुति देते श्रद्धालु।
रविवार को होगा गोंडा में चल रही कथा का अंतिम विश्राम

श्रीराम कथा के आयोजक निर्मल शास्त्री ने बताया कि कथा स्थल पर प्रतिदिन सुबह आठ बजे से 10 बजे तक पर्यावरण सुरक्षा यज्ञ का आयोजन भी किया जाता है। उन्होंने बताया कि रविवार को गोंडा में चल रही कथा का अंतिम विश्राम होगा। कथा के उपरांत भंडारे का आयोजन किया गया है।

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