13 अप्रैल से शुरू होगा नवरात्रि, जानें इसका महत्व
संदीप पाण्डेय
नवरात्रि हिंदुओं का एक प्रमुख पर्व है। नवरात्रि शब्द एक संस्कृत शब्द है, जिसका अर्थ होता है ’नौ रातें’। इन नौ रातों और दस दिनों के दौरान, शक्ति अर्थात देवी के नौ रूपों की पूजा की जाती है। नवरात्रि हिंदुओ का एक खास त्योहार है जिसे पूरे भारत में बड़े ही उत्साह के साथ मनाया जाता है। आगामी 13 अप्रैल मंगलवार से चैत्र नवरात्रि आरंभ हो रहे हैं। नौ दिवसीय चैत्र नवरात्रि पर्व, दुनिया भर में बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है। इस दौरान मां दुर्गा के नौ रूपों की आराधना की जाती है। यह पर्व चैत्र शुक्ल की प्रतिपदा से आरंभ होकर, नवमी तिथि को खत्म होता है। हालांकि कई लोग चैत्र नवरात्रि की समाप्ति चैत्र शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को पारणा के साथ करते हैं। पारणा के दौरान नौ दिनों तक चलने वाली चैत्र नवरात्रि पूजा की समाप्ति कर, अगले दिन यानी दशमी तिथि को देवी दुर्गा की षोडशोपचार पूजा करके, उनका विधि-विधान अनुसार विसर्जन कर व्रत खोला जाता है। पंडित लवकुश शुक्ल ने बताया कि इस साल 2021 में अष्टमी तिथि 20 अप्रैल, मंगलवार के दिन और नवमी तिथि 21 अप्रैल, बुधवार के दिन पड़ रही है। जबकि नवरात्रि पारणा की दशमी तिथि 22 अप्रैल, गुरुवार को पड़ेगी।
नवरात्रि का महत्व
वसंत की शुरुआत और शरद ऋतु की शुरुआत, जलवायु और सूरज के प्रभावों का महत्वपूर्ण संगम माना जाता है। इन दो समय मां दुर्गा की पूजा के लिए पवित्र अवसर माने जाते है। त्योहार की तिथियाँ चंद्र कैलेंडर के अनुसार निर्धारित होती हैं। नवरात्रि पर्व, माँ-दुर्गा की अवधारणा भक्ति और परमात्मा की शक्ति (उदात्त, परम, परम रचनात्मक ऊर्जा) की पूजा का सबसे शुभ और अनोखा अवधि माना जाता है। यह पूजा वैदिक युग से पहले, प्रागैतिहासिक काल से चला आ रहा है। ऋषि के वैदिक युग के बाद से, नवरात्रि के दौरान की भक्ति प्रथाओं में से मुख्य रूप गायत्री साधना का हैं। नवरात्रि में देवी के शक्तिपीठ और सिद्धपीठों पर भारी मेले लगते हैं। माता के सभी शक्तिपीठों का महत्व अलग- अलग हैं, लेकिन माता का स्वरूप एक ही है। प्रत्येक संवत्सर यानी साल में चार नवरात्र होते हैं जिनमें विद्वानों ने वर्ष में दो बार नवरात्रों में आराधना का विधान बनाया है। विक्रम संवत के पहले दिन अर्थात चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा यानी पहली तिथि से नौ दिन यानी नवमी तक नवरात्र होते हैं। ठीक इसी तरह 6 माह बाद आश्विन मास शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से महानवमी यानी विजयादशमी के एक दिन पूर्व तक देवी की उपासना की जाती है। सिद्धि और साधना की दृष्टि से से शारदीय नवरात्र को अधिक महत्वपूर्ण माना गया है। इस नवरात्र में लोग अपनी आध्यात्मिक और मानसिक शक्ति के संचय के लिए अनेक प्रकार के व्रत, संयम, नियम, यज्ञ, भजन, पूजन, योग-साधना आदि करते हैं। मुख्यतः शक्ति की उपासना आदिकाल से चली आ रही है। वस्तुतः श्रीमद् देवी भागवत महापुराण के अंतर्गत देवासुर संग्राम का विवरण दुर्गा की उत्पत्ति के रूप में उल्लेखित है। समस्त देवताओं की शक्ति का समुच्चय जो आसुरी शक्तियों से देवत्व को बचाने के लिए एकत्रित हुआ था, उसकी आदिकाल से आराधना दुर्गा-उपासना के रूप में चली आ रही है।
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