हिरासत में प्रताड़ना रोकने के लिए कानून बनाने की मांग पर सुनवाई टली
नई दिल्ली (हि.स.)। सुप्रीम कोर्ट ने हिरासत में प्रताड़ना और अमानवीय व्यवहार रोकने के लिए कानून बनाने की मांग करने वाली याचिका पर सुनवाई टाल दी है। जस्टिस एएम खानविलकर की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि इस मामले पर जिस बेंच ने आदेश जारी किया है वही बेंच सुनवाई करे।
सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की ओर से अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा कि हिरासत में प्रताड़ना और अमानवीय व्यवहार रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने 1997 में डीके बसु के मामले फैसला दिया था। सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता अश्विनी कुमार ने कहा कि उनकी याचिका सुप्रीम कोर्ट के उस दिशानिर्देश से बड़े दायरे की है। उसके बाद कोर्ट ने कहा कि इस याचिका पर मूल बेंच ही सुनवाई करेगी।
सुप्रीम कोर्ट ने 2 दिसम्बर, 2020 को हिरासत में प्रताड़ना और दुर्व्यवहार रोकने के लिए सीबीआई, एनआईए, ईटी, एनसीबी, डीआरआई, एसएफआईओ के दफ्तरों के साथ-साथ सभी राज्यों को अपने पुलिस स्टेशनों पर आडियो रिकार्डिंग के साथ सीटीटीवी कैमरे लगाने का निर्देश दिया था। जस्टिस आरएफ नरीमन की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि आने-जाने वाले द्वार समेत हर अहम स्थानों पर कैमरे लगाने और उसकी रिकार्डिंग डेढ़ साल तक संरक्षित रखी जाए। सुप्रीम कोर्ट ने पुलिस ज्यादती पर रोक लगाने के लिए अप्रैल 2018 में आदेश दिया था कि देशभर के सभी थानों में सीसीटीवी लगाए जाएं। सुनवाई के दौरान सिद्धार्थ दवे ने कहा था कि 15 राज्यों ने इस मामले पर अपना जवाब दाखिल किया है।