हाईकोर्ट : कोर्ट कर्मचारियों के धोखाधड़ी करने से जनता का अदालतों से भरोसा खत्म होता है

प्रयागराज (हि.स)। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि अदालत में नौकरी कर रहे कर्मचारियों की धोखाधड़ी का न्याय प्रणाली पर दूरगामी हानिकारक प्रभाव पड़ता है और न्यायपालिका में जनता का विश्वास कम हो जाता है।

कोर्ट में कार्यरत कर्मचारी की याचिका खारिज करते हुए न्यायालय ने इस बात पर भी जोर दिया कि मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, सोनभद्र के कार्यालय की सक्रिय मिलीभगत के बिना इतने बड़े पैमाने पर संगठित धोखाधड़ी को अंजाम नहीं दिया जा सकता है।

न्यायमूर्ति सिद्धार्थ और न्यायमूर्ति विनोद दिवाकर की पीठ ने कहा कि जब अदालत के कर्मचारी व्यक्तिगत लाभ के लिए अपने अधिकार का दुरुपयोग करते हैं तो यह न्यायिक निर्णयों की अखंडता से समझौता करता है और कानूनी कार्यवाही की वैधता पर सवाल उठाता है।

खंडपीठ ने कथित तौर पर अदालती दस्तावेजों में जालसाजी करने के आरोप में अदालत के एक कर्मचारी के खिलाफ आईपीसी की धारा 419, 420, 467, 468, 471, 120-बी के तहत दर्ज एफआईआर को रद्द करने और गिरफ्तारी पर रोक लगाने से इनकार करते हुए ये टिप्पणियां कीं।

याची सुरेश कुमार मिश्रा पर आरोप है कि उन्होंने मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, सोनभद्र की अदालत में वरिष्ठ सहायक के रूप में काम करते हुए अक्टूबर 2020 और मार्च 2023 के बीच एआरटीओ कर्मचारियों और अधिकारियों की मिलीभगत से धोखाधड़ी की। फर्जी रसीदों के आधार पर 304 जब्त वाहनों को रिलीज किया गया और अदालती कार्यवाही में धोखाधड़ी करके सरकारी खजाने को भारी नुकसान पहुंचाया गया।

मामले में एफआईआर दर्ज कराई गई। जांच के दौरान, याचिकाकर्ता सहित आठ व्यक्तियों की भूमिका सामने आई और इसलिए, उन सभी को आरोपित के रूप में सूचीबद्ध किया गया।

आठ में से दो लोगों को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है। दो को अंतरिम जमान मिल चुकी है। एक की मौत हो चुकी है और तीन आरोपितों की गिरफ्तारी अभी बाकी है।

आरोप था कि याचिकाकर्ता समेत तीनों आरोपित फरार हैं और जांच में सहयोग नहीं कर रहे हैं। इसलिए, पुलिस उनके आवास और अन्य संभावित ठिकानों पर छापेमारी कर रही है।

मामले में राहत की मांग करते हुए याचिकाकर्ता के वकील ने दलील दी कि याची वर्तमान मामले में स्वयं शिकायतकर्ता है और इसलिए उसे आरोपित के रूप में नहीं फंसाया जा सकता। यह भी तर्क दिया गया कि विशेष न्यायाधीश, पॉक्सो अधिनियम, सोनभद्र द्वारा की गई विभागीय जांच में उन्हें दोषमुक्त कर दिया गया था।

अदालत के समक्ष रखी गई पूरी सामग्री को ध्यान से देखने पर, पीठ यह मानने के लिए राजी नहीं हुई कि विवादित एफआईआर में लगाए गए आरोप और जांच के दौरान एकत्र की गई सामग्री में प्रामाणिकता की कमी है, जिससे पूरी कार्यवाही कानून के तहत दूषित हो गई है।

कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता भाग रहा है और पुलिस याचिकाकर्ता के संभावित ठिकानों पर छापेमारी कर रही है। पुलिस को गंभीर आशंका है कि याचिकाकर्ता सबूतों के साथ छेड़छाड़ कर सकता है और गवाहों को प्रभावित कर सकता है।

कोर्ट ने कहा चूंकि जांच प्रारंभिक चरण में है और याचिकाकर्ता की भूमिका अपराध को अंजाम देने में एक सरगना के रूप में सामने आई है, इसलिए, जांच के परिणाम की भविष्यवाणी करना और गलत विचारों के सवाल पर निष्कर्ष प्रस्तुत करना संभव नहीं है।

अदालत ने कहा कि याची के खिलाफ आरोप स्पष्ट रूप से एक संज्ञेय अपराध है, जो एफआईआर दर्ज करने और उस पर जांच को उचित ठहराता है। अदालत ने उसकी गिरफ्तारी पर रोक लगाने से इनकार कर दिया और जल्द से जल्द जांच पूरी करने के निर्देश के साथ याचिका खारिज कर दी गई।

हाईकोर्ट ने विशेष रूप से आईजी पुलिस, वाराणसी जोन को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि जांच अधिकारी कानून के तहत स्वीकार्य साक्ष्य एकत्र करने में सभी उपलब्ध वैज्ञानिक और फोरेंसिक सहायता का लाभ उठाएं।

आरएन/दिलीप

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