सात धातुओं से बना है मानव शरीर
– आयुर्वेदाचार्य डॉ. प्रेमनारायण मिश्र से बातचीत
– धातुओं के बढ़ने या घटने से ही होते हैं रोग : डॉ. प्रेमनारायण मिश्र
गोरखपुर (हि.स.)। मानव शरीर और स्वास्थ्य के लिए भारतीय दृष्टि से आयुर्वेद से जुड़े ग्रंथों की रचना हुई है। इनमें मानव शरीर के निर्माण करने वाले तत्वों में धातुओं की चर्चा है। आयुर्वेदाचार्य डॉ. प्रेमनारायण मिश्र से बातचीत हुई। इस बारे में उन्होंने आयुर्वेद में वर्णित धातुओं के बारे में खुलकर चर्चा की। सूक्ष्मता से उनकी बारीकियों को बताया। प्रस्तुत है बातचीत के प्रमुख अंश:-
सवाल: मानव शरीर के लिए धातुओं का क्या महत्व है?
जवाब: धातु, मानव शरीर का पोषण और निर्माण करते हैं। शरीर की संरचना में सहायक हैं। इसलिए इन्हें ”धातु” कहते हैं। आयुर्वेद में वर्णित इन सात धातुओं को एक निश्चित क्रम में रखा गया है। मानव शरीर की पूरी संरचना इनसे ही मिलकर हुई है। हर एक का अपना अलग महत्व है। इनका निर्माण भी पांच तत्वों (पंच महाभूत) से मिलकर होता है। हर एक धातु में किसी एक तत्व की अधिकता होती है।
सवाल: आयुर्वेद में कौन कौन सी धातुएँ बताई गयीं हैं?
जवाब: आयुर्वेद में सात प्रकार की धातुओं का वर्णन है। इनमें रस (प्लाज्मा), रक्त या खून (ब्लड), मांस या मांसपेशियां, मेद या वसा (फैट), अस्थि या हड्डियाँ, मज्जा (बोनमैरो) और शुक्र यानी प्रजनन संबंधी ऊतक शामिल हैं।
सवाल: धातुओं का निर्माण कैसे होता है। शरीर निर्माण में यह कैसे सहायक है?
जवाब: इसे ऐसे समझिये। हम खाना खाते हैं, वह पाचक अग्नि द्वारा पचने के बाद कई प्रक्रियाओं से गुजरता है। फिर, धातुओं में बदलता है। यह खाया हुआ भोजन आगे जाकर दो भागों में बंट जाता है। इन्हें ”सार” और ”मल” कहते हैं। सार यानी भोजन से मिलने वाले ”पोषक तत्व और ऊर्जा”। इससे हमारा शरीर ठीक ढंग से काम कर पाता है। दूसरा, ”मल” अर्थात भोजन के पचने के बाद जो अपशिष्ट बनता है, जिसका शरीर में कोई योगदान नहीं वह ”मल” के रूप में शरीर से बाहर निकलता है। भोजन का यही ”सार”, ”वायु” की मदद से ”खून” में पहुँचता है और फिर खून के माध्यम से यह पूरे शरीर में फैलकर धातुओं का निर्माण करता है। यहाँ यह समझाना जरूरी है कि पाचक अग्नि द्वारा पचने के बाद सबसे पहले ”रस अर्थात प्लाज्मा” में बदलता है। प्लाज्मा, ”खून” में और फिर खून से ”मांसपेशियां” बनती है। इसी तरह यह क्रम चलता रहता है और सबसे अंत में ”शुक्र” अर्थात ”प्रजनन संबंधी ऊतक” जैसे कि वीर्य, शुक्राणु आदि बनते हैं।
सवाल: तो क्या पाचक अग्नि ही महत्वपूर्ण है?
जवाब: बिलकुल, शरीर में पाचक अग्नि का ठीक होना बहुत ही ज़रूरी है। इन सभी धातुओं के निर्माण में ”रस” धातु (प्लाज्मा) ही मूल तत्व है।
यह भी जानें
– रस धातु का निर्माण पाचन तंत्र में होता है और फिर यह रस, रक्त द्वारा पूरे शरीर में फ़ैलता है। दोषों में गड़बड़ी होने पर धातुओं के स्तर में बदलाव होता है।
– दोष में असंतुलन से ”धातु” प्रभावित होती है, फिर, ”रोग” उत्पन्न होता है।
– जिस धातु के दूषित होने से रोग की उत्पत्ति होती है वह रोग, उसी धातु के नाम से जोड़कर बोला जाता है। जैसे रस धातु के दूषित होने से ”रसज रोग”। रस धातु का मुख्य काम तृप्ति करना है। यह संतुष्टि और प्रसन्नता प्रदान करता है। अपने से अगली धातु (रक्त) का पोषण करता है।
– ”रक्त” धातु की मदद से बाकी सभी अंगों को पोषण मिलता है। यह धातु रंग को निखारता है और बाकी इन्द्रियों से जो ज्ञान मिलता है वह भी रक्त के कारण ही संभव है। रक्त से आगे चलकर ”मांस धातु” बनती है।
– मांसपेशियों से शरीर को शक्ति मिलती है। ये शरीर के पूरे ढांचे को सुरक्षा प्रदान करता है।
– ”मेद धातु” (वसा) का मुख्य काम शरीर में चिकनाहट और गर्मी लाना है। यह शरीर को शक्ति, सुरक्षा, दृढ़ता व स्थिरता देता है।
– ”अस्थि धातु” यानी शरीर का ढांचा। यह हड्डियों से निर्मित होता है। इसके आधार पर शरीर व उसके अंगों के आकार का निर्धारण होता है और शरीर खड़ा रहता है।
– ”मज्जा धातु” यानी ””बोनमैरो”। यह हड्डियों के जोड़ों के बीच चिकनाई का काम करती है और उन्हें मजबूत बनाती है।
– ”शुक्र धातु” का सीधा संबंध शरीर में मौजूद ”प्रजनन संबंधी टिश्यू” से है। अर्थात वह सारी चीजें जो संतान उत्पत्ति में मदद करती हैं, शुक्र धातु के अंतर्गत आती हैं।
डॉ. आमोदकांत/सियाराम