समझने का विषय है ईश्वर
वीर विक्रम बहादुर मिश्र
आज ज्येष्ठ माह का प्रथम मंगलवार है. आइए जानें हनुमानजी ने श्री राम को ईश्वर के रूप में कैसे पहचाना? सुग्रीव ने हनुमानजी से कहा कि ब्रह्मचारी के रूप में जाकर देखो कि ये दोनों कौन हैं?
’धरि बटुरूप देखु तैं जाई,
कहेसि आय जिय सैन बुझाई’
सुग्रीव स्वयं को सांसारिकता से ओतप्रोत समझते हैं पर वे जानते हैं कि हनुमान जी उन जैसे न होकर श्रेष्ठ व्यक्तित्व के स्वामी हैं. तात्पर्य है कि जब खुद की आंखों पर विश्वास न हो तो उनपर विश्वास करना चाहिए जो विश्वसनीय और श्रेष्ठ हैं.हनुमानजी ने ब्राह्मण का रूप धारण किया और पर्वत से उतरकर दोनों राजकुमारों के समक्ष खड़े हो गये.विप्र का वेश इसलिए बनाया क्योंकि यदि ये दोनों बालि के भेजे होंगे या कोई दूसरे राज कुमार होंगे तो ब्राह्मण देखकर उनका क्रोध शांत हो जायगा.वे मुझे प्रणाम करेंगें तो मैं उन्हें समझाबुझाकर अपना बना लूंगा. पर यहां तो दोनों ने उन्हे प्रणाम ही नहीं किया. फिर हनुमानजी को लगा कि इनके व्यक्तित्व में विचित्र विरोधाभास है. क्षत्रिय दिख रहे हैं. विप्र को प्रणाम नहीं कर रहे हैं. कोमल पदधारी हैं. कठिन भूमि पर चल रहे हैं. सुंदर सुकोमल शरीर है और कड़ी धूप सहन कर रहे हैं. उन्होने फिर साफ साफ पूछ लिया कि आपका उद्देश्य क्या है? किसी को जानना है तो उसका उद्देश्य जानना चाहिए.
’को तुम्ह श्यामल गौर शरीरा,
क्षत्रिय रूप फिरहु वनबीरा.
कठिन भूमि कोमलपद गामी,
कवनहेतु वन विचरहु स्वामी.
मृदुलमनोहर सुंदर गाता,
सहत दुसह दुखआतप बाता.’
हनुमानजी को लगा कि कहीं ये परमेश्वर ही तो नहीं हैं. फिर उन्होंने स्पष्ट जानना चाहा कि आप ब्रह्मा विष्णु महेश इन तीनों में से कोई तो नहीं हैं. कहीं आप नर या नारायण अथवा दोनों तो नहीं हैं. इस पर भी कोई उत्तर न मिलते देख उन्होने पूछ लिया कि सम्पूर्ण सृष्टि के कारण संसार के तारनहार धरती का भार मिटाने वाले अखिलभुवनपति तो नहीं हैं आप?
’की तुम्ह तीन देव मंह कोऊ,
नरनारायण की तुम्ह दोऊ.
जगकारन तारन भव भंजन धरनी भार.
की तुम्ह अखिल भुवनपति लीन्ह मनुज अवतार.’
हनुमानजी की शंकाओं के उत्तर में श्री राम को चाहिए था कि वे ईश्वर तो थे ही उत्तर में सकारात्मक ढंग से सिर हिला देते.परंतु उन्होने उनकी सारी मान्यताओं का एक एक कर खंडन कर दिया. उन्होने कहा कि अरे हनुमान मैं ईश्वर कैसे हो सकता हूं. श्री राम ने कहा, हनुमान तुम तो ज्ञानी हो. जानते हो ईश्वर अजन्मा है और मैं तो पैदा किया हुआ हूं. मेरा जन्म हुआ है. तुम यह भी जानते हो कि ईश्वर पर किसी का आदेश नहीं लागू होता, जबकि मुझ पर पिता की आज्ञा लागू हुई है. मैं उनके आदेश पर वन आया हूं और कोई पिता अपने बेटे को ऐसे ही नहीं वन भेज देता, कोई न कोई कमी होती है, तभी वह ऐसा करता है. मैं कोई अच्छा आदमी.भी नहीं हूं.तुम यह भी जानते हो कि ईश्वर बहुत शक्तिशाली है और मैं इतना असहाय हूं कि मेरी पत्नी का राक्षसों ने अपहरण कर लिया है जिसकी खोज में लगा हुआ हूं. अब सोचो मैं ईश्वर कहां से हो सकता हूं.
’कोसलेस दसरथ के जाये,
हम पितु बचन मानि वन आये.
इहां हरी निसिचर वैदेही,
विप्र फिरहिं हम खोजत तेही.
आपन चरित कहा हम गाई,
कहहु विप्र निज कथा बुझाई.’
हनुमानजी श्री राम का चेहरा एकटक देखते रहे. फिर एकाएक उनके चरणों पर गिर पड़े. बोले, प्रभु दया करो पहचान गया, मेरी भूल क्षमा करो. श्री राम ने पूछा क्या पहचान गये? हनुमानजी ने कहा, जान गये आप ही ईश्वर हैं. श्री राम ने पूछा, मुझे ईश्वर मानने का तुम्हारा आधार क्या है? हनुमान जी ने उत्तर दिया कि प्रभु, जब आपने यह कहा कि अपना चरित्र मैंने गाकर सुना दिया. अपनी सुनाओ. तो मैं आपके ईश्वरत्व को समझ गया. क्योंकि जिसकी पत्नी का हरण हो गया हो, वह अपना चरित्र गाकर सुनाय,े यह संभव नहीं है. आप अभिनय कर रहे हैं. ईश्वर ही ऐसा कर सकता है. यह सामान्य व्यक्ति के वश की बात नहीं. हनुमानजी ने कहा कि आपको पहचानने में भूल इसलिए हुई कि मैं आपके समक्ष विप्र बनकर आया. मैं स्वयं अभिनय कर रहा था. इसलिए आपके अभिनय से भ्रमित हो गया. परमेश्वर का अभिनय तब पकड़ में आता है, जब खुद अभिनय से दूर हो. ईश्वर किसी के बताने का विषय नहीं, वह समझने का विषय है. किसकी कौन सी बात किसे ईश्वर की ओर मोड़ दे कहा नहीं जा सकता. हनुमानजी धरती की पीड़ा का.हरण करें.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।)