शारदीय नवरात्र : कालरात्रि के दर्शन पूजन के लिए उमड़े श्रद्धालु, गूंजा जयकारा
वाराणसी (हि.स.)। शारदीय नवरात्र में सातवें दिन मंगलवार को श्रद्धालुओं ने आदिशक्ति कालरात्रि के दरबार में हाजिरी लगाई। श्री काशी विश्वनाथ मंदिर परिक्षेत्र स्थित कालिका गली में माता रानी के दरबार में अलसुबह से ही श्रद्धालु नर—नारी पहुंचने लगे। श्रद्धालुओं ने कतारबद्ध होकर अपनी बारी आने पर दरबार में मत्था टेका। इस दौरान पूरा मंदिर परिक्षेत्र माता रानी के जयकार से गुंजायमान रहा। लोगों ने माता रानी से परिवार में वंश वृद्धि,सुख चैन के साथ देश में व्याप्त कोरोना संकट से निजात दिलाने के लिए गुहार लगाई। सातवें दिन ही श्रद्धालुओं ने दुर्गाकुण्ड स्थित कूष्माण्डा देवी,चौसट्टीघाट स्थित चौसट्ठी देवी, मां महिषासुर मर्दिनी मंदिर, काशी विश्वनाथ मंदिर परिसर स्थित मां अन्नपूर्णा मंदिर, संकठा मंदिर, माता कालरात्रि देवी मंदिर, तारा मंदिर, सिद्धेश्वरी मंदिर और कमच्छा स्थित कामाख्या मंदिर में भी हाजिरी लगाई।
आदि शक्ति का कालरात्रि स्वरूप शत्रुओं और दुष्टों का संहार करने वाला विकराल और रौद्र है। पुराणों के अनुसार माता के स्वरूप को चंड-मुंड और रक्तबीज सहित अनेकों राक्षसों का वध करने के लिए उत्पन्न किया गया था। देवी को कालरात्रि और काली के साथ चामुंडा के नाम से भी जाना जाता है। चंड-मुंड के संघार की वजह से मां के इस रूप को चामुंडा भी कहा जाता है। विकराल रूप में महाकाली की जीभ बाहर है। अंधेरे की तरह काला रंग, बाल खुले हुए गले में मुंडों की माला एक हाथ में खून से भरा हुआ पात्र, दूसरे में राक्षस का कटा सिर, हाथ में अस्त्र-शस्त्र । मान्यता है कि मां कालरात्रि का दर्शन करने मात्र से समस्त भय, डर और बाधाओं का नाश होता है। माता का वाहन गर्दभ है। माता का रूप भले ही विकराल और डरावना है। माता सदैव शुभफल प्रदान करती है। इसलिए इनका एक नाम “शुभंकरी भी है।
मां के चरणों में गुड़हल के फूल की माला, लाल चुनरी, नारियल, फल, मिष्ठान, सिंदूर, रोली, इत्र और द्रव्य अर्पित करना विशेष फलदायी माना गया है। मां के दर्शन-पूजन से उनके भक्तों की सारी मुरादें पूरी होती हैं। उधर,भोजूबीर पंचक्रोशी मार्ग पर स्थित मां दक्षिणेश्वरी काली का महानिशा पूजन रात में होगा इसके बाद दर्शन होगा। नवरात्र में घरों और देवी मंदिरों में गुग्गुल,धुप,अगरबत्ती,कपूर,लोबान के धुएं से माहौल आध्यात्मिक नजर आ रहा है।