(विश्व होम्योपैथी दिवस) रोग की जड़ पर प्रहार
योगेश कुमार गोयल
हर साल 10 अप्रैल को होम्योपैथी के जनक जर्मन मूल के महान चिकित्सक और उत्कृष्ट वैज्ञानिक डॉ. क्रिश्चियन फ्रेडरिक सैमुअल हैनीमैन की जयंती ‘विश्व होम्योपैथी दिवस’ मनाया जाता है। होम्योपैथी को संपूर्ण चिकित्सा प्रणाली के रूप में स्थापित करने का श्रेय डॉ. हैनीमैन को ही जाता है। इस दिवस के आयोजन का उद्देश्य चिकित्सा की इस अलग प्रणाली के बारे में लोगों में जागरुकता पैदा करने के साथ प्रत्येक व्यक्ति तक इसकी पहुंच की सफलता दर को आसानी से बेहतर बनाना है। 10 अप्रैल 1755 को जन्मे डॉ. हैनीमैन के पास एमडी की डिग्री थी पर उन्होंने बाद में अनुवादक के रूप में कार्य करने के लिए अपनी नौकरी छोड़ दी थी। उसके बाद उन्होंने अंग्रेजी, फ्रांसीसी, इतालवी, ग्रीक, लैटिन इत्यादि कई भाषाओं में चिकित्सा, वैज्ञान की पाठ्य पुस्तकों का अध्ययन किया । इसके बाद होम्योपैथी के रूप में दुनिया के सामने नई चिकित्सा पद्धति को रखा।
देश में प्रतिवर्ष केन्द्रीय आयुष मंत्रालय होम्योपैथी दिवस की थीम निर्धारित करता है और देशभर में यह विशेष दिवस के रूप में मनाया जाता है। विश्व होम्योपैथी दिवस के अवसर पर इस वर्ष डा. हैनीमैन की 268वीं जयंती मनाई जा रही है। इस दिवस के आयोजन का प्रमुख उद्देश्य भारत सहित दुनियाभर में होम्योपैथी औषधियों की सुरक्षा, गुणवत्ता और प्रभावकारिता को मजबूत करना, होम्योपैथी को आगे ले जाने की चुनौतियों और भविष्य की रणनीतियों को समझना, राष्ट्रीय नीतियों के विकास की रणनीति तैयार करना, अंतरपद्धति एवं अंतरराष्ट्रीय अनुसंधान सहयोग, उच्चस्तरीय गुणवत्तापरक चिकित्सा शिक्षा, प्रमाण आधारित चिकित्सा कार्य और विभिन्न देशों में होम्योपैथी को स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं में समुचित स्थान दिलाकर सार्वभौमिक स्वास्थ्य के लक्ष्य को प्राप्त करना है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन का भी मानना है कि वैकल्पिक और परम्परागत औषधियों को बढ़ावा दिए बगैर सार्वभौमिक स्वास्थ्य के लक्ष्य को प्राप्त नहीं किया जा सकता और वैकल्पिक चिकित्सा पद्धतियों में विश्व में होम्योपैथी का प्रमुख स्थान है। अपनी कुछ अलग ही विशेषताओं के कारण होम्योपैथी आज विश्वभर में 100 से भी अधिक देशों में अपनाई जा रही है। भारत तो होम्योपैथी के क्षेत्र में विश्व का अग्रणी देश है। दरअसल होम्योपैथी दवाओं को विभिन्न संक्रमित और गैर संक्रमित बीमारियों के अलावा बच्चों और महिलाओं की बीमारियों में भी विशेष रूप से प्रभावी माना जाता है।
होम्योपैथिक दवाओं के बारे में धारणा है कि इन दवाओं का असर रोगी पर धीरे-धीरे होता है लेकिन इस चिकित्सा प्रणाली की सबसे बड़ी विशेषता यही है कि यह रोगों को जड़ से दूर करती है और इन दवाओं के साइड इफैक्ट भी नहीं के बराबर होते हैं। होम्योपैथी दवाएं प्रत्येक व्यक्ति पर अलग तरीके से काम करती है और अलग-अलग व्यक्तियों पर इनका असर भी अलग ही होता है। होम्योपैथी चिकित्सकों की माने तो डायरिया, सर्दी-जुकाम, बुखार जैसी बीमारियों में होम्योपैथी दवाएं एलोपैथी दवाओं की ही भांति तीव्रता से काम करती हैं लेकिन अस्थमा, गठिया, त्वचा रोगों इत्यादि को ठीक करने में ये दवाएं काफी समय तो लेती हैं मगर इन रोगों को जड़ से खत्म कर देती हैं। होम्योपैथी के बारे में सरदार वल्लभभाई पटेल का कहना था कि होम्योपैथी को चमत्कार के रूप में माना जाता है।
अधिकांश होम्योपैथी दवाओं का असर रोगी पर कुछ धीमी गति से होता है जबकि एलोपैथी दवाएं रोगी पर तुरंत असर दिखाती हैं, इसीलिए हाम्योपैथी भले ही एलोपैथी जितनी लोकप्रिय न हो लेकिन दुनियाभर में यह उपचार की सबसे लोकप्रिय वैकल्पिक चिकित्सा पद्धित है। यही नहीं होम्योपैथिक उपचार सबसे सरल उपचार है, जो शरीर को अधिक प्राकृतिक उपचार प्रक्रिया की अनुमति देता है। होम्योपैथी दवाएं चिकित्सा का एक सुरक्षित और प्राकृतिक विकल्प प्रदान करती हैं, जो बिना किसी दुष्प्रभाव अथवा दवा के परस्पर क्रिया का कारण बनता है।
(लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)