विधि एवं न्याय : पुलिस के समक्ष अपराध स्वीकार करने पर सजा देना विधि विरुद्ध – हाईकोर्ट

630 किलो गांजा के आरोपियों की सजा रद्द

प्रयागराज (हि.स.)। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 630 किलो गांजा के आरोपियों को विशेष न्यायालय इलाहाबाद द्वारा सुनाई गयी सजा रद्द करते हुए उन्हें बरी कर दिया है।
कोर्ट ने कहा है कि इंटेलिजेंस अधिकारी के समक्ष अपराध स्वीकार करने के बयान को साक्ष्य नहीं माना जा सकता। गांजा बरामदगी व सैंपल जाँच के लिए भेजने में धारा 52ए नारकोटिक्स एक्ट की प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया। स्वतंत्र गवाह भी पेश नहीं किये गये। विचारण न्यायालय ने साक्ष्यों पर विचार किये बगैर पुलिस के सामने अपराध स्वीकार करने के आधार पर सजा सुना दी। जो सुप्रीम कोर्ट के तूफान सिंह केस के विधि सिद्धांत के विपरीत है।
यह फैसला न्यायमूर्ति अजित कुमार ने नजीबाबाद आजमगढ़ निवासी विजय कुमार उर्फ प्यारे लाल व विनोद कुमार की सजा के खिलाफ अपील को स्वीकार करते हुए दिया है। अपीलार्थी के वकील का कहना था कि नारकोटिक्स विभाग वाराणसी के इंटेलिजेंस अधिकारी कौशल कान्त मिश्र की सूचना पर टीम लेकर इलाहाबाद की ट्रांसपोर्ट कंपनी पर छापा मारा। कंपनी के दो कर्मचारियों की गवाह बनने की सहमति लेकर 20 प्लाई बाक्स बरामद किया। जिसमे 630 किलो गांजा भरा था। बाक्स के पास खड़े विजय कुमार के उस बयान पर कि गांजा विनोद कुमार के लिए लेने आये हैं, माल जब्त किया और 25 ग्राम का दो सेट शैंपल लेकर दिल्ली जांच को भेजा। दो दिन बाद जूट बैग में भरकर सील कर वाराणसी मालखाने में जमा कर दिया। चार्जशीट के बाद विशेष न्यायालय ने आरोपियों को सजा सुनाई। जिसे अपील मे चुनौती दी गयी थी।
अधिवक्ता का कहना था कि स्वतंत्र गवाह व जब्त माल कोर्ट में पेश नहीं किये गये। बैग को सील करने का गवाह भी पेश नहीं किया। पुलिस के सामने अपराध स्वीकार करने के बयान को आधार मानकर सजा सुनाई गयी। अधिनियम की धारा 52ए का पालन नहीं किया गया। बिना साक्ष्य के दोषी करार दिया गया, जो विधि विरूद्ध होने के करण रद्द होने योग्य है।

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