विधि एवं न्याय : पति की हत्या की आरोपी पत्नी को बेटी की अभिरक्षा देने से इंकार, याचिका खारिज
अभिरक्षा देते समय बच्चे का हित सर्वोपरि – हाईकोर्ट
प्रयागराज (हि.स.)। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि बच्चे की अभिरक्षा सौंपते समय हमेशा बच्चे का हित देखा जायेगा। कोर्ट इसी आधार पर फैसला करेगी।
कोर्ट ने अपने पति की हत्या मामले में आरोपी याची पत्नी को दो साल की बेटी की अभिरक्षा सौपने से इंकार कर दिया है। बच्ची अपने बाबा के साथ रह रही है। मां के खिलाफ आपराधिक केस चल रहा है। कोर्ट ने कहा है कि यदि संदेह का लाभ देते हुए याची बरी होती है तो वह सक्षम अदालत में अपनी बेटी की अभिरक्षा अर्जी दे सकती है और कोर्ट नियमानुसार आदेश देगी। यह आदेश न्यायमूर्ति जेजे मुनीर ने मुम्बई की ज्ञानमती कुशवाहा की बंदीप्रत्यक्षीकरण याचिका को खारिज करते हुए दिया है।
याची का कहना था कि उसने कृष्ण कुशवाहा से लव मैरिज की थी। परिवार नाखुश था। 28 मई 2017 को बेटी दृशा पैदा हुई। सभी मुम्बई में रहते थे। याची के पति 11 मई 18 अपने पैतृक निवास झांसी आये। 13 मई 18 को मामा कमल कुशवाहा का फोन आया कि कृष्ण कुशवाहा की मौत हो गयी है। जब वह झांसी आयी तो उसे थाने ले जाया गया, जहां पुलिस ने पति की हत्या के आरोप में गिरफ्तार कर लिया। 11 सितम्बर 18 को जमानत पर छूटी और अपनी बेटी की अभिरक्षा मांगी। जो उसके बाबा सुरेश कुशवाहा के पास है। पुलिस को भी सूचना दी। कोई कार्रवाई न होने पर यह याचिका दाखिल की थी। कोर्ट ने अपराध में लिप्तता पर बच्चे के हित को देखते हुए राहत देने से इंकार कर दिया है।