वाराणसी: रत्नों के परीक्षण के लिए काहिवि में स्थापित हो रही अत्याधुनिक प्रयोगशाला

– सेन्ट्रल डिसकवरी सेन्टर में बनाई जा रही है परीक्षण सुविधा

– शिक्षा व उद्योग जगत के बीच सहयोग का बेहतरीन उदाहरण

वाराणसी (हि.स.)। रत्न और अन्य कीमती पत्थरों को लोग शौक से ही नहीं, ग्रह नक्षत्र को ठीक करने के साथ आभूषणों के तौर पर पहनते हैं। ऐसे में रत्न व कीमती पत्थर न केवल व्यावसायिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण हैं, अपितु ज्योतिष के लिहाज़ से भी अह्म है। शुद्ध,असली तथा नकली रत्न की पहचान इस उद्योग से जुड़े व्यापारियों के साथ लोगों के लिए भी जरूरी है। इन पहुलूओं को ध्यान में रख अब काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में रत्नों के परीक्षण की अत्याधुनिक प्रयोगशाला स्थापित की जायेगी।

रत्न उद्योग और व्यवसाय में कई छोटे और मध्यम उद्यम (एसएमई ) शामिल होते हैं। ऐसे में अधिकांश रत्न परीक्षण प्रयोगशालाएं पश्चिमी भारत के मुंबई, सूरत, अहमदाबाद आदि शहरों में स्थित हैं। पूर्वी उत्तर प्रदेश में ऐसी विश्वसनीय परीक्षण सुविधाओं की कमी है। वैज्ञानिक पद्धति से रत्नों का प्रमाणीकरण असली और नकली रत्नों के बीच अंतर करने में मदद करता है तथा आम जनता के मन में विश्वास पैदा करता है।

देश के इस भाग में एक आधुनिक व भरोसेमंद रत्न परीक्षण प्रयोगशाला की स्थापना की आवश्यकता लंबे समय से महसूस की जा रही थी। इसी क्रम में विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी), भारत सरकार, द्वारा स्वीकृत साथी (Sophisticated Analytical and Technical Help Institut) योजना के तहत प्राप्त अनुदान के दूसरे चरण में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय(काहिवि) स्थित सेन्ट्रल डिसकवरी सेन्टर में अत्याधुनिक रत्न परीक्षण और अनुसंधान प्रयोगशाला स्थापित की जा रही है।

रत्न की सटीक पहचान और गुणवत्ता में अक्सर एक से अधिक तकनीकें शामिल होती है, इसलिए साथी योजना के अंतर्गत 3.75 करोड़ रुपये के निवेश के साथ इस रत्न परीक्षण सुविधा में अत्याधुनिक मशीनें स्थापित की जा रही हैं। इनमें एफटीआईआर (Fourier transformation infra-red spectroscope) लेजर रमन स्पेक्ट्रोस्कोपी, ईडीएक्सआरएफ (Energy Dispersive X-ray Fluorescence Spectrometer), टेबल टॉप एक्सआरडी (X-ray Diffractmeter), यूवी-विज़-एनआईआर (Ultra violet, visible and near infra-red) -स्पेक्ट्रोमीटर, दूरबीन, ध्रुवीकरण माइक्रोस्कोप एवं लेजर कटर जैसे कई आधुनिक परिष्कृत उपकरण शामिल हैं। इनमें से प्रत्येक उपकरण रत्न के विभिन्न पहलुओं जैसे संरचना, रसायन, रंग, समावेश आदि की पहचान के लिए अलग-अलग उद्देश्यों की पूर्ति करते हैं।

प्रो. त्रिपाठी ने कहा कि गुणवत्ता परीक्षण और रत्नों के व्यापार से जुड़े विविध विषयों व चुनौतियों को बेहतर ढंग से समझने व उनके इस प्रयोगशाला के माध्यम से प्रभावी समाधान खोजने के उद्देश्य से उद्योग प्रतिनिधियों व बीएचयू के भू-विज्ञान विशेषज्ञों के एक संवाद कार्यक्रम का आयोजन भी आगामी 27 अप्रैल को किया जा रहा है। सेन्ट्रल डिसकवरी सेन्टर में अपराह्न 3.30 बजे प्रस्तावित इस संवाद में प्रतिभागिता के लिए रत्न की गुणवत्ता के परीक्षण में रुचि और अनुभव रखने वाले लोग शामिल होंगे।

श्रीधर

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