लुप्त हो रहे गोरखपुर के पनियाला को जीआई टैग शीघ्र

– पनियाला फल के संरक्षण को जियोग्राफिकल इंडिकेशन (जीआई) टैगिंग की आवेदन प्रक्रिया जारी

– टेराकोटा के बाद गोरखपुर का दूसरा जीआई सर्टिफिकेशन वाला फल होगा पनियाला

गोरखपुर(हि.स.)। औषधीय गुणों से भरपूर लुप्त प्राय हो चुके गोरखपुर के पनियाला के दिन बहुरने वाले हैं । योगी आदित्यनाथ की उत्तर प्रदेश की सरकार ने इसको खास बनाने की दिशा में ठोस कदम बढ़ा दिया है। जब यह खास होगा तो किसानों के दिन भी बहुरेंगे। पनियाला फल के संरक्षण को जियोग्राफिकल इंडिकेशन (जीआई) टैगिंग की आवेदन प्रक्रिया जारी की गयी है। यदि जीआई सर्टिफिकेशन की प्रक्रिया पूरी हुई तो टेराकोटा के बाद गोरखपुर का दूसरा जीआई सर्टिफिकेशन वाला उत्पाद पनियाला ही होगा।

हॉर्टिकल्चर विशेषज्ञ पद्मश्री डॉ. रजनीकांत के मुताबिक उत्तर प्रदेश के जिन खास 10 उत्पादों की जियोग्राफिकल इंडिकेशन (जीआई) पंजीकरण प्रक्रिया शुरू हुई है, उनमें गोरखपुर का पनियाला फल भी है। नाबार्ड के वित्तीय सहयोग से गोरखपुर के एक एफपीओ और ह्यूमन वेलफेयर एसोसिएशन के तकनीकी मार्गदर्शन में इन सभी उत्पादों का आवेदन जीआई पंजीकरण के लिए चेन्नई भेजा गया है। जीआई टैग मिलने पर यह गोरखपुर का दूसरा उत्पाद होगा। गौरतलब है कि इससे पहले वर्ष 2019 में गोरखपुर टेराकोटा को जीआई टैग मिल चुका है।

पनियाला के लिए संजीवनी साबित होगी जीआई

औषधीय गुणों से भरपूर पनियाला के लिए जीआई टैगिंग संजीवनी साबित होगी। इससे लुप्तप्राय हो चले इस फल की पूछ बढ़ जाएगी। सरकार द्वारा इसकी ब्रांडिंग से भविष्य में यह भी टेरोकोटा की तरह गोरखपुर का ब्रांड होगा।

क्या है जीआई टैग

जीआई टैग किसी क्षेत्र में पाए जाने वाले कृषि उत्पाद को कानूनी संरक्षण प्रदान करता है। जीआई टैग द्वारा कृषि उत्पादों के अनाधिकृत प्रयोग पर अंकुश लगाया जा सकता है। यह किसी भौगोलिक क्षेत्र में उत्पादित होने वाले कृषि उत्पादों का महत्व बढ़ा देता है। अंतर्राष्ट्रीय बाजार में जीआई टैग को एक ट्रेडमार्क के रूप में देखा जाता है। इससे निर्यात को बढ़ावा मिलता है, साथ ही स्थानीय आमदनी भी बढ़ती है तथा विशिष्ट कृषि उत्पादों को पहचान कर उनका भारत के साथ ही अंतर्राष्ट्रीय बाजार में निर्यात और प्रचार-प्रसार करने में आसानी होती है।

पूर्वांचल के इन जिलों के किसान होंगे लाभान्वित

गोरखपुर, देवरिया, कुशीनगर, महराजगंज, सिद्धार्थनगर, बस्ती, संतकबीरनगर, बहराइच, गोंडा और श्रावस्ती के बागवानों को भी मिलेगा। वजह, ये सभी जिले समान एग्रोक्लाईमेटिक जोन (कृषि जलवायु क्षेत्र) में आते हैं। इन जिलों के कृषि उत्पादों की खूबियां भी एक जैसी होंगी।

चार पांच दशक पहले तक मिलते थे पेड़ व फल

पनियाला के पेड़ 04-05 दशक पहले तक गोरखपुर में बहुतायत में मिलते थे। लेकिन अब यह लगभग लुप्तप्राय हैं। यूपी स्टेट बायोडायवरसिटी बोर्ड की ई-पत्रिका के अनुसार मुकम्मल तौर पर यह ज्ञात नहीं है कि यह पेड़ किस क्षेत्र का है? लेकिन बहुत संभावना है कि यह मूलरूप से उत्तर प्रदेश का ही है।

जड़ से लेकर फलों तक में एंटीबैक्टीरियल गुण

वर्ष 2011 में एक हुए शोध के अनुसार इसके पत्ते, छाल, जड़ों एवं फलों में एंटी बैक्टिरियल प्रॉपर्टी होती है। इस कारण इस फल के इस्तेमाल से पेट के कई रोगों में लाभ मिलता है। स्थानीय स्तर पर पेट के कई रोगों, दांतों एवं मसूढ़ों में दर्द, इनसे खून आने, कफ, निमोनिया और खरास आदि में भी इसका प्रयोग किया जाता रहा है। यह फल, लीवर के रोगों में भी उपयोगी हैं। फल को जैम, जेली और जूस के रूप में संरक्षित कर लंबे समय तक रखा जा सकता है। लकड़ी, जलावन और कृषि कार्यो के लिए भी उपयोगी है।

आर्थिक महत्व भी है

परंपरागत खेती से पनियाला अधिक लाभ देता है। कुछ साल पहले करमहिया ग्रामसभा के करमहा में पारस निषाद के घर यूपी स्टेट बायो डायवरसिटी बोर्ड के आर. दूबे गये थे। पारस के पास पनियाला के नौ पेड़ थे। अक्टूबर में आने वाले फल के दाम उस समय प्रति किग्रा 60-90 रुपये थे। प्रति पेड़ से उस समय उनको करीब 3300 रुपये आय होती थी। अब तो ये दाम दोगुने या इससे अधिक हैं। लिहाजा आय भी इसी अनुरूप बढ़ी होगी। खास बात ये है कि पेड़ों की ऊंचाई करीब नौ मीटर होती है। लिहाजा इसका रखरखाव भी आसान होता है।

गोरखपुर के वरिष्ठ चिकित्सक डॉ. आलोक गुप्ता कहते हैं कि पनियाला गोरखपुर का विशिष्ट फल है। शारदीय नवरात्र के आसपास यह बाजार में आता है। सीधे खाएं तो इसका स्वाद मीठा एवं कसैला होता है। हथेली या उंगलियों के बीच धीरे-धीरे घुलाने के बाद खाएं तो एक दम मीठा हो जाता है।

डॉ. आमोदकांत/सियाराम

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