राजस्थान को लेकर सतर्क है कांग्रेस आलाकमान
रमेश सर्राफ धमोरा
राजस्थान कांग्रेस में चल रहे घटनाक्रम को लेकर कांग्रेस आलाकमान पूरी तरह से सतर्क नजर आ रहा है। कांग्रेस कार्यकारी अध्यक्ष सोनिया गांधी की राजस्थान पर पूरी नजर है। जिस तरह से 25 सितंबर को दिल्ली से आए कांग्रेस के केंद्रीय पर्यवेक्षकों मल्लिकार्जुन खड़गे व अजय माकन के सामने कांग्रेस विधायकों ने प्रदर्शन किया था, उससे पार्टी में चल रही अंदरूनी फूट उजागर हो गई थी। जयपुर की घटना से कांग्रेस आलाकमान सकते में आ गया था। उस घटना से कांग्रेस पार्टी पूरे देश में एकबारगी बैकफुट पर नजर आने लगी थी। इसीलिए कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने राजस्थान गए पार्टी पर्यवेक्षकों से पूरे घटनाक्रम की लिखित रिपोर्ट ली थी। ताकि जरूरत पड़ने पर उसी के मुताबिक कार्रवाई की जा सके।
पर्यवेक्षकों की रिपोर्ट पर ही गहलोत समर्थक तीन नेताओं शांति धारीवाल, महेश जोशी, धर्मेंद्र राठौड़ को कांग्रेस अनुशासन समिति द्वारा कारण बताओ नोटिस जारी किया गया। हालांकि अभी कांग्रेस अनुशासन समिति ने कारण बताओ नोटिस की कार्यवाही को ठंडे बस्ते में डाल रखा है। कांग्रेस अनुशासन समिति के सचिव तारिक अनवर द्वारा हाल ही में दिये गये बयान से तो लगता है कि कारण बताओ नोटिस पर शायद ही कोई कार्रवाई हो।
मगर कांग्रेस पर नजर रखने वाले राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इसे तूफान आने से पहले की शान्ति भी समझा जा सकता है। राजस्थान के घटनाक्रम से कांग्रेस पार्टी का अनुशासन तार-तार हो गया था। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी इस बात से पूरी तरह वाकिफ हैं कि यदि पार्टी में एक बार अनुशासन भंग हो गया तो वैसी घटनाएं दूसरी जगह भी होने लगेगी। उनको रोकने के लिए कड़े अनुशासनात्मक कदम उठाए जाने जरूरी है। ताकि अन्य कहीं ऐसी घटना की पुनरावृत्ति ना हो पाए। इसी बात को लेकर सोनिया गांधी अपने निकट सहयोगियों से भी परामर्श कर चुकी हैं।
राहुल गांधी द्वारा की जा रही भारत जोड़ो यात्रा में शामिल होने के लिए कर्नाटक पहुंची सोनिया गांधी राजस्थान के घटनाक्रम पर राहुल गांधी से भी विस्तार से चर्चा की है। बताया जाता है कि उस दौरान उनके साथ राहुल गांधी के विश्वस्त पार्टी के संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल भी मौजूद थे। इस प्रकरण में वेणुगोपाल की राय भी काफी महत्वपूर्ण होगी।
कांग्रेस में राष्ट्रीय अध्यक्ष के निर्वाचन की प्रक्रिया चल रही है। कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव के दौरान सोनिया गांधी किसी भी तरह का महत्वपूर्ण फैसला करने से बच रही है। हाल ही में सोनिया गांधी ने उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी का अध्यक्ष व क्षेत्रीय अध्यक्षों की नियुक्तियां की थी। जिस पर अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ रहे शशि थरूर ने आपत्ति जताकर कांग्रेस के चुनाव अधिकारी मधुसूदन मिस्त्री को चुनावी प्रक्रिया संपन्न होने तक किसी भी प्रकार के नीतिगत फैसले लेने से रोकने की मांग की थी। उस कारण से सोनिया गांधी राजस्थान को लेकर आगे नहीं बढ़ रही हैं।
सोनिया गांधी का मानना है कि मल्लिकार्जुन खड़गे का कांग्रेस का अगला अध्यक्ष बनना तय है। मलिकार्जुन खड़गे स्वयं राजस्थान में कांग्रेस के पर्यवेक्षक बन कर गए थे। इस कारण वह व्यक्तिगत रूप से पूरे घटनाक्रम से वाकिफ हैं। ऐसे में राजस्थान पर जो भी फैसला हो वह मल्लिकार्जुन खड़गे के माध्यम से ही करवाया जाए। ताकि उनके ऊपर समानांतर रूप से काम करने का आरोप नहीं लग सके।
राजस्थान में गहलोत समर्थक कई मंत्रियों ने राजस्थान के प्रभारी राष्ट्रीय महासचिव अजय माकन पर भी सचिन पायलट का पक्ष लेने का आरोप लगाया था। गहलोत समर्थक मंत्री चाहते हैं कि राजस्थान से अजय माकन को हटाकर उनके स्थान पर किसी अन्य वरिष्ठ नेता को राजस्थान का प्रभारी बनाया जाए जो निष्पक्षता से काम करें। लेकिन गहलोत समर्थकों को इस बात को भी नहीं भूलना चाहिए कि 25 सितंबर के घटनाक्रम के दौरान माकन के साथ मल्लिकार्जुन खड़गे भी दो दिनों तक जयपुर में विधायकों से मिलने का इंतजार करते रहे थे। मगर एक भी गहलोत समर्थक विधायक ने पर्यवेक्षकों से मिलकर अपनी राय व्यक्त नहीं की थी।
इस घटना से मल्लिकार्जुन खड़गे भी काफी क्षुब्ध नजर आए थे। दिल्ली आकर उन्होंने भी कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को लिखित में इस घटना की विस्तृत जानकारी दी थी। मल्लिकार्जुन खड़गे कांग्रेस के सबसे वरिष्ठ नेता हैं। पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के बाद उनकी जिम्मेदारी और अधिक बढ़ जाएगी। उनके नेतृत्व में यदि कोई पार्टी का नेता अनुशासनहीनता करता है तो अनुशासन बनाए रखने की पूरी जिम्मेदारी भी उन्हीं की होगी। राजस्थान में जिस तरह से उनके सामने पार्टी का अनुशासन भंग किया गया वैसी स्थिति फिर कभी ना हो। इसकी व्यवस्था भी उनको ही करनी होगी। यदि अनुशासनहीनता करने वाले किसी भी नेता या पार्टी कार्यकर्ता को दंडित नहीं किया जाता है तो भविष्य में अनुशासन बनाए रखना मुश्किल हो सकता है।
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत जिस तरह योजनाबद्ध तरीके से कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने से दूर हो गए थे। वैसे ही वह अपने समर्थक विधायकों को गोलबंद कर आलाकमान से सशर्त मुख्यमंत्री पद छोड़ने की बात कह रहे हैं। गहलोत किसी भी सूरत में सचिन पायलट को मुख्यमंत्री नहीं बनने देना चाहते हैं। पायलट को मुख्यमंत्री बनने से रोकने के लिए गहलोत किसी भी स्तर तक जाकर जोखिम उठाने को तैयार हैं। गहलोत को पता है कि उनके पास 80 से अधिक विधायकों का समर्थन है। ऐसे में आलाकमान उनकी मर्जी के खिलाफ किसी दूसरे को मुख्यमंत्री बनाता है तो पार्टी में विद्रोह की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
कांग्रेस आलाकमान को भी पता है कि यदि गहलोत को मुख्यमंत्री पद से हटाने में जबरदस्ती या किसी तरह की जल्दबाजी की गई तो उसका खामियाजा पार्टी को उठाना पड़ सकता है। आज राजस्थान में 13 निर्दलीय व पांच अन्य दलों के विधायकों का भी समर्थन गहलोत को मिला हुआ है। इस बार मुख्यमंत्री रहते गहलोत ने अपनी स्थिति इतनी मजबूत कर ली कि उनके समक्ष कांग्रेस में कोई दूसरा नेता खड़ा नहीं हो सकता है। यदि कोई खड़ा होता भी है तो उसकी स्थिति पायलट जैसी बना दी जाती है। गहलोत ने बड़ी ही चतुराई से पायलट को बागी बनाकर पार्टी से बर्खास्त करवा दिया था। अब उस पर गद्दार का ठप्पा लगा दिया है। जबकि गहलोत के इशारे पर उनके समर्थकों द्वारा पार्टी पर्यवेक्षकों से की गई उपेक्षा के प्रकरण को ठंडा करने के लिए गहलोत ने दिल्ली जाकर सोनिया गांधी से सार्वजनिक रूप से क्षमा मांग कर प्रकरण को ठंडे बस्ते में डलवा दिया।
कांग्रेस आलाकमान को राजस्थान में कोई भी कदम उठाने से पहले पूरी तैयारी करनी होगी तथा अपने स्टैंड पर मजबूती से डटे रहना होगा। तभी पार्टी आलाकमान का झंडा बुलंद हो पाएगा। वरना तो इस कार्यकाल में अशोक गहलोत अपने किसी विरोधी नेता को शायद ही सत्ता के नजदीक लगने दे।
जयपुर में आयोजित इन्वेस्टर मीट में उद्योगपति गौतम अडानी को बुलाकर गहलोत ने आलाकमान को दिखा दिया है कि राहुल गांधी चाहे अंबानी, अडानी को कितना भी कोसें, उनको उनसे भी कोई परहेज नहीं है। समय आने पर गहलोत किसी की भी मदद लेने से नहीं चूकेंगे। इस समय सचिन पायलट जहां पूरी तरह चुप्पी साधे हुए हैं। वहीं, मुख्यमंत्री गहलोत लगातार राजस्थान के विभिन्न स्थानों का दौरा कर लोगों से अगले बजट के लिए प्रस्ताव मांग रहे हैं। गहलोत का कहना है कि प्रदेश का अगला बजट भी मैं ही पेश करूंगा। मुख्यमंत्री पद को लेकर इसे अशोक गहलोत का अति आत्मविश्वास ही कहा जा सकता है।
(लेखक हि. स. से संबद्ध हैं।)