राक्षस चण्ड और मुण्ड की मृत्यु कैसे हुई?
धर्म-कर्म डेस्क
राक्षस चण्ड और मुण्ड बहुत बलशाली राक्षस थे जिनसे इन्द्र भी थर-थर कांपते थे। लेकिन वे शुम्भ और निशुंभ के सेनापति थे। शुम्भ और निशुंभ को जब यह पता चला कि हिमालय में एक ऐसी सुन्दर देवी है, जिसकी सुंदरता सारे विश्व से परे है। इसलिए उन्होंने चण्ड और मुण्ड को यह आज्ञा दी कि उस देवी को प्यार से समझाओ और यहां लेकर आओ। अगर वह प्यार से न माने तो घसीटकर ले आओ। उन्हीं की आज्ञा को पूरा करने के लिए वे हिमालय पर्वत पर पहंचे। जैसे ही देवी ने उन्हें देखा वे मन्द-मन्द मुस्कराने लगीं। उन्हें देखकर दैत्य आगे बढे। किसी ने धनुष तान लिया, किसी ने तलवार संभाले और कुछ लोग देवी के पास आकर खड़े हो गये और उन्हें जबरदस्ती ले जाने के लिए उनकी और बढ़े। तब अम्बिका ने उन पर बड़ा क्रोध किया। उस समय क्रोध के कारण उनका मुख काला पड़ गया। ललाट में भौंहें टेढ़ी हो गयीं और वहां से तुंरत विकारल मुखी काली प्रकट हुईं, जो तलवार और फरसा लिये हुए थीं। उन्हांने विचित्र कपड़े धारण किये हुए थे। चीते की चमड़ी की साड़ी पहने हुए नर मुण्डों की माला से विभूषित थीं। उनके शरीर का मांस सूख गया था। केवल हड्डियों को ढांचा था, जिससे वह अत्यंत भंयकर जान पड़ती थी। उनका मुख बहुत विशाल था। जीभ लपलपाने के कारण बहुत भंयकर प्रतीत हो रही थी, उनकी आंखें भीतर की और धंसी हुई और लाल थी। वे अपनी भंयकर गर्जना से संपूर्ण दिशाओं को गुंजायमान कर रही थीं। बड़े-बड़े दैत्यों का वध करते हुए वे बडे़ वेग में दैत्यों की उस सेना पर टूट पड़ी और उन सबका भक्षण करने लगीं।
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वह देत्यों के महावतों और उनके हाथियों को एक हाथ से पकड़कर मुंह में डाल लेती थीं। इसी प्रकार घोड़े, रथ और सारथियों के साथ रथों सैनिकों को मुंह में डालकर वे उन्हें बड़े भयानक रूप से चबा डालती थी। किसी के बाल पकड़ लेतीं तो किसी का गला दबा देतीं। किसी को पैरों से कुचल डालती थी, किसी को छाती के बीच से फाड़ कर मार डालती थी। वे असुरों के छोडे़ बड़े-बड़े अस्त्र-शस्त्र मुंह से पकड लेतीं और रोष में भरकर दांतों से पीस डालतीं। काली ने बलवान एवं दुरात्मा देत्यों की वह सारी सेना पैरों से रौंद डाली, खा डाली। भयंकर बाणों की वर्षा से तथा हजारों बार चलाते हुए चक्रों से भयानक नेत्रों वाली देवी को आच्छादित कर दिया। वे अनेक चक्र देवी के मुंख में समाते हुए ऐसे जान पड़े, मानो सूर्य के बहुतेरे मण्डल बादलों के उदर में प्रवेश कर रहे हों। देवी ने एक बहुत बड़ी तलवार ले ’हं’ का उच्चारण कर चण्ड पर धावा किया और उसके केश पकड़ कर उसी तलवार से उसका मस्तक काट डाला। इसी प्रकार देवी ने क्षण भर में दैत्यों की सारी सेना को समाप्त कर दिया। चण्डं के भाई मुण्ड ने अपने भाई को मरा हुआ देख अत्यंत क्रोध में भरकर काली की ओर बढ़ा। तभी देवी ने रोष में भरकर उसे भी तलवार से घायल कर उसे धरती पर सुला दिया। महापराक्रमी चण्ड और मुण्ड को मारा गया देख बची हुई सेना भय से व्याकुल होकर भागने लगी। ये देख सभी देवताओं ने मां काली पर फूल बरसाये और उनकी स्तुति करने लगे।
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