योग निद्रा से चार माह बाद जागे भगवान श्री हरि, भक्तों ने रखा देवोत्थानी एकादशी व्रत
देवोत्थानी एकादशी से समाप्त हो जाता है चौमासा, शुरू हो जाते हैं मांगलिक कार्य
लखनऊ (हि.स.)। भगवान श्रीहरि देवोत्थानी एकादशी को चार मास की अवधि के बाद योग निद्रा से जाग गए। भगवान श्रीहरि के जागने का पर्व है देवोत्थानी एकादशी। सोमवार को भक्तों ने देवोत्थानी एकादशी को बड़े भक्तिभाव से मनाया। भक्तों ने व्रत रखा। भगवान की विधि-विधान से पूजा की। इस अवसर पर भगवान को ऊनी वस्त्र धारण कराए। कही-कहीं भक्तों ने भगवान श्रीहरि के साथ माता तुलसी की भी पूजा की। तुलसी जी का विवाह भी किया। रुके हुए मांगलिक कार्य इस तिथि से पुनः शुरू हो गए। चौमासा भी समाप्त हो गया।
पूजा में भक्तों ने भगवान को गन्ना, सिंघाड़ा व मौसमी फल चढ़ाए। भगवान को जगाने का उपक्रम किया। कहीं भक्तों ने तुलसी जी का विवाह भी किया। इस्कॉन मंदिर के सेवादार सौरभ ने बताया कि इस एकादशी से पूर्णिमा तक की अवधि बड़ी पुण्य मानी गई है। जो पूरे कार्तिक मास में भगवान का पूजन नहीं कर पाते हैं, उन्हें चाहिए कि इन पांच दिनों में भगवान के नाम का संकीर्तन करें। जप-तप करें। इससे जीवन में बहुत पुण्य मिलता है। इस्कॉन मंदिर में बहुत से भक्तों ने पूजा की और भगवान के दर्शन किए। डालीगंज स्थित श्रीमाधव मंदिर में एकादशी की पूजा की गई। मंदिर में तुलसी जी का विवाह भी भक्तों ने किया।
पं. अनिल कुमार पाण्डेय ने बताया कि देवोत्थानी एकादशी पर विष्णु सहस्त्र नाम का पाठ करने से बहुत लाभ होता है। पेपरमिल कॉलोनी के पार्क में सामूहिक रूप से तुलसी जी के विवाह का आयोजन हुआ। दीप भी प्रज्जवलित किए गए।
एक पौराणिक आख्यान है कि आषाढ़ मास की देवशयनी एकादशी को भगवान श्रीहरि क्षीर सागर में योग निद्रा में चले जाते हैं और कार्तिक मास की देवोत्थानी एकादशी को जागते हैं। इस तिथि से विवाह आदि कार्य पुनः शुरू हो जाते हैं।