यह न्याय है या अन्याय? विकास दुबे पर FIR कराने वाला पूर्ति निरीक्षक निलम्बित
एक बार फिर सवालों के घेरे में है पूरा प्रशासनिक तंत्र
जानकी शरण द्विवेदी
लखनऊ। कानपुर के बिकरू गांव के आसपास विकास दुबे की शह पर गरीबों को खाद्यान्न न मिलने का मामला संज्ञान में आने के बाद विभाग ने क्षेत्रीय पूर्ति निरीक्षक को निलम्बित कर दिया है। आरोप है कि उसके शिथिल पर्यवेक्षण के कारण क्षेत्र के कोटेदार गरीबों से अंगूठा लगवा लेते थे, किन्तु राशन नहीं देते थे। यह बात अलग है कि इसी पूर्ति निरीक्षक ने तीन साल पूर्व शिवराजपुर थाने में विकास दुबे व उसके एक साथी के खिलाफ जानलेवा हमले का मुकदमा दर्ज कराया था, किन्तु पुलिस ने मामले में कोई कार्रवाई नहीं की थी। अब जाकर तीन साल बाद एक बार फिर उसी पूर्ति निरीक्षक को दोषी ठहराते हुए निलम्बित कर दिया गया है। इसके बाद शासन की कार्यशैली पर फिर सवालिया निशान लग गया है।
विकास दुबे के एनकांउटर के बाद कानपुर नगर के जिला पूर्ति अधिकारी के नेतृत्व में की गई जांच में इस बात का खुलासा हुआ है, कि बिकरू गांव के आसपास के इलाकों में गरीबों को सरकारी अनाज नहीं मिलता था। बिल्हौर तहसील के बिकरू, भीटी, देवकली, कंजती, बोझा व मजरा पूरा बुजुर्ग, मरहमत नगर व मजरा कीरतपुर, विरोहा एवं बसेन में राशन वितरण में गंभीर अनियमितताएं मिली हैं। बिकरू में 50 कार्ड धारकों ने जांच के दौरान बताया है कि उन्हें नियमित मासिक खाद्यान्न हर माह नहीं मिलता था। 54 कार्डधारकों ने पीएमजीकेए योजना का भी मुफ्त अनाज न मिलने की बात कही। इन लोगों ने बताया कि उनसे अंगूठा लगवा लिया जाता था लेकिन खाद्यान्न नहीं मिलता था। खाद्यान्न के लिए तय दाम से ज्यादा लेने और कम खाद्यान्न दिये जाने की बात भी सामने आई। इसके बाद जिला पूर्ति अधिकारी की रिपोर्ट पर खाद्य विभाग ने संबंधित पूर्ति निरीक्षक प्रशान्त कुमार सिंह को दोषी मानते हुए निलंबित कर दिया है। प्रशान्त वही पूर्ति निरीक्षक हैं, जिन्होंने मई 2017 में विकास दुबे और विष्णु पाल सिंह के खिलाफ कानपुर के शिवराजपुर थाने में उन पर जानलेवा हमला करने और जान से मारने की धमकी देने की नामजद एफआईआर दर्ज करायी गई। पुलिस ने धारा 332, 353, 323, 307, 504, 506 के तहत मामला दर्ज भी किया था। विभागीय एसोसिएशन ने विकास दुबे की गिरफ्तारी और कठोर कार्रवाई की मांग को लेकर धरना-प्रदर्शन भी किया और खाद्य आयुक्त को ज्ञापन भी दिया था। इसके मामले में कुछ नहीं हुआ। दरअसल, पूर्ति निरीक्षक ने जब अनियमितता को लेकर कोटेदार पर सख्ती शुरू की, तो विकास दूबे रास्ते का रोड़ा बन गया और प्रशान्त को जान से मार देने की धमकी दी थी। उस समय तो उसकी प्राथमिकी पर विकास दुबे का बाल बांका नहीं हुआ, किन्तु अब पूर्ति निरीक्षक अवश्य निलम्बित कर दिया गया है। पूर्ति निरीक्षक संगठन के महामंत्री टीएन चौरसिया कहते हैं कि अगर 2017 में प्रशान्त की प्राथमिकी पर कार्रवाई की गई होती तो आज आठ पुलिस वालों की अपनी शहादत न देनी पडती। उन्होंने कहा कि जिस पूर्ति निरीक्षक ने व्यवस्था बदलने के लिए कोशिश किया, उसे जाने से मारने की धमकी भी मिली और अब निलम्बित भी कर दिया गया। यह कहां का न्याय है।