मौद्रिक नीति : रिज़र्व बैंक के कदम से आम आदमी को हाथ लगी निराशा
नई दिल्ली (हि.स.)। भारतीय रिजर्व बैंक ने आज घोषित रेपो रेट (4 फीसदी) में कोई बदलाव नहीं किया है। लगातार तीसरी बार नीतिगत दरों में कोई बदलाव नहीं किया गया है। इससे आम आदमी को ब्याज दरों में कटौती की जो उम्मीद जगी थी, वह ख़त्म हो गयी है।
हालांकि, रिजर्व बैंक ने यह भरोसा दिलाया है कि जरूरत पड़ने पर भविष्य में ब्याज दरों में बदलाव किया जा सकता है। रिज़र्व बैंक ने इसके साथ ही बैंक रेट में भी कोई बदलाव नहीं करने का फैसला लिया है। यह 4.25 फीसदी पर और कैश रिजर्व रेशियो तीन फीसदी पर स्थिर है। आज की मौद्रिक नीति समिति की बैठक के बाद केंद्रीय बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने जो कुछ कहा, उसके अनुसार ऐसा लगता है कि रिज़र्व बैंक अभी देखो और इंतज़ार करो की नीति पर काम कर रहा है और उसे अभी भी इस बात की आशंका है कि देश की अर्थव्यवस्था मंदी की चपेट में जा सकती है। रेपो रेट में कोई बदलाव नहीं होने का सीधा अर्थ है कि ग्राहकों को ईएमआई या लोन की ब्याज दरों पर नई राहत नहीं मिलेगी। इससे लोगों की क्रय शक्ति नहीं बढ़ने वाली है। इसका असर देश के अन्य क्षेत्रों पर भी पड़ेगा। खासकर तब जब लगभग 10 महीने से देश कोरोना की चपेट में है और सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) नकारात्मक हो गयी है। असल में रिजर्व बैंक के सामने कई समस्याएं और चुनौतियां हैं, जिसके कारण उसने यथास्थिति बनाये रखने का निर्णय किया है। लगातार दो तिमाही में जीडीपी की नकारात्मक दर ने भारतीय अर्थव्यवस्था को मंदी में ला दिया है। खुदरा महंगाई दर भी बढ़ने लगी है, जो अक्टूबर में 7.61 फीसदी पर पहुंच गई। बढ़ती मुद्रास्फीति के दौर में ब्याज दर में कटौती कर कर्ज सस्ता करना मुश्किल काम होता है परन्तु कर्ज सस्ता होने से मांग बढ़ाने में मदद मिलती है, जिससे रोजगार के अवसर पैदा करने में मदद मिलती है। जो अर्थव्यवथा को गति देती है लेकिन सस्ते कर्ज से लोगों की बढ़ती क्रय शक्ति महंगाई को और बढ़ा देती है। ऐसे में जब महंगाई की दर लगातार रिजर्व बैंक के मध्यम अवधि के लक्ष्य चार फीसदी से ऊपर बनी हुई है, रिज़र्व बैंक के लिए कर्ज सस्ता करना ठीक नहीं था। आज के बैंक के कदम से लगता है कि अगले साल के मार्च तक तो कर्ज सस्ते होने से रहे। बैंक की एक और समस्या देश के बैंकों के फंसे हुए कर्ज, जिसे एनपीए के नाम से जाना जाता है, भी है। बैंकों का एनपीए यानी गैर-निष्पादित परिसंपत्ति चालू वित्त वर्ष के अंत तक बढ़कर 12.5 फीसदी हो सकता है, जो मार्च 2020 में साढ़े आठ फीसदी था। लाकडाउन के कारण बैंकों के फंसे कर्जों के और बढ़ने की आशंका है। ऐसे में सस्ते कर्ज से इसमें और समस्या आने की आशंका ने भी रिज़र्व बैंक तो यथास्थिति के लिए मजबूर किया है।कोरोना के कारण राजकोषीय घाटे पर भी असर पड़ा है और वित्त वर्ष 2021 में जीडीपी के 8 फीसदी से ऊपर जाने की आशंका है, जो शुरुआत में बजट अनुमान में 3.5 फीसदी था। ऐसे में समझा जा सकता है कि रिज़र्व बैंक ने क्यों कोई बदलाव नहीं किया है। इसके बावजूद बैंक को उम्मीद है कि चालू वित्त वर्ष की दूसरी छमाही में अर्थव्यवस्था वृद्धि की राह पर लौट आएगी। पिछले दो तिमाही ने इसके संकेत भी दिए हैं। अगले कुछ हफ़्तों में कोरोना टीकाकरण आरम्भ होने के बाद से अर्थव्यवस्था तेज गति पकड़ सकती है और तब रिज़र्व बैंक दरों में कटौती कर सकता है।कोरोना महामारी के कारण अर्थव्यवस्था में पहली तिमाही में 23.9 प्रतिशत और दूसरी तिमाही में 7.5 प्रतिशत की गिरावट आयी है। पूरे वित्तीय वर्ष 2020-21 के दौरान अर्थव्यवस्था में 7.5 प्रतिशत तक गिरावट रहने का अनुमान है, जो 9.5 प्रतिशत की गिरावट आने का अनुमान था।