मोहर्रम की रवायतों में मशहूर अमारी का जुलूस नहीं उठेगा, फातमान में ज़ियारत
-हम चलेंगे आग पर और पांव जल सकता नहीं, अंगारों के मातम में बोले अजादार
-अय्याम की आखिरी रात में शहर में गूंजी या हुसैन अलविदा की सदाएं
वाराणसी (हि.स.)। धर्म नगरी काशी में शिया समुदाय ने रविवार को कोविड प्रोटोकाल का पालन कर मोहर्रम की रवायतों को शिद्दत से निभाया। अनलॉक के दौर में समुदाय ने अय्याम कि आखिरी रात में शहर के कई हिस्सों में या हुसैन अलविदा की सदा बुलंद की। इसके साथ ही शियों के 11 वें इमाम, इमाम हसन अस्करी की शहादत को भी शिद्दत से याद किया। इसी क्रम में सदर इमामबाड़े पर ग़मगीन मंज़र रहा। यहां अंजुमन हुसैनिया के आयोजन में अजादारों ने या हुसैन या हुसैन की सदायें बुलंद करके अंगारों पर चलकर मातम किया।
तेलियानाला में वरिष्ठ पत्रकार मिर्ज़ा मुन्ने के निवास पर मजलिस हुई। जिसे मौलाना ज़मीरुल हसन ने खिताब किया। अंजुमन अबिदिया ने नौहाख्वानी की। इसी तरह अलविदा की शब में शहर में कई जगहों पर मजलिसों का आयोजन हुआ। शब्बीर ओ सफदर के पुरानी अदालत स्थित अज़ाखाने पर मजलिस हुई। जिसमें मौलाना अब्बास इरशाद नक़वी ने तक़रीर पेश की। जिसके बाद जाने माने शायर सोहैल बस्तवी, शोएब नौगाववी, हैदर किरातपुरी ने कलाम पेश किए, लियाक़त हुसैन ने सोज़ख़्वानी की। अंजुमन हैदरी ने नौहाख्वानी की और दर्द भरे कई नौहे पेश किए।
शिया जामा मस्जिद के प्रवक्ता हाजी फरमान हैदर ने बताया कि सोमवार को 8 रबीउल अव्वल को शहर का मशहूर अमारी का जुलूस कोरोना के चलते नहीं उठाया जाएगा। जिसको लेकर समुदाय में काफी मायूसी है । इस जुलूस की ज़ियारत के लिए देश भर से लोग आते हैं। जुलूस की जगह अज़ाखाने पर मजलिस आयोजित होगी । जिसके बाद तबर्रुकात कि ज़ियारत होगी।
उन्होंने बताया कि अमारी का जुलूस सड़कों पर नहीं निकलेगा। अमारी की फातमान में ज़ियारत होगी उन्होंने बताया कि मोहर्रम की पहली तारीख से रबीउल अव्वल की 8 तारीख के सूर्यास्त तक 68 दिनों तक इमाम हुसैन और उनके साथियों की शहादत का ग़म मनाया जाता है । इन दिनों में इमाम हुसैन की शहादत के बाद उनके काफिले के बच्चों और औरतों पर हुए ज़ुल्म को याद करके आंसू बहाया जाता है।