मात्र पत्नी ही क्यों? पुरुष की भी भागीदारी हो!
के. विक्रम राव
छठ पूजा आज (31 अक्टूबर 2022) समाप्त हो गई है। ब्याहताओं के लिए दैहिक पीड़ा का दौर भी खत्म हुआ। तो प्रश्न आता है कि इन समस्त धार्मिक विधि-विधानों में पतिजन भी शिरकत क्यों नहीं करते? केवल अर्धांगिनी ही क्यों? अंततः लाभार्थी तो पुरुष ही होता है। रेवड़ी वही खाता है। इसीलिए उपासना के साथ उपवास भी वही रखें। नर-नारी की गैर बराबरी के अंत को सप्तक्रांति के प्रथम पायदान पर राममनोहर लोहिया ने रखा था। धार्मिक रस्मों-रिवाज समावेशी होने चाहिए। ठीक ऐसी ही प्रथा भारत के मिलते-जुलते अधिकतर पर्वों में भी निर्धारित है। यही शर्तें और पाबंदी! मसलन दक्षिण भारत में वरलक्ष्मी व्रतम, बटुकम्मा (तेलंगाना), उत्तर में करवा चौथ, हरियाली तीज, काली पूजा, नवरात्र आदि। अब छठ पर आचरण के नियमों की विवेचना हो। व्रत के दो दिन पूर्व से ही पति भी नमक, प्याज, लहसुन का सेवन बंद कर दे। निराहार निर्जल उपवास करें। सभी क्रियाओं तथा प्रथाओं में भार्या का हाथ बटाएं। मांसाहार तथा धूम्रपान न करें। पूर्णता निषिद्ध हो। व्रत के दौरान चारपाई और बिस्तर पर ना सोएं। फर्श पर पुआल बिछाकर लेटें। इनसे संतान की दीर्घायु होती है। इसके कारण वामांगिनी भी स्वस्थ और संतुष्ट रहेगी। अर्थात सभी अर्चनाएं तथा आचरण की अनिवार्यतः दंपत्ति पर समान रूप से लागू हो। आखिर सप्तपदी के अवसर पर ऐसी ही कसमें खाई थीं, वादे भी किये थे। इस संदर्भ में अपना निजी प्रयास बता दूं। मैंने अपने पत्रकार साथियों की बीबियों से कहा था कि सांझ ढले जब शौहर घर आये तो खिड़की से सूंघना। सिटकनी उठाने और किवाड़ खोलने के पूर्व जांच लें। रात बरामदे में बिताने पर सारा नशा काफूर हो जायेगा।
अब पहले जिक्र हो सर्वाधिक कठिनतम हरितालिका तीज के पर्व का। इसे शुरू करने पर आजीवन करना पड़ता है। वरना घोर संकट आता है। हरतालिका व्रत तीज भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को हस्त नक्षत्र के दिन होता है। इस दिन कुमारी और सौभाग्यवती स्त्रियाँ गौरी-शंकर की पूजा करती हैं। विशेषकर उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल और बिहार में मनाया जाने वाला यह त्योहार करवा चौथ से भी कठिन माना जाता हैं, क्योंकि जहां करवाचौथ में चन्द्र देखने के उपरांत व्रत सम्पन्न कर दिया जाता है। वहीं इस व्रत में पूरे दिन निर्जल उपवास किया जाता है और अगले दिन पूजन के पश्चात ही व्रत सम्पन्न हो जाता है। इस व्रत से जुड़ी एक मान्यता यह है कि इसे करने वाली स्त्रियां पार्वती जी के समान ही सुखपूर्वक पतिरमण करके शिवलोक को जाती हैं। सौभाग्यवती स्त्रियां अपने पति हेतु इसे करती हैं, सुहाग को अखण्ड बनाए रखने के लिए। अविवाहित युवतियां मन-अनुसार वर पाने के लिए हरितालिका तीज का व्रत करती हैं। सर्वप्रथम इस व्रत को माता पार्वती ने भगवान शिव शंकर के लिए रखा था। इस दिन विशेष रूप से गौरी-शंकर का ही पूजन किया जाता है। इन व्रती के दौरान शयन का निषेध है। इसके लिए उसे रात्रि में भजन कीर्तन के साथ जागरण करना पड़ता है। प्रातःकाल स्नान करने के पश्चात् श्रद्धा एवं भक्तिपूर्वक किसी सुपात्र सुहागिन महिला को श्रृंगार सामग्री, वस्त्र, खाद्य सामग्री, फल, मिष्ठान्न एवं यथा शक्ति आभूषण का दान करना चाहिए। व्रती महिलाएं अन्न जल तक ग्रहण नहीं करती हैं। कहते हैं इस कठिन व्रत से देवी पार्वती ने भगवान शिव को प्राप्त किया था। इसलिए इस व्रत में शिव पर्वती की पूजा का अपना विशेष महत्व है। तभी भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा अर्चना से अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है। कुंवारी कन्याएं इस व्रत को मनचाहे वर की प्राप्ति के लिए रखती है। मान्यताओं के अनुसार, कहा जाता है कि इस दिन माता पार्वती और भगवान शिव का पुनर्मिलन हुआ था। पार्वती ने शिव को पति के रूप में पाने के लिए बहुत तपस्या की थी। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर पार्वती ने उन्हें दर्शन दिए और पत्नी के रूप में स्वीकार किया।
यह व्रत निर्जला रखते हैं। यानी पूरे 24 घंटे व अन्न जल का त्याग करते हैं। इस व्रत को करने के दौरान कई नियमों का पालन करना पड़ता है, तभी व्रत और पूजा सफल मानी जाती है। यानी 24 घंटे तक अन्न जल कुछ भी ग्रहण नहीं करते। हरतालिका तीज का व्रत पति की दीर्घायु की कामना के लिए रखा जाता है। इस व्रत में पानी पीने से अगले जन्म में बंदर का जन्म लेना पड़ता है। करवा चौथ, हरियाली तीज, कजरी तीज और वट सावित्री जैसे सभी व्रतों में हरतालिका तीज का व्रत सबसे मुश्किल व्रत माना जाता हैं। इस व्रत में नियम हैं कि झूठ ना बोले और कोई ऐसी बात ना करें जिससे मन दुखी हो। मान्यता है कि इस व्रत को करने वाली महिलाएं यदि ऐसा कुछ करती हैं तो उन्हें अगले जन्म में अजगर के रूप में जन्म लेना पड़ता है। वहीं इस दिन व्रत के दौरान यदि व्रती महिला दूध पीती है तो वह अगले जन्म में सर्प की योनि में जन्म लेती है। करवा चौथ हिन्दुओं का एक प्रमुख त्योहार है। इसे पति दिवस बताया जाता है। यह भारत के जम्मू, हिमाचल प्रदेश, पंजाब, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, मध्य प्रदेश और राजस्थान में मनाया जाने वाला पर्व है। यह कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है। पति की दीर्घायु एवं अखण्ड सौभाग्य की प्राप्ति के लिए इस दिन भालचन्द्र गणेश जी की अर्चना की जाती है। करवाचौथ में भी संकष्टीगणेश चतुर्थी के जैसे दिन भर उपवास रखकर रात में चन्द्रमा को आराघ्य देने के उपरांत ही भोजन करने का विधान है। तेलुगु भाषियों का वरलक्ष्मी व्रत देवी लक्ष्मी की प्रसन्नता का पर्व है। वरलक्ष्मी देवी वह है जो वर (वरदान) देती है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, यह व्रत देवी पार्वती द्वारा समृद्धि और सुख की प्राप्ति के लिए किया गया था। वरलक्ष्मी व्रत श्रावण माह के अंतिम शुक्रवार के दिन रखा जाता है, सरल भाषा में समझे तो श्रावण पूर्णिमा अर्थात रक्षा बंधन से पहिले आने वाले शुक्रवार को वरलक्ष्मी की पूजा एवं व्रत किया जाता है। इसे करने से अष्टलक्ष्मी की पूजा के समान पुण्य प्राप्त होता है। इससे दरिद्रता समाप्त होती है एवं परिवार में सुख-संपत्ति की वृद्धि होती है। यह व्रत आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, तमिलनाडु एवं महाराष्ट्र जैसे दक्षिण भारतीय राज्यों में बहुत अधिक लोकप्रिय है। इस दिन ज्यादातर विवाहित महिलाएं अपने पति और परिवार के सदस्यों के कल्याण, धन, संपत्ति और वैभव के लिए यह व्रत करती हैं। दीवाली की रात लक्ष्मी माता के साथ-साथ काली मां की भी पूजा की जाती है, इसे काली चौदस कहते हैं। हिंदू धर्म में मान्यता के अनुसार काली पूजा के दिन ही मां काली 64 हजार योगिनियों के साथ प्रकट हुई थी। उन्होंने रक्तबीज सहित कई असुरों का संहार किया था। इसीलिए बंगाली समुदाय के लोग इस पूजा को शक्ति पूजा के रूप में भी मानते हैं। पश्चिम बंगाल, ओड़िसा, असम, झारखंड के इलाकों में दिवाली के दिन को मां काली की पूजा धूमधाम से की जाती है। बंगाली परंपरा में दीपावली को काली पूजा ही कहें कर संबोधित किया जाता है। अतरू आज के समतावादी युग में पति-पत्नी को एकसाथ एक ही व्रत करना चाहिए। तभी फल की प्राप्ति होगी।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं आइएफडब्लूजे के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं।)
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