मनोकामना पूर्ण करतीं हैं मां संकठा, श्रद्धालुओं का उमड़ता है हुजूम

– 12वीं शती में हुई थी मंदिर की स्थापना

– 16वें शक्तिपीठ के रूप में है मान्यता

रायबरेली(हि.स.)। माँ दुर्गा के 16वें शक्तिपीठ के रूप में प्रसिद्ध माँ संकठा देवी मंदिर श्रद्धालुओं की आस्था और विश्वास का प्रमुख केंद्र है। नवरात्रि में तो यहां भक्तों का हुजूम उमड़ता है। रायबरेली ही नहीं बल्कि कई जिलों से श्रद्धालु यहां आते हैं और उनका विश्वास है कि यहां उनकी मनोकामना अवश्य पूर्ण होगी।

मंदिर की स्थापना को लेकर कई जनश्रुति प्रचलित है, लेकिन जानकर मंदिर को 12वीं शताब्दी का बताते हैं। क्षेत्रीय इतिहास के जानकार व कवि योगेंद्र प्रताप सिंह के अनुसार ‘12वीं शताब्दी भार राजाओं के पराभव व बैस वंशी राजाओं के उद्भव का समय था और इस क्षेत्र में बैस वंश के त्रिलोचन्द्र शासन करते थे।

जनश्रुतियों के अनुसार उनके कोई संतान नहीं थी और उन्होंने यहां पुत्रेष्टि यज्ञ किया था। माँ संकठा के आशीर्वाद से उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई थी। कहा जाता है कि यज्ञ कराने वाले काशी के पुंजराज महराज ने इसे अपनी तपोस्थली बना लिया था। मंदिर के विषय में एक कथा बहुत प्रचलित है कि एक बार किसी पागल ने मूर्ति के गले में कुल्हाड़ी से वार कर दिया था, जिससे कटे स्थान से खून टपकने लगा था। माँ ने माली को स्वप्न में इसका संकेत किया। अगले दिन माली ने उस कटे स्थान में रुई लगा दिया जिससे खून का टपकना बंद हो गया। हालांकि मूर्ति पर कटे का स्थान आज भी देखा जा सकता है।

महर्षि गर्ग की है तपोभूमि’

यह गेंगासो महर्षि गर्ग की तपोस्थली भी रही है। कहा जाता है कि यहां कई संत महात्माओं ने अपनी तपश्चर्या की। प्राचीन समय में कई आश्रम इस क्षेत्र में थे। कहा जाता है कि दिगम्बर स्वामी अनंगबोध महराज अपने आश्रम से गंगा की जलधारा के ऊपर चलकर मां संकठा के दर्शन करने आते थे।

’पूर्ण होती है मनोकामना’

माँ संकठा के दर्शन के लिए कई जिलों से श्रद्धालु आते हैं, नवरात्रि और कार्तिक पूर्णिमा पर तो भारी भीड़ उमड़ती है। नवविवाहित जोड़े गंगा स्नान कर मां से आशीर्वाद जरूर लेता है। मान्यता है कि यहां मांगी गई मनोकामना जरूर पूर्ण होती है।

रजनीश

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