भए प्रकट कृपाला..

हेमंत शर्मा

यह देश राम का है। राम कण-कण में हैं। भाव की हर हिलोर में राम हैं। कर्म के हर छोर में राम हैं। राम यत्र-तत्र, सर्वत्र हैं। जिसमें रम गए, वही राम है। सबके अपने-अपने राम हैं। गांधी के राम अलग हैं। लोहिया के राम अलग। वाल्मीकि और तुलसी के राम में भी फर्क है। भवभूति के राम दोनों से अलग हैं। कबीर ने राम को जाना। तुलसी ने माना। निराला ने बखाना। राम एक हैं पर दृष्टि सबकी भिन्न। भारतीय समाज में मर्यादा, आदर्श, विनय, विवेक, लोकतांत्रिक मूल्यवत्ता और संयम का नाम है राम। आप ईश्वरवादी न हां, तो भी घर-घर में राम की गहरी व्याप्ति से उन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम तो मानना ही पड़ेगा। स्थितप्रज्ञ, असंपृक्त, अनासक्त। एक ऐसा लोक नायक, जिसमें सत्ता के प्रति निरासक्ति का भाव है। जो जिस सत्ता का पालक है, उसी को छोड़ने के लिए सदैव तैयार है। राम इस देश की उत्तर दक्षिण एकता के अकेले सूत्रधार है। राम अयोध्या के थे। महान विचारक डॉ राम मनोहर लोहिया भी अयोध्या के ही रहने वाले थे। डॉ लोहिया ने हमारे तीन देवताओं को एक लाईन में परिभाषित किया है। उनका कहना है कि राम मर्यादित व्यक्तित्व के स्वामी थे। तो कृष्ण उन्मुक्त और शिव असीमित व्यक्तित्व के स्वामी। राम पूरी तरह धर्म के स्वरूप हैं। जिसे राम प्रिय नहीं है उसे धर्म प्रिय नहीं है। कबीर राम को परम ब्रह्म मानते है। “कस्तूरी कुण्डल बसे मृग ढूँढे बन मांहि। ऐसे घट-घट राम हैं दुनिया देखे नांहि।“ मनु शतरूपा के आग्रह पर राम ने उनका पुत्र होना स्वीकार किया। मनुष्य शरीर में आए। आज उनका जन्म दिन है। राम के सारे कार्य मानवी है। वे स्त्री वियोग में दुखी होते हैं। रोते हैं। भाई के वियोग में विलाप करते हैं। उनकी इस स्थिति को देख कर पार्वती को संदेह होता है। क्या राम भगवान हैं? ब्रह्म हैं? अगर राजपुत्र हैं तो ब्रह्म कैसे? ब्रह्म हैं तो स्त्री के वियोग में बुद्धि बावली क्यों? ऐसा ही संदेह भारद्वाज को हुआ। तो आखिर वो राम कौन हैं? जिनका नाम लेकर एक बूढ़ा गॉधी अंग्रेज़ी साम्राज्य से लड गया। जिसके नाम पर इस देश मे आदर्श शासन की कल्पना की गयी। उसी राम राज्य के सपने को देख देश आज़ाद हुआ। गांधी ने यही सपना देखा था। विनोबा इसे प्रेम योग और साम्ययोग के तौर पर देखते थे। वाल्मीकि राम राज्य की व्याख्या करते है।
काले वर्षति पर्जन्यः सुभिक्षंविमला दिशः
ह््रष्टपुष्टजनाकीर्ण पुरू जनपदास्तथा।
नकाले म्रियते कश्चिन व्याधिः प्राणिनां तथा।
नानर्थो विद्यते कश्चिद् पाने राज्यं प्रशासति।
यानी जिस शासन मे बादल समय से बरसते हों। सदा सुभिक्ष रहता हो, सभी दिशाएँ निर्मल हो। नगर और जनपद हृष्ट पुष्ट मनुष्यों से भरे हो। वहां अकाल मृत्यु न होती हो, प्राणियों में रोग न होता हो, किसी प्रकार का अनर्थ न हो। पूरी धरा पर एक समन्यवय और सरलता हो, प्रकृति के साथ तादात्म्य ही रामराज्य है। तुलसी ने इसी रामराज्य को विस्तार दिया। मैथिली शरण गुप्त इसे ही अर्थाते हैं। निर्गुणिया कबीर भी राम की बहुरिया बन कर रहना चाहते है। यही राम मेरे भी अवलंब बने। इनके सहारे ही मैने जीवन का सबसे बड़ा काम पूरा किया। अयोध्या पर किताब लिखने का काम। हालांकि अयोध्या से मेरा निजी, सांस्कृतिक, धार्मिक और भावनात्मक रिश्ता रहा है। बाप दादा वहीं के रहने वाले थे। इसलिए अयोध्या मेरे संस्कारों में है। वह मन से कभी उतरती नही। श्रद्धा का वह स्तर है कि मेरी दादी कभी अयोध्या नही कहती थीं। उनके मुंह से हरदम “अयोध्या जी“ ही निकलता था। इसी निकटता में मैने राम को जिया है। हमारे राम लोक मंगलकारी है। ग़रीब नवाज़ है। मर्यादा पुरुषोत्तम है। राम इक्ष्वाकु वंश के राजा थे। इक्ष्वाकु मनु के पुत्र थे। इनके वंश मे आगे चल कर दिलीप, रघु, अज, दशरथ और राम हुए। रघु सबसे प्रतापी थे। इसलिए वंश का नाम रघुवंश चला। रघु वंश के कारण ही राम को राघव, रघुवर, रघुनाथ भी कहा गया। कहानी पुरानी है। फिर से सुनाता हूँ। महाराज दशरथ के तीन रानियॉं थी। लेकिन कोई पुत्र नहीं था। इसलिए उन्होने पुत्रेष्टि यज्ञ के लिए श्रृंगमुनि को बुलाया। यज्ञ के आखिर में अग्नि देव प्रकट हुए और दशरथ को खीर भेंट की। दशरथ ने खीर अपनी रानियों को खिलाया। आधी खीर कौशल्या को दिया, आधी कैकेयी को। दोनों ने अपने अपने हिस्से की आधी आधी खीर सुमित्रा को दी। नतीजतन कौशल्या ने राम को आज ही के दिन जन्म दिया। नौमी तिथि मधु मास पुनीता। सुकल पच्छ अभिजित हरिप्रीता। मध्य दिवस अति सीत न घामा। पावन काल लोक बिश्रामा।। इसी दिन राम का आगमन हुआ। कैकेयी ने भरत को। सुमित्रा से लक्ष्मण और शत्रुघ्न दो जुड़वाँ बच्चे पैदा हुए। यही राम के होने की कहानी है।
राम साध्य है, साधन नहीं। गांधी का राम सनातन, अजन्मा और अद्वितीय है। वह दशरथ का पुत्र और अयोध्या का राजा नहीं है। जो आत्मशक्ति का उपासक प्रबल संकल्प का प्रतीक है। वह निर्बल का एक मात्र सहारा है। उसकी कसौटी प्रजा का सुख है। वे समाज के सभी वर्गों को आगे बढ़ने की प्रेरणा और ताकत देते है। हनुमान, सुग्रीव, जाम्बवंत, नल, नील सभी को समय-समय पर नेतृत्व का अधिकार राम ने दिया। उनका जीवन बिना हड़पे हुए फलने की कहानी है। वह देश में शक्ति का सिर्फ एक केन्द्र बनाना चाहते है। देश में इसके पहले शक्ति और प्रभुत्व के दो प्रतिस्पर्धी केन्द्र थे। अयोध्या और लंका। राम अयोध्या से लंका गए। रास्ते में अनेक राज्य जीते। राम ने उनका राज्य नहीं हड़पा। उनकी जीत शालीन थी। जीते राज्यों को जैसे का तैसा रहने दिया। अल्लामा इकबाल कहते हैं-“है राम के वजूद पे हिन्दोस्तां को नाज, अहले नजर समझते हैं, उसको इमाम-ए-हिन्द।” राम का आदर्श, लक्ष्मण रेखा की मर्यादा है। लांघी तो अनर्थ। सीमा में रहे तो खुशहाल और सुरक्षित जीवन। राम जाति वर्ग से परे है। नर, वानर, आदिवासी, पशु, मानव, दानव सभी से उनका करीबी रिश्ता है। अगड़े पिछड़े से ऊपर निषादराज हों या सुग्रीव, शबरी हों या जटायु, सभी को साथ ले चलने वाले वे अकेले देवता हैं। भरत के लिए आदर्श भाई। हनुमान के लिए स्वामी। प्रजा के लिए नीति कुशल न्यायप्रिय राजा हैं। परिवार नाम की संस्था में उन्होंने नए संस्कार जोड़े। पति पत्नी के प्रेम की नई परिभाषा दी। ऐसे वक्त जब खुद उनके पिता ने तीन विवाह किए थे। पर राम ने अपनी दृष्टि सिर्फ एक महिला तक सीमित रखी। उस निगाह से किसी दूसरी महिला को कभी देखा नहीं। जब सीता का अपहरण हुआ वे व्याकुल थे। रो-रो कर पेड़, पौधे, पहाड़ से उनका पता पूछ रहे थे। इससे उलट जब कृष्ण धरती पर आए तो उनकी प्रेमिकाएं असंख्य थी। सिर्फ एक रात में सोलह हजार गोपिकाओं के साथ उन्होंने रास किया था। फिर पिता की अटपटी आज्ञा का पालन कर उन्होंने पिता पुत्र के रिश्तों को नई ऊंचाई दी।
राम राजा हैं। ताक़तवर है। ऐसा राजा जिसे जन स्वीकृति मिली है। बेशुमार ताकत से अहंकार का एक खास रिश्ता हो जाता है। पर उनमें अंहकार छू तक नहीं गया था। यही वजह है कि अपार शक्ति के बावजूद राम मनमाने फैसले नहीं लेते थे। वे लोकतांत्रिक हैं। सामूहिकता को समर्पित विधान की मर्यादा जानते हैं। धर्म और व्यवहार की मर्यादा भी और परिवार का बंधन भी। नर हो या वानर इन सबके प्रति वे अपने कर्तव्यबोध पर सजग रहते हैं। वे मानवीय करुणा जानते हैं। वे मानते हैं-परहित सरिस धर्म नहीं भाई। डॉ. लोहिया कहते हैं “जब कभी गांधी ने किसी का नाम लिया तो राम का ही क्यों लिया? कृष्ण और शिव का भी ले सकते थे। दरअसल राम देश की एकता के प्रतीक हैं। गांधी राम के जरिए हिन्दुस्तान के सामने एक मर्यादित तस्वीर रखते थे।” वे उस राम राज्य के हिमायती थे। जहां लोकहित सर्वोपरि था। जो गरीब नवाज था। इसीलिए लोहिया भारत मां से मांगते हैं-“हे भारत माता हमें शिव का मस्तिष्क दो, कृष्ण का हृदय दो, राम का कर्म और वचन दो”। लोहिया जी अनीश्वरवादी थे। पर धर्म और ईश्वर पर उनकी सोच मौलिक थी। राम लोक से सीधे इसलिए जुड़ते हैं कि राम का जीवन बिल्कुल मानवीय ढंग से बीता। उनके यहां दूसरे देवताओं की तरह किसी चमत्कार की गुंजाइश नहीं है। आम आदमी की मुश्किल उनकी मुश्किल है। वे लूट, डकैती, अपहरण और भाइयों से सत्ता से बेदखली के शिकार होते हैं। जिन समस्याओं से आज का आम आदमी जूझ रहा है। कृष्ण और शिव हर क्षण चमत्कार करते हैं। राम की पत्नी का अपहरण हुआ तो उसे वापस पाने के लिए अपनी गोल बनाई। लंका जाना हुआ तो उनकी सेना एक-एक पत्थर जोड़ पुल बनाती है। वे कुशल प्रबन्धक हैं। उनमें संगठन की अद्भुत क्षमता है। जब दोनों भाई अयोध्या से चले तो महज तीन लोग थे। जब लौटे तो एक पूरी सेना के साथ। एक साम्राज्य का निर्माण कर। राम कायदे कानून से बंधे हैं। उससे बाहर नहीं जाते। एक धोबी ने जब अपहृत सीता पर टिप्पणी की तो वे बेबस हो गए। भले ही उसमें आरोप बेदम थे। पर वे इस आरोप का निवारण उसी नियम से करते हैं। जो आम जन पर लागू है। वे चाहते तो नियम बदल सकते थे। संविधान संशोधन कर सकते थे। पर उन्होंने नियम कानून का पालन किया। सीता का परित्याग किया। जो उनके चरित्र पर धब्बा है। तो मर्यादा पुरुषोत्तम क्या करते? उनके सामने एक दूसरा रास्ता भी था, सत्ता छोड़ सीता के साथ चले जाते। लेकिन जनता (प्रजा) के प्रति उनकी जवाबदेही थी। इसलिए इस रास्ते पर वे नहीं गए। राम अगम हैं। सगुण भी हैं निर्गुण भी। कबीर कहते हैं निर्गुण राम जपहुं रे भाई। मैथलीशरण गुप्त मानते हैं कि राम तुम्हारा चरित्र स्वंय ही काव्य है। कोई कवि बन जाय सहज सम्भाव्य है।
मान्यता है कि सबसे पहले राम की कथा भगवान शंकर ने देवी पार्वती को सुनाई थी। उस कथा को वहॉं मौजूद एक कौवे ने भी सुन लिया। उसी कौवे का पुनर्जन्म कागभुशुण्डि के रूप में हुआ। काकभुशुण्डि को पूर्व जन्म में शंकर के मुख से सुनी वह रामकथा पूरी याद थी। उन्होंने यह कथा अपने शिष्यों को सुनाई। तुलसी अपने रामचरित मानस में इसका जिक्र करते है। बाद में यही कथा ’अध्यात्म रामायण’ के नाम से प्रसिद्ध हुई। हालांकि रामकथा के बारे में एक और मत प्रचलित है जिसके मुताबिक़ सबसे पहले रामकथा हनुमानजी ने लिखी ‘हनुमन्नाटक’। उसके बाद महर्षि वाल्मीकि ने संस्कृत महाकाव्य ‘रामायण’ की रचना की। ‘हनुमन्नाटक’ को हनुमानजी ने एक शिला पर लिखा था। मान्यता है कि जब वाल्मीकि ने अपनी रामायण तैयार कर ली, तो उन्हें लगा कि हनुमानजी के हनुमन्नाटक के सामने यह टिक नहीं पाएगी और इसे कोई नहीं पढ़ेगा। हनुमानजी को जब महर्षि की इस व्यथा का पता चला तो उन्होंने उन्हें बहुत सांत्वना दी और अपनी रामकथा वाली शिला उठाकर समुद्र में फेंक दी, जिससे लोग केवल वाल्मीकिजी की रामायण ही पढ़ें और उसी की प्रशंसा करें। समुद्र में फेंकी गई हनुमानजी की रामकथा वाली शिला राजा भोज के समय समुद्र से निकाली गयी। भगवान राम के बारे में आधिकारिक रूप से जानने का मूल स्रोत महर्षि वाल्मीकि की रामायण ही है। हालॉंकि पुराणों में भी रामकथा का उल्लेख है। वामन, वाराह, नारदीय, लिंग, अग्नि, बर्ह्मवैवर्त, पद्म, स्कन्द, गरुण पुराण में रामकथा के प्रसंग है। रामायण संस्कृत साहित्य का आरम्भिक महाकाव्य है। यह अनुष्टुप छन्दों में लिखा गया है। महर्षि वाल्मीकि को ’आदिकवि’ मानते हैं। इसीलिए यह महाकाव्य ’आदिकाव्य’ माना गया। इस ग्रंथ में 24 हजार श्लोक, 500 उपखंड, तथा सात काण्ड है। इसके रचना काल के बारे में अनेक मत है। कामिल बुल्के इसके रचनाकाल को छह सौ ईसा पूर्व मानते है। आठवीं शताब्दी में संस्कृत के महान कवि और नाटककार भवभूति हुए। उनकी किताब उत्तर रामचरित राम के राज्याभिषेक के बाद की कथा ज्यादा प्रभावशाली ढंग से कहती है।
लोक में सबसे ज्यादा व्याप्ति तुलसी की राम चरित मानस की है। तुलसी ने लोकभाषा में रामकथा का बखान कर इसे लोक तक पहुँचाया। पन्द्रहवीं शती में लिखे इस ग्रन्थ का बड़ा हिस्सा बनारस में लिखा गया है। 7 काण्डों में बँटे रामचरितमानस में छन्दों की संख्या के अनुसार बालकाण्ड और किष्किन्धाकाण्ड क्रमशः सबसे बड़े और छोटे काण्ड है। मध्यकाल में जब हिन्दू धर्म के उपर अनेक तरह के संकट थे। वेद शास्त्रों का अध्ययन कम हो गया था। तो इस ग्रन्थ ने समूचे हिन्दू समाज में नए जीवन का संचार किया था। तुलसी दास ने इसे आम लोगो तक पहुँचाने के लिए रामलीलाए भी कराई। संस्कृत में रामकथा पर कालिदास का रघुवंश महाकाव्य भी है। इस महाकाव्य में 19 सर्गों में रघु के कुल में उत्पन्न बीस राजाओं का इक्कीस प्रकार के छन्दों का प्रयोग करते हुए वर्णन किया गया है। इसमें दिलीप, रघु, दशरथ, राम, कुश और अतिथि का विशेष वर्णन किया गया है। वे सभी समाज में आदर्श स्थापित करने में सफल हुए। राम का इसमें विषद वर्णन है। 19 में से छः सर्ग उनसे ही संबन्धित हैं। बंगाल की कृतिवास रामायण और तमिल की कंब रामायण भारतीय भाषाओं में रामकथा की सर्वोत्कृष्ट कृति है। तेलगू में बारहवी शताब्दी में लिखी रंगनाथ रामायण मलयालम की भास्कर रामायण, मोल्ला रामायण प्रसिद्ध है। गुजराती असमिया उड़िया और मराठी में में भी रामकथा पर ग्रन्थ लिखे गए। नेपाली की अपना रामायण घर घर में है। बौद्ध ग्रन्थों में भी इसका पर्याप्त उल्लेख है। बौद्धां ने बोधिसत्व के रूप में और जैनियों ने आठवें बलदेव के रूप में राम को अपने यहॉं स्थान दिया है। उनकी जातक कथाओं में राम कथा के अलग अलग सन्दर्भ है। पर बौद्ध धर्म सनातन धर्म के ख़लिफ़ पैदा हुआ था इसलिए उसमें रामकथा के बिगड़े सन्दर्भ है। जैसे दशरथ जातक में तो सीता को राम की बहन बताया गया है। भारत के बाहर भी रामकथा का विस्तार व्यापक रहा है। रामायण के अध्येता फ़ादर कामिल बुल्के ने रामायण के तीन सौ आख्यानों की चर्चा की है। थाईलैंड की रामकथा रामकियेन के नाम से जानी जाती है। जबकि इंडोनेशिया में रामायण काकावी के नाम से प्रसिद्ध है। कंबोडिया में रामकेर तो बर्मा (म्यांमार) में रामवत्थु। तुर्की में रवोतानी रामायण, लाओस में फ्रलक-फ्रलाम (रामजातक)। और फिलिपींस में मसलादिया लाबन नाम से रामकथा का प्रचलन है। मलयेशिया में हिकायत सेरीराम ,श्रीलंका में जानकी-हरण, नेपाल में भानुभक्त कृत रामाजान, जापानमें होबुत्सुशू रामकथा पर आधारित ग्रन्थ है। चीनी साहित्य में राम कथा पर आधारित कोई मौलिक रचना नहीं हैं। लेकिन बौद्ध धर्म में त्रिपिटक के चीनी संस्करण में रामायण से संबद्ध दो रचनाएँ मिलती हैं। ’अनामकं जातकम्’ और ’दशरथ कथानम्’। इससे चीन में भी इस कथा की व्याप्ति का पता चलता है। विश्व साहित्य में राम सा चरित्र दूसरा नही। न कहीं राम सी मर्यादा है, न राम सा पौरूष और न ही राम सी तितिक्षा। राम इस दुनिया का संतुलन हैं। अमीरों की माया है तो गरीबों के राम हैं। उनका नाम भर ही दुनिया भर के गरीब-ग़ुरबों के भीतर जीवन की कठिन से कठिन परिस्थितियों से टकराने का हौसला है। वे इस पृथ्वी पर त्रेतायुग में जन्मे, फिर यहीं के होकर रह गए। भक्तों के मोह में उन्होंने जीवन-मरण के चक्र को भी तोड़ डाला। देश के हर रामभक्त के पास उसके हिस्से की कहानियां हैं। राम कब कब और किन किन परिस्थितियों में उसकी मदद के लिए आए, उसकी ज़ुबान पर चढ़ा हुआ है। राम के आगे विज्ञान का संसार बौना है। चिकित्सा शास्त्र और रसायन शास्त्र के सूत्र अधूरे हैं। ये सब बाहरी आँखों से दीखते हैं। पर राम अंर्तमन के हैं। भाव जगत की लगन के हैं। जीवन की सृष्टि के, सृष्टि के जीवन के हैं। राम जन जन के हैं। राम नवमी की मंगलकामनाएं।
(लेखक देश के माने जाने सम्पादक हैं।)

कलमकारों से ..

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