बारहमासा अवधी दोहावली

राणा प्रताप सिंह ‘राही’

क्वार मास सुंदर शरद, मन लेती है मोह।
मधुर सुखद वासर-निशा, सरगम सी अवरोह।।
कातिक दिन केतिक बड़ा, आवा-गवा समाप्त।
बात-बात मा सांझ भै, घना कुहासा व्याप्त।।
अगहन हनता शीत बनि, सिसियाते नर-नाह।
गरम वसन पुनि आ गये, देने हमें पनाह।।
राज रजायी मा मिले, माह भवा जब पूस।
सूरज तेज विहीन भा, सबै करत महसूस।
बगिया बौराने लगीं, आवा माघ बसंत।
विरहिन ने पाती लिखा, अब तो आ जा कंत।।
फागुन गुन-गुन कर रहा, भयी सुहावनि धूप।
छाया रंग अनंग का, परगट हुआ स्वरूप।।
हंसिया-कंगन से बजा, गोरिया काटत खेत।
चैत चूनि ले अन्न को, बलमा कुछ तो चेत ।।
ना आये ना खत लिखा, पिया गंवायौ शाख ।
तन-मन झुलसाने लगा, विरह और वैशाख।।
वैरी-वसन उतार करि, तर तरुवर जा जेठ।
पथिक-विटप कै ई सुखद, बरस बाद पुनि भेंट।।
आवा माह अषाढ़ तौ, अस गरजा आकाश।
दिया चुनौती तपन को, करके सत्यानाश।।
सावन बरसा वन हरा, विरहिन जियरा सूखि।
चुई वरौनी पलक कै, नखता लागे पूखि।।
भादों अंधियारी-निशा, छानि पुराने ठाट।
विरहिन भींजति जरति पुनि, ताकति पिउ कै बाट।।
सचल दूरभाष : ९२६०९०१९५२

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