बलरामपुर : शक्तिपीठ की महिमा का बखान कर रहा सूर्य कुंड, यहां स्नान करने से दूर होते हैं चर्म रोग

बलरामपुर (हि.स.)। शारदीय नवरात्रि में चल रहे राजकीय मेला देवीपाटन में ऐतिहासिक सरोवर सूर्य कुंड के चारों तरफ बना मंदिर के इतिहास से जुड़ी चित्र मंदिर पहुच रहे दर्शानार्थियों के आकर्षण का केंद्र बना है। मंदिर पहुंचे दर्शनार्थी उकेरे गए चित्रों के माध्यम से मदिंर का इतिहास समझते हुए परिवार संग आनन्दीत हो रहे हैं। इस पवित्र सूर्य कुंड का अपना अलग ऐतिहासिक महत्व है। बताया जाता है कि इस सूर्य कुंड में स्नान करने से चर्म रोग दूर होते हैं। इसी कुंड में राजा कर्ण ने स्नान कर मां पाटेश्वरी का दर्शन किया था।

शारदीय नवरात्रि के मौके पर शक्तिपीठ मंदिर देवीपाटन में 15 दिवसीय मेला चल रहा है जिसे प्रदेश सरकार द्वारा राजकीय मेले का दर्जा दिया गया है। मेले में देश के अलावा नेपाल से भी भारी संख्या में श्रद्धालु शक्तिपीठ मंदिर देवीपाटन पहुंच रहे हैं। इस वर्ष मंदिर प्रशासन के द्वारा मंदिर परिसर स्थित पवित्र सरोवर सूर्य कुंड के चारों तरफ मंदिर से जुड़े ऐतिहासिक तथ्यों को दीवारों पर उकेरे गए हैं जो आकर्षण का केंद्र बना है। चित्र के माध्यम से बताया गया है कि यहां कैसे महासती का वाम स्कंध पट सहित गिरा, यहां गुरु गोरखनाथ जी ने धूनी रमाई, सहित विभिन्न ऐतिहासिक तथ्य चित्र के माध्यम से बताया गया है।

कलाकारों ने चित्रों को इस तरह जीवंत बनाया है कि बस इसके सामने खड़े हो और मंदिर के इतिहास से संबंधित जिज्ञासा इन चित्रों को देखकर स्वत: शांत हो जाती है।

देवीपाटन मंदिर के साथ सूर्य कुंड भी रहा है आस्था का केंद्र

सदियों से सूर्यकुंड लोगों के आस्था का केंद्र रहा है। बताया जाता है कि इसमें स्नान करने से चर्म रोग दूर हो जाता है। सूर्यकुंड का इतिहास गुरु गोरक्षनाथ तथा राजा कर्ण के समकालीन है। बताया जाता है कि राजा कर्ण में यहां पर धनुर्विद्या सीखी थी और उन्होंने ही यह तालाब खुदवाई और सूर्यपुत्र कर्ण ने अपने पिता के नाम पर सूर्यकुंड का नाम रखा। इसी कुंड से जल लाकर देवी मां का आराधना किया करते थे। तब से आज तक परम्परा के अनुसार सूर्यकुंड से जल लाकर देवी मां का सुबह-शाम मंदिर के पुजारियों द्वारा पूजन किए जाने की परंपरा है।

मंदिर का इतिहास” नामक पुस्तक में उल्लेखित है कि राजा कर्ण की आराधना से प्रसन्न होकर देवी मां प्रकट हुई थी, और उनसे वर मांगने को कहा। राजा कर्ण ने अपनी तमाम इच्छाओं के साथ सूर्यकुंड में स्नान करने से सभी व्याधियां दूर हो, ऐसा वर मांगा था। देवी मां तथास्तु कहकर अंतर्ध्यान हो गई थी। तबसे सूर्यकुंड के जल का महात्म्य लोगों के अंदर बढ़ गया। आज भी लोग देवीपाटन मंदिर का दर्शन करने के लिए सूर्यकुंड में पहले स्नान करते हैं और इसके बाद देवी मां का पूजन-अर्चन करते हैं।

सूर्य कुंड में स्नान करने का नियम

सूर्यकुंड में रात में स्नान नहीं किया जाता है। साथ ही साबुन तेल लगाने पर प्रतिबंध है। सूरजकुंड में भारी मात्रा में मछलियां हैं, जिन्हें लोग लाई-चना खिलाते हैं, लेकिन उनका शिकार करना मना है। लाई चना लेकर लोग जैसे ही सूर्य कुंड के किनारे खड़े होते ही मछलियों की तादाद पहुंच जाती है। सूर्यकुंड साफ सुथरा रहे इसके लिए बतख भी सूर्य कुंड में छोड़े गए हैं।

मंदिर के महंत मिथलेश नाथ योगी का कहना है कि देवीपाटन मंदिर का इतिहास सूर्यकुंड से जुड़ा हुआ है। बताया कि लोग मंदिर के इतिहास को लेकर जिज्ञासा रखते थे। जिसे सूर्यकुंड के चारों ओर चित्रों से माध्यम से चित्रित कर दिया गया है जिससे लोग चित्र देखकर मंदिर के इतिहास की कल्पना कर सके।

शक्तिपीठ मंदिर देवीपाटन की गणना 51 शक्तिपीठों में प्रधान पीठ के रूप में होती है । यहां बताया जाता है कि माता सती का वाम स्कंध पट सहित गिरा था। तभी से यहां आदिशक्ति को को मां पाटेश्वरी देवी के नाम से पूजन किया जाता है।

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