बढ़ता गया चुनाव खर्च और घटते गए प्रत्याशी!

जानकी शरण द्विवेदी

गोंडा। लोकसभा चुनाव में जैसे-जैसे धन बल और बाहु बल का प्रभाव बढ़ता जा रहा है, उसी अनुपात में प्रत्याशियों की संख्या दिनों दिन कम होती जा रही है। बढ़े चुनाव खर्च के कारण सामान्य प्रत्याशियों के जीत की संभावना न के बराबर होते देख आम नागरिक इन चुनावों से किनारा कसने लगा है। इसका नतीजा है कि प्रत्याशियों की संख्या निरंतर कम होती जा रही है, जबकि देश में हुए प्रथम लोकसभा निर्वाचन के बाद से चुनाव खर्च में करीब 400 गुना की रिकार्ड वृद्धि दर्ज की गई है। 18वीं लोकसभा के लिए आगामी 20 मई को गोंडा जिले की दो संसदीय सीटों पर होने वाले मतदान के लिए कुल 12 प्रत्याशी चुनाव मैदान में हैं।
जानकारों के अनुसार, आजादी के बाद 1951-52 में हुए पहले संसदीय चुनाव में प्रत्याशियों के लिए चुनाव खर्च की सीमा 25 हजार रुपए निर्धारित की गई थी। इसके 30 साल बाद 1971 में इसे बढ़ाकर 35 हजार कर दिया गया जो 1977 तक बनी रही। 1980 के चुनाव में इसमें करीब तीन गुने का इजाफा करते हुए एक लाख रुपए कर दिया गया। 1984 में यह बढ़कर डेढ़ लाख रुपए हो गया जो 1991 के चुनाव तक बना रहा। 1996 में एक बार फिर चुनाव खर्च में तीन गुना की वृद्धि करते हुए साढ़े चार लाख रुपए कर दिया गया। दो साल बाद ही 1998 में हुए चुनाव में इसे बढ़ाकर 15 लाख रुपए तथा 2004 में 25 लाख रुपए कर दिया गया जो 2009 तक प्रभावी रहा। 2014 में इसे बढ़ाकर 70 लाख रुपए कर दिए गए। अगले चुनाव अर्थात् 2019 में यह सीमा 95 लाख तक पहुंच गई। इस बार भी चुनाव खर्च की अधिकतम सीमा 95 लाख ही है। हालांकि कुछ लोगों द्वारा मंहगाई को देखते हुए इसे बढ़ाकर 125 लाख किए जाने की मांग की जा रही है।
अब आइए करते हैं घटते प्रत्याशियों की बात। जनपद की दो लोकसभा सीटों गोंडा से आठ तथा कैसरगंज से मात्र चार प्रत्याशी चुनाव मैदान में हैं। इनमें से दोनों सीटों पर निर्दलीय प्रत्याशियों की कुल संख्या चार है। आजादी के बाद देश में हुए लोकसभा चुनावों की बात करें तो गोंडा व कैसरगंज लोकसभा क्षेत्रों में सबसे ज्यादा प्रत्याशियों की संख्या 1996 के आम चुनाव में थी। उस वक्त गोंडा सीट पर 79 प्रत्याशी तथा कैसरगंज सीट पर 28 प्रत्याशी चुनाव मैदान में थे। इसके बाद प्रत्याशियों की संख्या में चुनाव दर चुनाव कमी होती चली गई। गोंडा लोकसभा सीट पर 1998 में 23 प्रत्याशी, 1999 में 32 प्रत्याशी, 2004 में 15 प्रत्याशी, 2009 में 25 प्रत्याशी तथा 2014 व 2019 में 15-15 प्रत्याशी चुनाव मैदान में थे। 2024 में यह संख्या घटकर आठ रह गई है। यहां भाजपा से कीर्तिवर्धन सिंह, चार बार सांसद रहे अपने पिता आनंद सिंह का रिकार्ड तोड़कर पांचवीं बार लोकसभा में पहुंचने के लिए बेताब हैं, तो सपा ने उनका विजय रथ रोकने के लिए केंद्रीय मंत्री रहे बेनी प्रसाद वर्मा की पोती श्रेया वर्मा को मैदान में उतारा है। कीर्तिवर्धन सिंह के प्रबंधन वाले एपी इंटर कालेज मनकापुर के बर्खास्त प्रधानाचार्य अवध शरण मिश्र के बेटे सौरभ मिश्र भी अपने पिता का बदला लेने के लिए बहुजन समाज पार्टी के टिकट पर भाजपा प्रत्याशी के मार्ग में कांटा बने हुए हैं। अन्य प्रत्याशियों में भारतीय शक्ति चेतना पार्टी से राघवेंद्र, भारतीय उदय निर्माण पार्टी से विनोद कुमार सिंह तथा अरुणिमा पाण्डेय, राजकुमार व राम उजागर (सभी निर्दल) शामिल हैं।
इसी प्रकार कैसरगंज सीट पर 1998 में 16 प्रत्याशी, 1999 में 20 प्रत्याशी, 2004 में 11 प्रत्याशी, 2009 में 23 प्रत्याशी, 2014 में 14 प्रत्याशी तथा 2019 में 12 प्रत्याशी चुनाव मैदान में थे। 2024 में निर्दल प्रत्याशियों में एकमात्र अरुणिमा पाण्डेय हैं, जो गोंडा संसदीय सीट भी निर्दल उम्मीदवार के रूप में भाग्य आजमा रही हैं। वह गोंडा के विकास, महिला सम्मान, राजघराने तथा राजनीति को बाहुबलियों से मुक्त कराने के नारे के साथ चुनाव मैदान में हैं। अन्य प्रमुख प्रत्याशियों में इस सीट से भाजपा के बाहुबली सांसद व भारतीय कुश्ती संघ के विवादित अध्यक्ष रहे बृजभूषण शरण सिंह के पुत्र करण भूषण सिंह, समाजवादी पार्टी से भगत राम मिश्र तथा बहुजन समाज पार्टी से नरेंद्र पाण्डेय चुनाव मैदान में हैं।

क्रमशः कीर्तिवर्धन सिंह (भाजपा), श्रेया वर्मा (सपा), सौरभ मिश्र (बसपा) नरेंद्र पाण्डेय (बसपा कैसरगंज)

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