बंजर ज़मीन पर विकसित हरित पट्टी में दुर्लभ पक्षियों ने बनाया बसेरा
पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में राज्यसभा सदस्य बृजलाल के प्रयास का दिख रहा असर
लखनऊ (हि.स.)। भारतीय जनता पार्टी(भाजपा) के राज्यसभा सदस्य बृजलाल द्वारा पर्यावरण संरक्षण के लिए शुरू किये गये प्रयास का आज असर दिखने लगा है। लखनऊ के गोमतीनगर विस्तार जैसे क्षेत्र में उनके प्रयास से एक हरित पट्टी विकसित की गयी है। इस हरित पट्टी से जहां शुद्ध आक्सीजन मिल रही है, वहीं यहां के पेड़ों पर कई प्रकार के पक्षी अपना बसेरा भी बना चुके हैं।
भाजपा के राज्यसभा सदस्य बृजलाल ने कहा कि बंजर ज़मीन पर यदि बृक्ष लगा दिये जायं, तो विभिन्न प्रकार की चिड़िया, गिलहरी, तितलिया, कीट-पतंगे, मधुमक्खियां आदि वहां बसेरा बना लेती है। उन्होंने हिन्दुस्थान समाचार प्रतिनिधि से बताया कि मैंने गोमतीनगर विस्तार में 03 सितंबर 2010 को मकान की नींव डाली। घर के सामने 9 मीटर सर्विस रोड और 10 मीटर चौड़ा ग्रीन-बेल्ट है। ज़मीन उसरीली और बंजर थी,मात्र कुछ कटीली झाड़ियां थी। मैंने लखनऊ डेवलपमेंट अथॉरिटी से कहा कि वे ग्रीन-बेल्ट को तार से घेर दें, मैं अपने खर्च से बृक्ष लगाऊँगा और देखभाल भी करूँगा। मैंने देखा कि सरकारी ठेकेदार जो बृक्ष लगाते हैं,उसकी बहुत उपयोगिता नहीं होती है और देखभाल के अभाव में बृक्ष जीवित भी नहीं रह पाते हैं।
हरित पट्टी में लगे ये पेड़
हरित पट्टी में आम,जामुन, चीकू, कमरख़, कटहल, सहजन, नाशपाती, थाईलैंड का रोज-ऐपल, बड़हल, बेल, कैथा, महुवा, खिरनीं, जमैकन चेरी, देशी चेरी, फ़ालसा, नीबू,पपीता,चार क़िस्म के केले, देशी और थाई अंबार, तेजपत्ता, आँवला, लीची, कचनार, फिशटेल पाम, बॉटल-ब्रश, अशोक, गुलाचीन आदि के बृक्ष लगे हैं,जिसमें अधिकांश फल-फूल दे रहे हैं।
उत्तर प्रदेश के पूर्व पुलिस महानिदेश रहे बृजलाल ने बताया कि अब मेरी बगिया में बुलबुल, मुनिया, भुजंगा, कोयल, पपीहा, कौवा, मागपाई- रोबिन,सेवन-सिस्टर्स,फ़ाख्ता,रूफ़स ट्रीपी ,महोखा,फूलो के रस चूसने वाली पर्पल सनबर्ड तथा तमाम क़िस्म की चिड़ियों के घर बन गये है। चार साल पहले मुझे बरसात में मुझे कुछ समय के लिए दुर्लभ ‘चातक’ भी दिखाई पड़ा। अभी 7 मार्च को मेरे ग्रीन-बेल्ट में सबसे ऊँचे पेड़ पर एक अजीब सा पक्षी दिखायी पड़ा। हमारे एक सुरक्षा कर्मी ने उसका वीडियो बना लिया। जब मैंने वीडियो देखा, तो पता चला कि वह मधुबाज़,मधुहा है।
उन्होंने बताया कि मैंने बचपन में गांव के बाग में इस पक्षी को देखा था,जो ईगल परिवार का है, जिसे गांव में ‘ठठोर’ कहा जाता था। बाग में आम के पेड़ पर मधुमक्खियों ने बड़ा सा छत्ता लगा रखा था। मधुबाज़ छत्ते पर हमला करके शहद के अलावा उनके लारवा खा जाता था। इसका शरीर पंखों से इस प्रकार ढाका रहता था कि मधुमक्खियों का झुंड इस पर लिपट जाता था परन्तु उनके डंक इस ईगल के पंख तक सीमित रह जाती थी। अपना पेट भरकर मधुबाज़ इतनी तेज उड़ान भरता था कि मधुमक्खियाँ हवा में विलीन हो जाती थी। उसका पीछा मधुमक्खियों का झुंड अवश्य करता था परंतु उसकी स्पीड के सामने वे उसका कुछ बिगाड़ नहीं पाती थी।
बृजलाल ने बताया कि अब मेरे गांव में दशकों से यह ईगल दिखाई नहीं पड़ा, परंतु मेरे हरित पट्टी में यह दिखाई पड़ गया है। उसके आते ही अन्य चिड़ियां ज़ोर-ज़ोर से चीख रही हैं, क्योंकि यह शहद के अलावा मांसभक्षी शिकारी पक्षी है। अब यह हरित पट्टी का ही कमाल है कि मुझे लगभग छह दशक बाद लखनऊ मेरे बगिया में मधुबाज़, हमारे गांव का ‘ठठोर’ दिखायी पड़ा।
बृजनन्दन/राजेश