फ्लाइट में हुई थी अमर सिंह और मुलायम की पहली मुलाकात
उत्तर प्रदेश की सत्ता के सबसे बड़े प्रबंधकों में होती थी उनकी गिनती
नेशनल डेस्क
नई दिल्ली। किसी जमाने में उत्तर प्रदेश की राजनीति के चाणक्य कहे जाने वाले अमर सिंह का शनिवार को निधन हो गया. वो 64 साल के थे. अमर सिंह बेशक आज हमारे बीच न रहे हों, लेकिन उनकी राजनीति के नीति निर्धारण को जनता और नेता दोनों ही याद रखेंगे. समाजवादी पार्टी के समर्थन से राज्यसभा का सफर तय करने वाले सिंह सिर्फ एसपी ही नहीं, बल्कि पूरे उत्तर प्रदेश की सत्ता के सबसे बड़े प्रबंधक कहे जाते रहे हैं. किसी जमाने में भारत के नामचीन उद्योगपतियों में शुमार अमर सिंह यूपी की राजनीति के चाणक्य कैसे बनें और सपा सरंक्षक मुलायम सिंह यादव के करीबियों में कैसे शुमार हुए इसके बारे में बहुत ही कम लोग जानते हैं. मुलायम सिंह और अमर सिंह की मुलाकात उस वक्त हुई थी जब मुलायम देश के रक्षामंत्री थे. 1996 में जिस फ्लाइट में मुलायम सिंह यादव सफर कर रहे थे, उसी जहाज में अमर सिंह भी सवार थे और दोनों की मुलाकात हो गई. हालांकि मुलायम और अमर की ये मुलाकात अनौपचारिक थी, लेकिन इसी फ्लाइट के सफर के बाद दोनों की नजदीकियां बढ़ी.
फ्लाइट की मुलाकात के बाद उद्योगपति अमर सिंह को मुलायम सिंह यादव ने सपा के राष्ट्रीय महासचिव पद पर बैठा दिया. ऐसा कहा जाता है कि महज 4 साल की दोस्ती के बाद 2000 में अमर सिंह का सपा में दखल काफी बढ़ा. अमर सिंह पार्टी के टिकट बंटवारे, पदों और अन्य बड़े फैसलों में मुलायाम के साथ अहम भूमिका में आ गए. यही वो वक्त था जब अमर सिंह का नाम राज्य के ताकतवर नेताओं में शुमार हो गया. अमर सिंह ने समाजवादी पार्टी को एक शीर्ष पर पहुंचाने और मुलायम सिंह यादव को उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री की कुर्सी दिलाने में एक खास रोल अदा किया. एक वक्त ऐसा आया जब मुलायम सिंह यादव ने अमर सिंह को समाजवादी पार्टी की नंबर दो पोजिशन तक दे दी. अमर का रसूख उत्तर प्रदेश में कितना था इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उन्होंने अमिताभ बच्चन की पत्नी जया बच्चन से लेकर तमाम बड़े चेहरों को समाजवादी पार्टी के झंडे के नीचे खड़ा करा लिया था.
उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी का रसूख कायम करने के बाद अमर सिंह ने केंद्र में पार्टी को खड़ी करने की तमाम कोशिशें की. 2004 में जब कांग्रेस की सरकार केंद्र की सत्ता में आई तो बैकफुट पर समाजवादी पार्टी कई फैसलों में उसके साथ खड़ी रही. ऐसा माना जाता है कि ये मुलायम सिंह यादव के कारण नहीं बल्कि अमर सिंह की वजह से था. कुछ राजनीतिक विशेषज्ञ तो यह भी कहते हैं कि यूपीए कार्यकाल के दौरान कांग्रेस को कई फैसलों में जब भी संकट का एहसास हुआ, तब-तब सपा से मदद मांगी गई. सिर्फ इतना ही नहीं यूपीए सरकार के दौरान जब सिविल न्यूक्लियर डील के फैसले के दौरान ’कैश फॉर वोट’ जैसे बड़े मामलों में भी अमर सिंह का नाम गिना गया. हालांकि 2010 में अमर सिंह को सपा ने बाहर का रास्ता दिखा दिया. सपा से निष्कासित किए जाने के बाद उन्होंने राष्ट्रीय लोकमंच पार्टी का गठन किया और पूर्वांचल को अलग राज्य करने की मांग करने लगे. लोकमंच पार्टी ने पूर्वांचली राज्यों में कई सभाएं की. रैलियां हुईं. हालांकि इसका कोई खास असर नहीं हुआ.