प्रेम में निहारने का सुख
डा. रश्मि
पुनि पुनि रामहि चितव सिय सकुचति मनु सकुचै न।
हरत मनोहर मीन छबि प्रेम पिआसे नैन।।
सीता अपने पति राम को पुनः पुनः निहार रही हैं। सकुचा भी रही हैं लेकिन उनका मन है कि मानता ही नहीं और फिर निहारने लगती हैं। प्रेम इसी को कहते हैं। प्रेम में एक तृप्ति भी है और अतृप्तता भी… न तो कभी पूर्ण तृप्ति मिल पाती है और ना ही अतृप्ति बचती है। आप सोच रहे होंगे कि यह क्या विपरीत बात लिख रही हूं! सच ही है, स्वयं अपने अनुभव से सोचिए, आपको उत्तर मिल जाएगा। अपने प्रिय के समीप पहुंचकर एक संपूर्णता का अनुभव होता है। आभास होता है कि मानो कोई राग बज उठा हो। क्षुधा तृप्त हुई हो। यही कारण है कि तृप्ति का सुख मिलता है। यही तृप्ति बार-बार प्रिय के समीप खींचे रहती है। किंतु यह भी उतना ही सच है कि हर बार एक प्यास बाकी रह जाती है जो अगली बार की आस का काम करती है। प्रेम न तो पूर्णतः तृप्ति पाता है और न ही अतृप्ति…
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सीता बार-बार राम को निहार कर तृप्ति का सुख पा रही है किंतु जो पल भर को पलक झपकती है या समाज की लज्जावश नज़र हटानी पड़ जाती है, वह और तृप्ति जगा देती है। इस प्रकार पुनः पुनः देखती हैं और सकुचा जाती हैं किंतु मन है कि तृप्त ही नहीं होता। वह संकोच त्याग कर सिर्फ राम को निहारना चाहता है। प्रेम में प्रिय को निहारने का सुख भी असीम है। राधा-कृष्ण के प्रेम निरूपण में तो कवियों ने प्रेम की पराकाष्ठा कुछ यूं की है कि राधा को दर्पण में भी खुद की छवि नहीं बल्कि कृष्ण की छवि दिखती है। प्रेम का चरम है, जब हर ओर प्रिय ही दिखने लगे। प्रेम में प्रगाढ़ता का प्रमाण यही है कि प्रिय सिर्फ अपनी आंखों के सामने ही रहने तक न दिखता रहे बल्कि सामने न होने पर भी नज़र आए। दरअसल उसकी छवि तो हृदय पर अंकित है, नेत्र तो बस देखने का काम करते हैं। बुद्धि पूरी तरह से प्रेम वश हो तो स्वाभाविक है कि हृदय हमेशा प्रिय को ही पुकारेगा। हर राग में एक ही टेर, पिय की टेर… कान भी उसे ही सुनना चाहते हैं, आंखे भी उसे ही देखना चाहती हैं, स्पर्श भी उसी का सुख देता है। यानी सभी इंद्रियां प्रिय के वश में हो चली हैं। तुलसीदास ने सीता-राम-विवाह के संदर्भ में रचित चौपाइयों और दोहे में प्रेम का बड़ा ही मर्यादित किंतु मनोहारी वर्णन किया है। दरअसल प्रेम का भाव एक समान ही होता है, फिर चाहे वह राधा-कृष्ण का प्रेम हो सीता-राम का। बस अभिव्यक्ति में विविधता देखने को मिल जाती है।
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