पूजित पुरानी मूर्तियों काे खुले में छोड़ना घोर पाप

– मूर्तियों का विसर्जन उचित तरीके से करें, खुले में न छोड़े पुरानी पूजित मूर्तियां

लखनऊ (हि.स.)। पूजित पुरानी देवी लक्ष्मी और गणेश या दूसरी मूर्तियों को पीपल, बेल के पेड़ के नीचे खुले में रखना न केवल उस प्रतिमा का अपमान है बल्कि अपनी सभ्यता-संस्कार और संस्कृति का भी अपमान है। यह कहना है पंडित अनिल कुमार पाण्डेय का।

सोमवार को उन्होंने बताया कि अक्सर देखा जाता है कि लोग पूजित पूरानी मूर्तियों को खुले में रख देते हैं। खुले में पूजित मूर्तियों का छोड़ना घोर पाप है। जो लोग ऐसा करते है वह बहुत गलत करते है उन्हें ऐसा बिल्कुल भी नहीं करना चाहिए। पूजित मूर्तियों को खेतों में मिट्टी के नीचे दबा देना चाहिए या फिर नदी में प्रवाहित करने की परम्परा रही हैं।

श्री पाण्डेय ने बताया कि पुराने लखनऊ में चौक के पास कुड़िया घाट और गोमती पार खाटू श्याम मंदिर के पास भी विसर्जन के व्यवस्था की गई है। कहा कि खुले मेें रखी मूर्ति पर कोई भी पशु-पक्षी गंदगी कर सकते हैं। इसीलिए इन मूर्तियों को गर्भगृह में स्थापित किया जाता है, जहां कोई मूर्ति को छू न सके।

बताया कि लकड़ी की मूर्ति 12 साल और पत्थर की मूर्ति को तब तक पूजने की परम्परा है जब तक कि वह खंडित न हो जाए। मिट्टी की मूर्ति को एक साल तक पूजना चाहिए। मूर्ति बिल्कुल सही हो, उसे ही पूजना चाहिए।

कुड़िया घाट पर मूर्तियों के विसर्जन के लिए बनाए गए गड्डों की देखरेख करने वाली शुभ संस्कार समिति के महामंत्री रिद्दी गौड़ बताते है कि कुड़िया घाट पर मूर्ति विसर्जन के लिए काफी अच्छी व्यवस्था की गई है। कोई भी यहां आकर निःशुल्क मूर्तियों को विसर्जन कर सकता है। यह व्यवस्था पिछले 8-10 साल से की गई है। बताया कि अगर हमें जानकारी मिलती है हम मूर्तियों को किसी भी स्थान से उठाने की व्यवस्था कराते हैं।

गोमती नदी के किनारे बने खाटू श्याम मंदिर के पास भी मूर्ति विसर्जन के लिए बने गड्ढे बने हुए है। यहां श्रीश्याम परिवार इन गड्ढों की देखभाल करता है। परिवार के सुधीश गर्ग ने बताया कि विसर्जन के लिए अच्छी और पर्याप्त व्यवस्था की गई। यहां पर भी कोई भी आकर निःशुल्क आकर मूर्तियां विसर्जित कर सकता है।

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