पुरातात्विक सर्वेक्षण में चार दर्जन से अधिक मिले पुरास्थल : प्रो. आनन्द

-ताम्र पाषाण से मुगल और उसके परवर्ती काल तक पुरातात्विक अवशेष प्राप्त
प्रयागराज (हि.स.)। प्रयागराज के फूलपुर, सदर और सोरांव तथा कौशाम्बी जनपद के चायल तहसील के अंतर्गत आने वाले गंगा के दोनों किनारों पर बसे 80 से अधिक गावों में किये गये सर्वेक्षण कार्य के परिणाम स्वरूप पुरातत्विक महत्व के 50 स्थलों को चिन्हित कर अभिलेखीकरण किया गया है। जहां से ताम्र पाषाण काल से लेकर मुगल काल और उसके परवर्ती काल तक के पुरातात्विक अवशेष काफी संख्या में प्राप्त हुए हैं। इसमें विभिन्न प्रकार के मृदभांड, पकी मिट्टी की मूर्तियां, अर्द्धबहुमूल्य पत्थर, माइक्रोलिथ, मनके तथा प्रस्तर, लोहे, हड्डी एवं हाथी दांत से बने उपकरण एवं सामग्रियां आदि प्रमुख हैं। पुरातात्विक सर्वेक्षण में चार दर्जन से अधिक पुरास्थलों को खोज निकाला गया है। यह जानकारी इलाहाबाद विश्वविद्यालय के संघटक महाविद्यालय ईश्वर शरण पीजी कालेज के प्राचार्य एवं पुरातात्विक अध्ययन और विश्लेषण के आधार पर प्रोजेक्ट निदेशक प्रो. आनन्द शंकर सिंह ने दी। उन्होंने बताया कि प्राचीन इतिहास, संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग की टीम द्वारा प्रयागराज के गंगा-यमुना संगम स्थली के निकट झूंसी से लेकर श्रृंग्वेरपुर तक तथा दारागंज से लेकर कौशाम्बी जनपद स्थित काली पल्टन तक गंगा नदी के दोनों तरफ व्यापक स्तर पर गांव-गांव पैदल घूमकर किये गये पुरातात्विक सर्वेक्षण में चार दर्जन से अधिक पुरास्थलों को खोज निकाला गया है। 
उन्होंने बताया कि जमीनी सतह पर 70 किलोमीटर से अधिक लम्बा और 3-5 किमी चौड़ाई में यह महत्वपूर्ण पुरातात्विक सर्वेक्षण कार्य उनके निर्देशन में इसी विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर और प्रोजेक्ट के उपनिदेशक डॉ.जमील अहमद एवं उनकी टीम द्वारा किया गया। इस क्षेत्र में सम्भवतः पहली बार इतना बड़ा पुरातात्विक सर्वेक्षण किया गया।
प्रो. आनन्द शंकर सिंह ने बताया कि गंगा के दोनों तरफ श्रृंग्वेरपुर और हेतापट्टी को छोड़कर क्षेत्र में कहीं भी अभी तक व्यापक स्तर पर खुदाई नहीं की गयी है। यदि वैज्ञानिक ढंग से खुदाई हो तो सर्वेक्षित क्षेत्र में मानव अधिवास की प्राचीनता चार हजार साल से भी पीछे जाने से इंकार नहीं किया जा सकता। सर्वेक्षण की विस्तृत रिपोर्ट भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, नई दिल्ली को हाल ही में भेज दिया गया है। कॉलेज द्वारा कौड़िहार के निकट चुनिंदा पुरास्थलों के उत्खनन के लिए भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, नई दिल्ली को प्रस्ताव बनाकर भेजने पर कार्य किया जा रहा है। गांगेय क्षेत्र से प्राप्त इन पुरावशेषों को कॉलेज के नवनिर्मित आर्कियोलॉजिकल सेण्टर में शोधार्थियों के अध्ययन हेतु रखा गया है।
प्रोजेक्ट उप निदेशक डॉ. जमील अहमद ने बताया कि परंपरागत एवं वैज्ञानिक ढंग से किये गए इस सर्वेक्षण की विस्तृत रिपोर्ट को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, नई दिल्ली की वार्षिक पत्रिका इंडियन आर्किओलॉजी-ए रिव्यू में भेजा गया है। उन्होंने बताया कि इस क्षेत्र में मनुष्य का अस्तित्व प्रागैतिहासिक काल से है, इसीलिए यह क्षेत्र पुरातात्विक और सांस्कृतिक विकास की दृष्टि से बेहद समृद्ध व महत्वपूर्ण है। सर्वेक्षण से प्राप्त सांस्कृतिक सामग्रियों के निष्कर्ष सुदूर अतीत से इस क्षेत्र में निरंतर व समृद्ध निवास को दर्शाते हैं। 
गौरतलब है कि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, नई दिल्ली द्वारा कालेज को इस क्षेत्र में पुरातात्विक सर्वेक्षण हेतु लाइसेंस दिया गया है। इस पुरातात्विक कार्य में इविवि के प्राचीन इतिहास विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो. उमेश चंद्र चट्टोपाध्याय  और डॉ. माणिक चंद्र गुप्ता द्वारा अमूल्य योगदान प्रदान किया गया है।

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