पंचगंगा घाट से शुरु हुई वाराणसी की देव दीपावली वैश्विक फलक पर, प्रधानमंत्री मोदी होंगे गवाह
– खूबसूरत ‘हजारा दीपस्तंभ’ ने बढ़ाया रौनक, शहर के कुंडों तालाबों और मंदिरों में भी दीपोत्सव की छटा
– दक्षिण भारतीय ब्राह्मणों से मिली थी ‘देव दीपावली’ की प्रेरणा
वाराणसी (हि.स.)। पंचगंगा घाट से अस्तित्व में आयी काशी की देव दीपावली की पहचान अब वैश्विक फलक पर है। देव दीपावली के वर्षो के इतिहास में पहली बार प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी इसमें भागीदारी कर रहे हैं। इससे भारत ही नहीं पूरे विश्व की निगाहें काशी की देव दीपावली पर टिकी हुई हैं।
सोशल मीडिया के विभिन्न प्लेटफार्म पर देव दीपावली के इतिहास के बारे में जानने के लिए लोगों में लगातार उत्सुकता बनी हुई है। पुरनिये बताते हैं कि काशी में पंचगंगा घाट पर इसकी शुरूआत हुई थी। क्षेत्रीय लोगों के सहयोग से दीपोत्सव होता था। इसके बाद वर्ष 1985 में मंगला गौरी मंदिर के महंत नारायण गुरु ने देव दीपावली को वृहद् और विहंगम रूप देने के लिए प्रयास किया। इसमें दशाश्वमेघ घाट पर गंगा सेवा निधि के संस्थापक स्मृतिशेष सत्येन्द्र मिश्र, प्राचीन शीतलाघाट पर गंगोत्री सेवा समिति के अध्यक्ष पं. किशोरी रमण दुबे उर्फ बाबू महाराज ने भी बड़ी भूमिका निभाई।
पंचगंगाघाट के बाद पांच अन्य घाटों पर शुरू हुई देव दीपावली पर्व को व्यापक रूप देने के लिए केंद्रीय देव दीपावली महासमिति के अध्यक्ष पं.वागीश दत्त मिश्र ने भी अपना योगदान दिया। महासमिति के पदाधिकारियों ने काशी के कुंण्डों और तालाबों पर भी देव दीपावली बनाने की पहल की। जिससे गंगाघाटों पर भीड़ कम जुटे। 1995 से देव दीपावली को व्यापक आधार मिला। तो शहर के अन्य समाजसेवी भी इसमें योगदान देने के लिए आगे आये। तो देखते ही देखते उत्सव वैश्विक फलक पर आ गया।
काशी सुमेरूपीठाधीश्वर जगदगुरू शंकराचार्य स्वामी नरेन्द्रानंद सरस्वती बताते हैं कि काशी के देव दीपावली उत्सव में किसी न किसी रूप में देवता भी शामिल होते हैं। कार्तिक मास की पूर्णिमा तिथि को पर्व मनाया जाता है। उन्होंने इस बारे में एक कथा का उल्लेख किया। उन्होंने बताया कि एक समय त्रिपुर नाम के बलशाली राक्षस के अत्याचारों से देवता,ऋषि बेहाल और दुखी थे। अपनी रक्षा के लिए सभी महादेव की शरण में गए। तब भगवान शिव ने कार्तिक मास की पूर्णिमा तिथि को त्रिपुरासुर का वध कर दिया और तीनों लोकों को उसके भय से मुक्त किया। उस दिन से ही देवता हर वर्ष कार्तिक पूर्णिमा को भगवान शिव के विजय पर्व के रूप में मनाने लगे। तब से देव दीपावली की शुरूआत हुई है।
एक अन्य कथा के अनुसार महर्षि विश्वामित्र ने देवताओं की सत्ता को चुनौती देकर अपने तप बल से त्रिशंकु को सशरीर स्वर्ग भेज दिया था। यह देखकर नाराज देवताओं ने त्रिशंकु को वापस पृथ्वी पर भेजना चाहा। लेकिन महर्षि विश्वामित्र ने अपने तपोबल से उन्हें हवा में ही रोक दिया और नई स्वर्ग तथा सृष्टि की रचना प्रारंभ कर दी। यह देख देवताओं ने महर्षि से प्रार्थना की। तब उन्होंने दूसरे स्वर्ग और सृष्टि की रचना बंद कर दी। इससे प्रसन्न देवताओं ने दिवाली मनाई थी।
देव दीपावली शुरु करने में रानी अहिल्याबाई होलकर का बड़ा योगदान
काशी में देव दीपावली को स्थापित करने में रानी अहिल्याबाई होलकर ने भी बड़ा योगदान दिया था। उन्होंने पंचगंगा घाट पर पत्थरों से बना खूबसूरत ‘हजारा दीपस्तंभ’ स्थापित किया था। जिस पर 1001 से अधिक दीप एक साथ जलता है। यहां दीपों का अद्भुत जगमग प्रकाश ‘देवलोक’ जैसे वातावरण का अनुभव कराता है। हजारे को देख लगता है कि गंगा के गले में स्वर्णिम आभा बिखर रही है। इसे देखने के लिए भी पर्यटक हजारों की संख्या में जुटते है।
वर्ष 1986 में तात्कालीन काशी नरेश स्व. डॉ. विभूति नारायण सिंह ने घाट पर हजारा दीप जलाकर देव दीपावली की विधिवत शुरुआत कराई थी। स्वामी नरेन्द्रानंद बताते हैं कि पंचगंगा, दुर्गाघाट, बिन्दु माधव मंदिर की सीढ़ियों पर वर्षो से दक्षिण भारतीय ब्राह्मणों को दीया जलाते देख नारायण गुरू (मां मंगला गौरी मंदिर के महंत) ने वर्ष 1984 में देव दीपावली की शुरूआत इन घाटों पर की थी। उनके प्रयास स्वरूप वर्ष 1985 से केन्द्रीय देव दीपावली समिति बनाकर इसे वृहद स्वरूप दिया गया।
प्रधानमंत्री के लिए देव दीपावली की खास तैयारी
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के लिए गंगा घाटों पर देव दीपावली के लिए खास तैयारी की गई है। गंगा घाटों पर 11 लाख दीप जलाए जाएंगे और गंगा पार रेत पर सैंड आर्ट भी बनाया गया है। चेतसिंह किला घाट पर लेजर शो की तैयारियां है। क्रूज पर सवार प्रधानमंत्री राजघाट से रविदास घाट तक अद्भुत दीपोत्सव की छटा निहारेंगे।