नरक चतुर्दशी पर बन रहा है आनंद नामक शुभ योग
पं. अतुल शास्त्री
नरक चतुर्दशी को छोटी दीपावली सहित काली चौदस, रूप चौदस, नर्का पूजा या नरक निवारण चतुर्दशी के नाम से भी जाना जाता है। यह दीपावली के पांच दिवसीय महोत्सव का दूसरा दिन है, जिसे हिंदू कैलेंडर अश्विन महीने की विक्रम संवत में कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी अर्थात चौदहवें दिन मनाई जाती है। मान्यता है कि कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी के दिन प्रातः काल तेल लगाकर अपामार्ग (चिचड़ी) की पत्तियाँ जल में डालकर स्नान करने से नरक से मुक्ति मिलती है। स्नान के पश्चात विष्णु मंदिर और कृष्ण मंदिर में भगवान का दर्शन करना अत्यंत पुण्यदायक कहा गया है। इससे पाप कटता है और रूप सौन्दर्य की प्राप्ति होती है। इस दिन सुबह हस्त नक्षत्र होने से आनंद नाम का शुभ योग बन रहा है। इसके अलावा सर्वार्थसिद्धि नाम का एक अन्य शुभ योग भी इस दिन सुबह-सुबह रहेगा। जानिए इस दिन का महत्व, यम तर्पण की विधि व अन्य खास बातें :
अभ्यंग स्नान मुहूर्त :
सुबह 6 बजे से पहले
चौघड़िया मुहूर्त :
सुबह 06ः34 से 07ः57 तक-लाभ
सुबह 07ः57 से 09ः19 तक-अमृत
सुबह 10ः42 से दोपहर 12ः04 तक-शुभ
दोपहर 02ः49 से 04ः12 तक-चर
शाम 04ः12 से 05ः34 तक-लाभ
पूजन विधि :
इस दिन शरीर पर तिल के तेल की मालिश करके सूर्योदय से पहले स्नान करने का विधान है। स्नान के दौरान अपामार्ग (एक प्रकार का पौधा) को शरीर पर स्पर्श करना चाहिए। अपामार्ग को निम्न मंत्र पढ़कर मस्तक पर घुमाना चाहिए : सितालोष्ठसमायुक्तं सकण्टकदलान्वितम्। हर पापमपामार्ग भ्राम्यमाणः पुनः पुनः। नहाने के बाद साफ कपड़े पहनकर, तिलक लगाकर दक्षिण दिशा की ओर मुख करके निम्न मंत्रों से प्रत्येक नाम से तिलयुक्त तीन-तीन जलांजलि देनी चाहिए। यह यम-तर्पण कहलाता है। इससे वर्ष भर के पाप नष्ट हो जाते हैं : ऊं यमाय नमः, ऊं धर्मराजाय नमः, ऊं मृत्यवे नमः, ऊं अन्तकाय नमः, ऊं वैवस्वताय नमः, ऊं कालाय नमः, ऊं सर्वभूतक्षयाय नमः, ऊं औदुम्बराय नमः, ऊं दध्राय नमः, ऊं नीलाय नमः, ऊं परमेष्ठिने नमः, ऊं वृकोदराय नमः, ऊं चित्राय नमः, ऊं चित्रगुप्ताय नमः। इस प्रकार तर्पण कर्म सभी पुरुषों को करना चाहिए, चाहे उनके माता-पिता गुजर चुके हों या जीवित हों। फिर देवताओं का पूजन करके शाम के समय यमराज को दीपदान करने का विधान है। नरक चतुर्दशी को छोटी दीपावली इसलिए कहा जाता है क्योंकि दीपावली से एक दिन पहले, रात के वक्त उसी प्रकार दिए की रोशनी से रात के तिमिर को प्रकाश पुंज से दूर भगा दिया जाता है, जैसे दीपावली की रात को। इस रात दीप जलाने की प्रथा के संदर्भ में कई पौराणिक कथाएं और लोक मान्यताएं हैं। एक पौराणिक कथा के अनुसार, आज के दिन ही भगवान श्री कृष्ण ने अत्याचारी और दुराचारी नरकासुर का वध किया था और सोलह हजार एक सौ कन्याओं को नरकासुर के बंदी गृह से मुक्त कर उन्हें सम्मान प्रदान किया था। इस उपलक्ष्य में दीयों से पूरा घर सजाया जाता है।
इस कथा के अलावा एक और कथा है रन्ति देव नामक एक पुण्यात्मा और धर्मात्मा राजा की। रन्ति देव से अनजाने में भी कोई पाप नहीं हुआ था, लेकिन जब मृत्यु का समय आया तो उनके सामने यमदूत आ खड़े हुए। यमदूत को सामने देख राजा अचंभित हुए और बोले मैंने तो कभी कोई पाप कर्म नहीं किया फिर आप लोग मुझे लेने क्यों आए हो क्योंकि आपके यहां आने का मतलब है कि मुझे नर्क जाना होगा। आप मुझ पर कृपा करें और बताएं कि मेरे किस अपराध के कारण मुझे नरक जाना पड़ रहा है। पुण्यात्मा राजा की अनुनय भरी वाणी सुनकर यमदूत ने कहा कि हे राजन्! एक बार आपके द्वार से एक भूखा ब्राह्मण लौट गया। यह उसी पापकर्म का फल है। दूतों की इस प्रकार कहने पर राजा ने यमदूतों से कहा कि मैं आपसे विनती करता हूं कि मुझे वर्ष का और समय दे दे। यमदूतों ने राजा को एक वर्ष की मोहलत दे दी। राजा अपनी परेशानी लेकर ऋषियों के पास पहुंचा और उन्हें सब वृतान्त कहकर उनसे पूछा कि कृपया इस पाप से मुक्ति का क्या उपाय है। ऋषि बोले कि हे राजन्! आप कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी का व्रत करें और ब्रह्मणों को भोजन करवा कर उनसे अनके प्रति हुए अपने अपराधों के लिए क्षमा याचना करें। राजा ने वैसा ही किया जैसा ऋषियों ने उन्हें बताया। इस प्रकार राजा पाप मुक्त हुए और उन्हें विष्णु लोक में स्थान प्राप्त हुआ। उस दिन से पाप और नर्क से मुक्ति हेतु भूलोक में कार्तिक चतुर्दशी के दिन का व्रत प्रचलित है। यूँ तो पूरे भारतवर्ष में रूप चतुर्दशी का पर्व यमराज के प्रति दीप प्रज्वलित कर, यम के प्रति आस्था प्रकट करने के लिए मनाया जाता है, लेकिन बंगाल में मां काली के जन्मदिन के रूप में भी मनाया जाता है, जिसके कारण इस दिन को काली चौदस कहा जाता है। इस दिन मां काली की आराधना का विशेष महत्व होता है। ज्योतिषाचार्य पंडित अतुल शास्त्री जी यह भी कहते हैं इस त्योहार को मनाने का मुख्य उद्देश्य घर में उजाला और घर के हर कोने को प्रकाशित करना है। कहा जाता है कि दीपावली के दिन भगवान श्री राम चन्द्र जी चौदह वर्ष का वनवास पूरा कर अयोध्या आये थे तब अयोध्या वासियों ने अपनी खुशी के दिए जलाकर उत्सव मनाया व भगवान श्री रामचन्द्र माता जानकी व लक्ष्मण का स्वागत किया। कहीं कहीं पर ये भी माना जाता है की आज के दिन हनुमान जी का जन्म हुआ था।
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