धनुष न बाण, छिनी कमान

मुकुंद

आखिरकार भारत निर्वाचन आयोग ने महाराष्ट्र के अंधेरी पूर्व विधानसभा क्षेत्र के लिए आगामी उपचुनाव में शिवसेना के चुनाव चिह्न ‘धनुष-बाण’ के उपयोग पर अगले आदेश तक रोक लगा दी है। इसलिए मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे समूह और पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे समूह के उम्मीदवार अलग-अलग चुनाव चिह्न से चुनाव मैदान में होगें। अब इन दोनों समूहों को चुनाव आयोग से अधिसूचित मुक्त प्रतीकों की सूची में से अलग-अलग चुनाव चिह्न का चयन करना होगा। यह ठाकरे परिवार खासतौर पर उद्धव ठाकरे के लिए जहर के घूंट पीना जैसा है।

हालांकि शिवसेना के ठाकरे धड़े ने आयोग से पार्टी के 10 से 15 लाख प्राथमिक सदस्यता आवेदन जमा करने के लिए चार सप्ताह की अवधि मांगी थी। चुनाव चिह्न ‘धनुष बाण’ पर अपना पक्ष भी रखा था। मगर उसे राहत नहीं मिली। उद्धव ठाकरे को मिले इस झटके को एकनाथ शिंदे के गुट के लिए बड़ी जीत माना जा रहा है। इस गुट ने धनुष-बाण पर दावा करते हुए आयोग को पत्र लिखा था। इसके बाद ही यह सारा झमेला खड़ा हुआ। …और अब मातोश्री की उदासी स्वाभाविक है। शिवसेना के संस्थापक स्वर्गीय बाला साहेब ठाकरे (बाल ठाकरे) की आत्मा भी इससे दुखी हुई होगी। बाला साहेब ठाकरे का पूरा नाम बाल केशव ठाकरे था।

कट्टर हिंदू नेता की छवि पा चुके बाल ठाकरे ने अपनी पार्टी शिव सेना का गठन किया। वह शुरुआत में मशहूर कार्टूनिस्ट थे और बाद में अपना खुद का अखबार सामना निकला। इन्हें हिंदू हृदय सम्राट भी कहा जाता है। यह भी काबिले जिक्र है कि 28 जुलाई, 1999 को भारतीय निर्वाचन आयोग ने बाल ठाकरे को नफरत और डर की राजनीति करने के कारण वोट डालने और चुनाव लड़ने पर रोक लगा दी गई। लगातार छह साल राजनीति से दूर रहने के बाद बाल ठाकरे ने 2005 में मतदान किया था। खास बात यह है कि बाल ठाकरे ने अपने पूरे जीवन में कभी भी चुनाव नही लड़ा और न ही कोई राजनीतिक पद प्राप्त किया। मगर महाराष्ट्र की राजनीति में उन्होंने अहम भूमिका निभाई। और उद्धव ठाकरे उनकी शिवसेना को नहीं संभाल पाए।

महाराष्ट्र की सियासत में शिवसेना का कुछ महीने पहले तक अपना एक वजूद रहा है। इसे बगावत के बाद एकनाथ शिंदे ने तोड़ दिया है। बड़ी बात यह है कि किसी भी पार्टी की पहचान उसका चुनाव चिह्न होता है। शिवसेना लंबे समय से धनुष-बाण पर ही चुनाव लड़ती आई है। यह पहला मौका होगा जब उसके सिपहसलारों को किसी दूसरे चुनाव चिह्न पर मैदान पर उतरने को विवश होना होगा। आज बाल ठाकरे की शिवसेना को ऐसे दिन देखने पड़ेगें, यह किसी ने भी कभी सपने में भी नहीं सोचा होगा।

हाल ही में एकनाथ शिंदे की बीकेसी मैदान में हुई दशहरा रैली का दृश्य ज्यादा पुराना नहीं है। यहां मंच पर 51 फीट की तलवार की पूजा हुई थी। माना जा रहा है शिंदे गुट चुनाव चिह्न के तौर पर तलवार का चयन कर सकता है। ठीक इससे उलट शिवाजी पार्क में उद्धव ठाकरे की दशहरा रैली के मंच पर बाघ की तस्वीर थी। लिहाजा यह कहा जा रहा है कि ठाकरे गुट इसे अपना चुनाव चिह्न बना सकता है।

जून 1966 में अपने स्थापना काल से शिवसेना अब तक के चुनाव सफर में कई चिह्न का प्रयोग कर चुकी है। इनमें रेल इंजन, पेड़ और ढाल-तलवार शामिल हैं। साल 1989 में चार सांसदों के लोकसभा पहुंचने के बाद शिवसेना को मौजूदा ‘धनुष-बाण’ चुनाव चिह्न मिला था। शिवसेना ने 1968 में मुंबई नगर निगम का चुनाव ढाल और तलवार चिह्न पर लड़ा था। साल 1978 का चुनाव शिवसेना ने रेल इंजन के निशान पर लड़ा था। 1985 के विधानसभा चुनाव में शिवसेना उम्मीदवार टॉर्च, बैट-बॉल जैसे चिह्न लेकर मैदान में उतरे थे। इसी साल आठ जुलाई को उद्धव ठाकरे ने मातोश्री में पत्रकारों से बातचीत में भरोसे के साथ कहा था कि उनकी शिवसेना का चुनाव चिह्न ‘धनुष-बाण’ कोई नहीं छीन सकता। मगर अब तो वह छिन चुका है। उद्धव ठाकरे को उम्मीद नहीं रही होगी कि चार माह में सबकुछ बदल जाएगा। हालांकि यह लड़ाई कानून की चौखट पर जा सकती है, उसका हासिल क्या होगा, यह देखना दिलचस्प होगा।

(लेखक, हि. स. से संबद्ध हैं।)

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