दास्तां है तीन अम्माओं की!

के. विक्रम राव

बल्कि यह किस्सा है एक माता और दो वालिदाओं का। इनमें सर्वप्रथम परखें बेगम खुशनुदा को। उन्हें हार्दिक सलाम! अपने बेटे गुलाम मोहम्मद की लाश लेने से उन्होंने साफ इन्कार कर दिया। माफिया अतीक अहमद का गुलाम मोहम्मद शूटर था। उसी ने प्रयागराज में उमेश पाल को भून दिया था। जैसी करनी, वैसी भरनी, मानकर रसूलाबाद से झांसी अम्मी खुशनुदा बेगम नहीं गईं। नतीजन लावारिस लाश को पुलिस ने ठिकाने लगाया। खुशनुदा ने योगी शासन की तारीफ की। कहा : “बिल्कुल सही काम किया। नेक भी।“ लेकिन उनका दिल तो मां का है। एक पुरानी यहूदी कहावत है कि भगवान हर जगह उपस्थित नहीं रह सकता है। अतः उसने माताओं की सृष्टि की है। बालक गुलाम मोहम्मद से अम्मी खुशनुदा बड़ा प्यार करती थी। सिखाया था कि स्कूल से एक पेंसिल भी उठा मत लाना। मगर उन्हें नहीं पता था कि बड़ा होकर यही बेटा पाकिस्तान से आयात आधुनिकतम आग्नेय शस्त्रों से खेलेगा। कितना विलक्षण है कि शूटर गुलाम का भाई राहिल सत्तारूढ़ भाजपा अल्पसंख्यक मोर्चा का प्रयागराज में जिलाध्यक्ष रहा। उमेश पाल हत्याकांड के बाद राहिल हसन को भी पुलिस ने हिरासत में लिया था। करीब 14 दिन तक पूछताछ के बाद उसे छोड़ दिया। लगते-जिगर गुलाम मोहम्मद को खुशनुदा बेगम सुधार नहीं पाई। माफिया अतीक का जादू भारी पड़ा था। अब गौर करें बेगम शाइस्ता परवीन अतीक पर! आज लेडी डॉन बन बैठी है। अरबों रुपयों की मालकिन है। रोकड़ा और जायदाद में। फोन पर धमकी देती है, वसूली करती है। शौहर और एक बेटा मार दिया गया। बाकी जेल में हैं। यह खातून अपने नाम के एकदम विपरीत है। फारसी शब्द शाइस्ता के अर्थ हैं : सभ्य, शिष्ट, काबिल, योग्य, उत्तम, श्रेष्ठ, उम्दा आदि। सब इस महिला डॉन पर उल्टे पड़ते हैं। इतनी निर्मम है कि न अपने पति (अतीक अहमद) और न अपने बेटे (असद अहमद) के आखिरी रुसूम में शामिल हुई। मानों कोई लेना देना ही नही उनसे? बीवी और वालिदा हैं। फिर भी इतनी पाषाण-हृदया? साधारण पुलिस सिपाही मियां मोहम्मद हारून की बड़ी बेटी, शाइस्ता बाल्यकाल से ही पुलिस क्वार्टर में रही थी। खाकी की सारी जानकारी मिली थी। बड़ी होकर माफिया सरगना से निकाह हो जाने पर कानून के शत्रुओं से साबका हुआ। वे ही एकमात्र ऐसी सियासती व्यक्ति है जिसका निजी संपर्क अंबेडकरवादी, लोहियावादी और कट्टर जिन्नावादी से हुआ। वह हैदराबादी मियां असदुद्दीन ओवैसी की मजिलिसे इत्तिहादे मुसलमीन (सितम्बर 2021) के साथ थी। फिर अकील के मार्फत मुलायम सिंह के संपर्क में आई।
इसी जनवरी में बहुजन समाज पार्टी की बहन कुमारी सुश्री मायावती के पाले में आ गई। प्रयागराज के मेयर की प्रत्याशी बनने जा रही थी। उमेश पाल की हत्या से न चमकती तो शाइस्ता महापौर बन जाती। तब संगम नगरी को अधिक पुनीत, पतित पावन बना देती। शौहर अतीक अहमद प्रयागराज का नवाब बन जाता। आज उसकी बीवी शाइस्ता के सिर पर पचास हजार रुपए का इनाम है। अतीक के रसूख का एक और उदाहरण। भारत सरकार की नियंत्रिका रहीं सोनिया गांधी के देवर रुस्तम गांधी की संपत्ति (इलाहाबाद के सिविल लाइंस में पैलेस कोर्ट के पीछे) एक महंगे भूभाग पर अतीक ने कब्जा कर लिया था। तब सत्तासीन सोनिया गांधी को राज्य पार्टी मुखिया रीता बहुगुणा जोशी की मार्फत राजीव गांधी के चचेरे भाई रुस्तम की जमीन छुड़ानी पड़ी थी। यहां इतना तो अपेक्षित है योगी सरकार से कि वे प्रधानमंत्री के गृहराज्य गुजरात के भाजपाई मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल से आग्रह कर जांच कराये कि साबरमती जेल में पति से मिलकर शाइस्ता ने किस प्रकार उमेश पाल की हत्या की साजिश रची। मोबाइल फोन जेल में पति को कैसे दिलवा दिया? यूं गुजरात की जेलों में मुट्ठी गर्म कर कैदी कुछ भी करा सकता है। मुझे भी साबरमती जेल का तनिक अनुभव है। तब इंदिरा गांधी का आपातकाल था। बड़ौदा जेल ले जाने के पूर्व मैंने भी साबरमती के दर्शन किए थे। हालांकि बड़ौदा जेल में हम राजनीतिक कैदियों पर कठोरता अधिक थी। मुझ संवाददाता को दैनिक समाचारपत्र नहीं मिलते थे। तन्हा कोठरी में बंद था। एक दिन जेल अधीक्षक मोहम्मद मलिक से मैंने निवेदन किया था। शीघ्र दैनिक पत्र रोज भिजवाना शुरू कर दिया था। बाद में बताया कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यालय में सूचना भिजवा दी थी। फिर एक युवक पहुंचाने लगा था। उस बाइस-वर्षीय स्वयंसेवक का नाम था नरेंद्र दामोदरदास मोदी। अब कुछ तीसरी माताजी के विषय में। वे हैं पंडिताइन आशा यज्ञदत्त तिवारी, बांदा की। उनके सुपुत्र शूटर लवलेश तिवारी दो साथियों के साथ अभी प्रतापगढ़ जेल में हैं। नैनी मे थे। उस रात उनकी हरकत को टीवी पर देखकर तिवारी-दंपत्ति के घर चूल्हा नहीं जला था। मां कहती है कि पुत्र निर्दोष है। पर कुपुत्र की वारदातों से पिता अवगत था। अतः खामोश है। तो यह है संपूर्ण गाथा उन कपूतों के अम्मीजानों की, जिन्होंने भारत के अपराध इतिहास में नया अध्याय जुड़वाया। कहते हैं कि हर मां अपनी खुशी अपनी संतानों में देखती है। कितनी प्रमुदित हो रही होंगी ये तीनों अम्मायें!

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं आइएफडब्लूजे के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं।)

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