ड्रिप पद्धति से पपीते की फसलों पर करें सिंचाई, तेजी से होगा फलों का विकास : डॉ एके सिंह

– सर्दी ऋतु में जरुरी है पपीते की फसल का सही प्रबंधन

कानपुर (हि.स.)। सर्दी का मौसम वैसे तो सभी फसलों के लिए बेहतर होता है और किसानों को उम्मीद रहती है पैदावार अच्छी होगी। ऐसे में पपीता की फसल भी इससे अछूती नहीं है, लेकिन किसानों को फसल का सही प्रबंधन रखना होगा। इसके लिए जरुरी है कि पपीता फसल की सिंचाई ड्रिप पद्धति से करें, ताकि फलों का तेजी से विकास हो सके। यह बातें मंगलवार को सीएसए के निदेशक प्रसार डॉ एके सिंह ने कही।

चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय (सीएसए) के निदेशक प्रसार/समन्वयक डॉक्टर ए के सिंह ने बताया कि पपीते की फसल का प्रबंधन नितांत आवश्यक है। पपीते के पौधों की रोपाई जुलाई-अगस्त के महीने में संपन्न हो जाती है। किसान भाइयों को ऐसी फसल की समसामयिक देखभाल करना आवश्यक है। यदि पौधों पर मिट्टी न चढ़ाई गई हो तो तत्काल शेष पोषक तत्व नत्रजन, फास्फोरस, पोटाश, सूक्ष्म पोषक तत्व 40:50: 50:10 ग्राम प्रति पौधा गुड़ाई करके दे दें। उद्यान वैज्ञानिक डॉक्टर अनिल कुमार सिंह ने बताया कि आने वाले सर्दियों के मौसम में पपीते के खेत में पर्याप्त नमी बनाए रखें क्योंकि पौधों की बड़वार काफी होती है, साथ ही पौधों पर लगे हुए फलों की तेजी से वृद्धि भी होती है।

डॉक्टर सिंह ने बताया कि सर्दियों के मौसम में वैसे तो बीमारियां पौध गलन कम प्रभाव होता है किंतु आवश्यकता से अधिक पानी लग जाने से पपीते के पौधों की जड़ों पर गलने की बीमारी का प्रकोप तेजी से होता है। यदि रोकथाम न की जाए तो यह बीमारी सिंचाई के पानी के साथ और ज्यादा विकराल रूप धारण कर लेती है। इस गलन की बीमारी से बचाव के लिए कॉपर ऑक्सिक्लोराइड दवा 25 ग्राम प्रति 10 लीटर पानी में घोलकर तने के आसपास अच्छी तरीके से तर कर देना चाहिए। यदि बीमारी दोबारा आए तो इसी दवा को फिर से प्रयोग करें।

बताया कि पपीते की खेती में ड्रिप सिंचाई पद्धति का प्रयोग करने से पानी की काफी बचत होती है। साथ ही फलों का विकास भी अच्छी तरह से होता है। फलों की पूर्ण विकास के लगभग 50 से 60 दिनों बाद इनके पकने की प्रक्रिया प्रारंभ होने लगती है। दूर के बाजार में फसल बेचने के लिए फलों की रंग की अवस्था पर ही तोड़ लेना चाहिए तथा अच्छी तरह से अखबार या पुआल से लपेट कर भेजना चाहिए।

डॉक्टर अनिल कुमार सिंह ने बताया कि पपीते के फलों को हानिकारक रसायनों से पकाने की प्रथा का प्रयोग नहीं करना चाहिए। उन्होंने किसान भाइयों को यह भी सलाह दी कि पपीते के फलों को आधुनिक तकनीक से बनाए गए रैपनिंग चेंबर का प्रयोग करने से फलों की गुणवत्ता अच्छी रहती है। तथा बाजार में मूल्य भी अच्छा मिलता है।

अजय

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