टू-जी स्पेक्ट्रम केस : सीबीआई और ईडी की याचिका पर गुरुवार को भी सुनवाई

नई दिल्ली (हि.स.)। दिल्ली हाईकोर्ट टू-जी स्पेक्ट्रम केस में पूर्व केंद्रीय मंत्री ए राजा और दूसरे आरोपितों को ट्रायल कोर्ट से बरी करने के फैसले के खिलाफ सीबीआई और ईडी की याचिका पर कल 15 अक्टूबर को भी सुनवाई जारी रखेगा। बुधवार को एएसजी आत्माराम नाडकर्णी ने कहा कि भ्रष्टाचार निरोधक कानून में संशोधन का मामला हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच में लंबित है, इसलिए इस मसले को डिवीजन बेंच को रेफर किया जाना चाहिए। 
सीबीआई ने पिछले 12 अक्टूबर को सुनवाई के दौरान कहा था कि उसने अपील दायर करने की सभी कानूनी शर्तों को पूरा किया है जबकि आरोपितों ने कहा था कि अपील दायर करने के लिए कानूनी प्रक्रियाओं का पालन नहीं किया गया। सुनवाई के दौरान सीबीआई की ओर से एएसजी संजय जैन ने कहा था कि अपराध प्रक्रिया संहिता की धारा 378 के तहत सीबीआई के स्पेशल पब्लिक प्रोसिक्युटर को अपील दायर करने की जो अनुमति मिली वो एक प्रशासनिक कार्य था और उसमें कोर्ट की सीधे कोई भूमिका नहीं है। अनुमति देना अपील दायर करने की पूर्व शर्त है और उसमें कोर्ट कोई हस्तक्षेप नहीं कर सकता है। उन्होंने कहा था कि इस अपील को दायर करने की सभी कानूनी शर्तें पूरी की गई हैं। उन्होंने कहा था कि इस याचिका का निपटारा करें और भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम में संशोधन संबंधी अर्जी पर विचार करें।
एक आरोपित की ओर से वरिष्ठ वकील एन हरिहरन ने कहा था कि वे पब्लिक प्रोसिक्युटर की नियुक्ति से संबंधित अपराध प्रक्रिया संहिता की धारा 24 के बारे में लॉ कमीशन की रिपोर्ट के बारे में बताना चाहते हैं। इसका संजय जैन ने विरोध करते हुए कहा था कि आप नई चीजों को नहीं रख सकते हैं। कोर्ट ने उनके विरोध को दरकिनार करते हुए हरिहरन को लॉ कमीशन की रिपोर्ट पढ़ने की अनुमति दी। हरिहरन ने कहा था कि अगर पब्लिक प्रोसिक्युटर की नियुक्ति अपराध प्रक्रिया संहिता की धारा 24(8) का उल्लंघन कर की गई है तो वह संविधान की धारा 14 का भी उल्लंघन होगा। पिछले 9 अक्टूबर को सुनवाई के दौरान एक आरोपी आसिफ बलवा की ओर से वकील विजय अग्रवाल ने कहा था कि सीबीआई ने ई-मेल के जरिये दस्तावेज भेजे गए हैं। सीबीआई हाईकोर्ट के रुल्स के मुताबिक दस्तावेज उपलब्ध कराए। उन्होंने हाईकोर्ट के रुल्स का उदाहरण देते हुए कहा था कि दीवानी और आपराधिक मामलों में दस्तावेजों को दाखिल करने में कोई अंतर नहीं है। सभी दस्तावेज फाईलिंग काउंटर पर दाखिल करना चाहिए। ई-मेल की विश्वसनीयता संदेह में है। मैं किसी भी उस दस्तावेज को नहीं देखूंगा जो हलफनामे में नहीं हो।
सीबीआई की ओर से एएसजी संजय जैन ने कहा था कि एक दलील दी गई कि स्पेशल पब्लिक प्रोसिक्युटर की नियुक्ति हाईकोर्ट की सलाह से होनी चाहिए। स्पेशल पब्लिक प्रोसिक्युटर की नियुक्ति के लिए केंद्र को किसी से सलाह करने की जरुरत नहीं है। अगर विधायिका ने ऐसा चाहा होता तो वो इसका प्रावधान करती। हमें अपराध प्रक्रिया संहिता की धारा 24(8) की व्याख्या करने की जरुरत नहीं है। जैन ने कहा था कि सुप्रीम कोर्ट ने धारा 142 के तहत टू-जी केस में स्पेशल पब्लिक प्रोसिक्युटर की नियुक्ति की। जैन ने कहा था कि सुप्रीम कोर्ट ने तुषार मेहता की नियुक्ति को हरी झंडी दे दी है। सरकार ने अपील में जाने का फैसला किया है तो वो कई स्पेशल पब्लिक प्रोसिक्युटर नियुक्त कर सकती है। सरकार वर्तमान पब्लिक प्रोसिक्युटर की भी सेवाएं ले सकती है। इस मामले में सरकार ने ऐसा ही किया है। सभी नियुक्तियां सार्वजनिक हैं। सार्वजनिक दस्तावेज के बारे में आरोपी कैसे कह सकते हैं कि उनकी पहुंच नहीं है।
रिलायंस कम्युनिकेशन की ओर से वकील डीपी सिंह ने कहा था कि 8 फरवरी 2018 को इस मामले में तुषार मेहता की नियुक्ति हुई। इस नोटिफिकेशन में मेहता को वरिष्ठ वकील की बजाय केवल एक वकील बताया गया है। टू-जी मामले पर एक अलग कोर्ट का गठन वैसे ही किया गया था जैसे कोयला घोटाला मामले की सुनवाई के लिए अलग कोर्ट है। सरकार ने टू-जी के लिए न केवल स्पेशल पब्लिक प्रोसिक्युटर की नियुक्ति की बल्कि पब्लिक प्रोसिक्युटर और एडिशनल पब्लिक प्रोसिक्युटर की भी नियुक्ति की।
डीपी सिंह ने कहा था कि हाल ही में दिल्ली दंगों को लेकर नोटिफिकेशन जारी किया गया। इसमें सभी वकीलों की नियुक्ति की गई है। जिसमें सीनियर वकीलों की भी नियुक्ति की गई है। सीनियर वकीलों को दूसरा वकील सहयोग करता है। उन्होंने कहा था कि टू-जी केस में जब यूयू ललित की नियुक्ति की गई थी तो सरकार ने एक पब्लिक प्रोसिक्युटर और एडिशनल पब्लिक प्रोसिक्युटर भी नियुक्ति की थी। अगर एस भंडारी की नियुक्ति की गई तो ये फैसले का बाद किया गया। उनकी नियुक्ति 2014 की है। अपील भंडारी की ओर से तैयार नहीं की गई।
सीबीआई ने दस्तावेज अभी तक आरोपितों को नहीं सौंपेकोर्ट ने पिछले 29 सितम्बर को इस मामले पर जल्द सुनवाई की अनुमति दे दी थी। सुनवाई के दौरान सीबीआई और ईडी की ओर से कहा गया था कि जल्द सुनवाई की मांग के पीछे जनहित है। दूसरी तरफ ए राजा समेत दूसरे आरोपितों ने कहा था कि जल्द सुनवाई की मांग का कोई औचित्य नहीं है, क्योंकि हाईकोर्ट के दिशा-निर्देश के मुताबिक कोरोना के संकट के दौरान बरी किए जाने के फैसले पर सुनवाई करने में कोई जल्दबाजी नहीं होनी चाहिए। 

इस मामले में सीबीआई और ईडी ने ए राजा औऱ कनिमोझी समेत सभी 19 आरोपियों को बरी करने के ट्रायल कोर्ट के फैसले को चुनौती दी है। 25 मई 2018 को कोर्ट ने पूर्व केंद्रीय मंत्री ए राजा और कनिमोझी समेत सभी आरोपितों को नोटिस जारी किया था। हाईकोर्ट ने इसी मामले में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की अपील पर सुनवाई करते हुए सभी आरोपितों को नोटिस जारी किया है। 
पटियाला हाउस कोर्ट ने 21 दिसम्बर, 2017 को फैसला सुनाते हुए सभी आरोपितों को बरी कर दिया था। जज ओपी सैनी ने कहा था कि अभियोजन पक्ष यह साबित करने में नाकाम रहा है कि दो पक्षों के बीच पैसे का लेन-देन हुआ है। 

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