ज्येष्ठ माह का पहला मंगल, अवध में बड़ा मंगल

इं. शैलेन्द्र दुबे

हनुमान सच्चे अर्थों में जननायक हैं। इसीलिए रामभक्त देश में स्वयं श्रीराम के जितने मंदिर हैं, उससे कई गुना ज्यादा हनुमान के हैं। सच तो यह है कि हनुमान ही आम जन को मर्यादा पुरुषोत्तम से जोड़ने वाले सेतु हैं। करोड़ों की श्रद्धा के केंद्र हनुमान अद्भुत हैं। हनुमान रुद्रावतार कहलाते हैं। स्वाभाविक है शिव की तरह ही निस्पृह हैं। उन्हें कुछ नहीं चाहिए, जगत कल्याण के मूर्तिमान प्रतीक। शिव जी का यह अवतार स्वयं शिव जी का परिमार्जन भी है। शिव भोला भंडारी हैं, सब पर विश्वास कर लेते हैं, भस्मासुर पर भी। हनुमान भी मूर्तिमान विश्वास हैं, प्रभु श्रीराम का उनसे बड़ा कोई भक्त नहीं। परन्तु जब ऋष्यमूक पर्वत पर राम लखन से मिले तो रूप बदल कर, पूरी सतर्कता से, पहले पुष्टि की क़ि यही राम लक्ष्मण हैं, तभी सुग्रीव को प्रभु श्रीराम से मिलवाया। लंका में भी विभीषण का केवल महल देखकर ही निर्णय नहीं लिया। पहले छुपकर उसे देखा, परखा। जब देख लिया कि सोकर उठने के बाद विभीषण ने श्री राम का नाम लिया, तभी उसे अपना परिचय दिया। संदेश यह कि केवल किसी के परिवेश और पहनावे को देखकर भरोसा न करें, कृतत्व को भी देखें, तभी विश्वास करें। इसलिए हनुमान ही हैं जिनका विश्वास कभी धोखा नहीं खाया। स्वयं श्रीराम, माता सीता के कहने पर स्वर्ण मृग की मरीचिका के पीछे चले गए। मारीच ने जब लक्ष्मण का नाम लेकर आर्तनाद किया तो माता सीता भी विचलित हो गईं। एक बारगी उनका भी श्रीराम की सामर्थ्य से विश्वास डोल गया, परन्तु एक भी ऐसा प्रसंग नहीं कि हनुमान जी के विश्वास से कोई संकट हुआ हो। तर्क और विश्वास का सर्वोत्तम सम्मिश्रण हैं हनुमान।

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ज्ञान गुणी सागर हुनुमान वीरता और धीरता के भी अद्भुत प्रतीक हैं। हनुमान हर परीक्षा में खरे उतरे और हर परीक्षा उन्होंने उसी भाषा में दी, जो उचित थी। लंका गमन के समय तीन परीक्षा की घड़ी आईं। देवताओं की भेजी सर्प माता सुरसा, छाया पकड़कर पक्षियों का शिकार करने वाली राक्षसी और लंका की प्रहरी लंकिनी। हनुमान जी ने तीनों का सामना बुद्धि और बल की अलग-अलग युक्ति से किया। सुरसा का विश्वास जीता-आशीर्वाद लिया, राक्षसी का संहार किया, लंकिनी पर सीमित शक्ति का प्रयोग कर उसे ब्रम्हा जी का वचन याद दिलाया। शक्ति और युक्ति का अद्भुत प्रयोग। लक्ष्य के प्रति समर्पण ऐसा कि पितृवत पर्वतराज मैनाक भी जब विश्राम का आग्रह करते हैं तो बड़ी विनम्रता से कहते हैं ‘राम काज कीन्हे बिना मोहि कहाँ विश्राम।’ कभी पराजित न होने वाले योद्धा के रूप में भी मात्र रीछ राज जाम्बवंत ही उनके समकक्ष दिखाई देते हैं। हनुमान अद्भुत संवाद भी करते हैं। उनसे बड़ा तो कोई कथावाचक है ही नहीं। अशोक वाटिका में माता सीता क्रंदन कर रहीं हैं। त्रिजटा से लेकर अशोक के वृक्ष तक से अंगार मांग रहीं हैं। जीवन समाप्त करना चाह रहीं हैं। ऐसे नैराश्य के बीच धीरे से प्रगट होते हैं और कुछ ही देर में न केवल उनका दुख हर लेते हैं, वरन उनमें इतना विश्वास भी जागृत कर देते हैं कि वही माता सीता उन्हें सहर्ष अशोक वाटिका के सुभट राक्षस चौकीदारों से भिड़कर भूख मिटाने की अनुमति दे देती हैं। दूसरी ओर जब लौटकर श्रीराम के पास पहुंचते हैं तो ऐसा वर्णन करते हैं कि श्रीराम की आंखों से अश्रु की धार टूट पड़ती हैं। भुजाएं फड़कने लगती हैं और बिना एक क्षण की देरी के लंका प्रस्थान का निश्चय होता है। संवाद की ऐसी कला और क्षमता ही जन मानस को झकझोरती है। एक युग को दिशा देती है।

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आज हमारी स्थिति भी भटकते वानर समूह सी है, आशंकाओं में जी रहे हैं, छुपे-छुपे फिर रहे हैं। चुनौतियां चहुं ओर हैं। ठौर के लिए कोई ऋष्यमूक नहीं है। मिल भी जाये तो राम काज के लिए लंका का रास्ता बताने वाला कोई संपाती भी नहीं। समुद्र किनारे न कोई युवा अंगद है न बुजुर्ग जाम्बवन्त। ऐसे में हनुमान जी ही सहारा हैं। राम से मिलवाने के लिए तो हनुमान रहते हैं, पर हनुमान जी महाराज से कैसे मिलें, यह यक्ष प्रश्न है। तो आइए, ज्येष्ठ माह के पहले बड़े मङ्गल की शुरुआत हनुमान जी की प्रार्थना से ही करें कि वे ही सामर्थ्य और सद्बुद्धि प्रदान करें कि हम खुद से आगे भी देख सकें और विश्वास में धोखा भी न खाएं। सफर में थकें नहीं, समर्पण में टूटें नहीं, संवाद में छूटे नहीं। जय जय संकट मोचन। हनुमान जी पथ प्रदर्शित करें।
(लेखक आल इंडिया पावर इंजीनियर्स फेडरेशन के चेयरमैन हैं।)

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