ज्ञानवापी तो मूल उपासकों को ही मिलेगी!

के. विक्रम राव

भोले शिवशंकर की नगरी काशी के ज्ञानवापी विवाद पर न्यायिक निर्णय कल (21 जुलाई 2023) आ गया। जिला न्यायाधीश डॉ. अजय कृष्ण विश्वेश ने निर्दिष्ट किया कि भारत का पुरातत्व विभाग जांच करेगा कि क्या उस स्थल पर शिव मंदिर कभी था? इससे संरचना तथा कालखंड तय हो जाएगा। अर्थात हिंदू पक्ष की यह स्पष्ट विजय है। ऐतिहासिक सच की भी कि मुगलों ने इस ज्योतिर्लिंग स्थल को ध्वस्त कर मस्जिद बनाई थी। यह निर्विवाद और पूर्व प्रमाणित तथ्य एक बार फिर स्थापित हो जाएगा। ठीक जैसे अयोध्या में हुआ था। वर्षों तक संघर्ष करने के बाद कहीं सिद्ध हुआ था कि उज्बेकी लुटेरे जहीरूद्दीन बाबर ने मर्यादा पुरुषोत्तम राम के जन्म स्थल को तोड़ा था और मस्जिद निर्मित की थी। यहां पुरातत्व विभाग की खोज में वाराह (सुअर) की प्रतिमा मिली थी। विष्णु के अवतार का चिन्ह है। इस्लाम में यह अत्यंत घृणित पदार्थ है। अर्थात बाबरी मस्जिद तले सूअर का बुत!! बस शक की लेशमात्र गुंजाइश भी नहीं रह गई कि राम मंदिर तोड़कर बाबरी मस्जिद बनाई गयी थी। ज्ञानवापी में तो बड़ी सुगमता से सिद्ध हो जाएगा कि औरंगजेब आलमगीर के हमलावरों ने ज्योतिर्लिंग तोड़ा था। शायद इसी संभावना के कारण गत वर्ष (13 मई 2022) को प्रधान न्यायाधीश एनवी रमण की खंडपीठ ने पुरातत्व सर्वेक्षण पर रोक लगाने की याचिका खारिज कर दी थी। इस पर मुस्लिम पक्ष की पैरोकार हुजैफा अहमदी का आग्रह रहा। अब पुरातत्व विभाग पड़ताल करेगा कि बीते साल के मई महीने में हुए सर्वे में मस्जिद की पश्चिमी दीवार पर मिले निशान और अवशेषों से क्या यह साफ है कि मंदिर की दीवार यह है। मस्जिद के गुंबद के नीचे भी मंदिर के प्रमाण मिले हैं। वैज्ञानिक जांच से किसी संरचना के निर्माण की शैली से पुरातत्व विशेषज्ञ स्पष्ट और प्रमाणित कर देते हैं कि उस का कालखंड क्या है?
इस सर्वेक्षण से यह भी साबित हो जाएगा कि मुस्लिम पक्ष के दावे कितने वास्तविक थे? मसलन क्या ज्ञानवापी में पहले से मस्जिद थी? इस सर्वेक्षण के संदर्भ में ही 1936 के संयुक्त प्रांत (यूपी) के ब्रिटिश शासन द्वारा एक याची दीन मोहम्मद बनाम बाबा विश्वनाथ (सिविल सूट 62/1936 वाले) के दावे में शासकीय हलफनामा बहुत खास प्रमाण वाला है। इसके द्वारा मुसलमानों के सेटलमेंट प्लाट संख्या 9130 (विश्वनाथ मंदिर क्षेत्र) का भी संदर्भ लेना होगा। इस याचिका को उच्च और सर्वाेच्च न्यायालयों ने खारिज कर दिया था। इसमें पहले प्रदेश शासन ने दोनों प्रार्थनाओं को निरस्त कर दिया था कि इसे वक्फ संपत्ति घोषित की जाए तथा अजान की अनुमति मिले। शासकीय हलफनामों में स्पष्ट था कि ज्ञानवापी में मूर्तियां मुगलकाल के पूर्व से ही रखी गईं थीं। अब इसी सिलसिले में कांग्रेस, समाजवादी तथ्य अन्य लोकतांत्रिक सेक्युलर दलों के ध्यानार्थ बापू का एक संपादकीय पेश है। महात्मा गांधी ने स्पष्ट लिखा था: “मंदिरों की जमीन पर अवैध कब्जों पर हो मंदिरों के पुनर्निर्माण, मंदिरों को तोड़कर बनाई गई मस्जिदें गुलामी के चिन्ह हैं।” अपनी पत्रिका “यंग इंडिया” में महात्मा गांधी ने बड़े स्पष्ट तौर पर यही लिखा था। आज इस पत्रिका के स्वामी हैं सोनिया गांधी व राहुल गांधी। अब बापू से बढ़कर भारतीय मुसलमानों के हमदर्द और शुभचिंतक कौन होंगे? उनका संपादकीय प्रभावी रहा: “अगर ‘अ’ (हिन्दू) का कब्जा अपनी जमीन पर है और कोई शख्स उस पर कोई इमारत बनाता है, चाहे वह मस्जिद ही हो, तो ‘अ’ को यह अख्तियार है कि वह उसे गिरा दे। मस्जिद की शक्ल में खडी की गयी हर एक इमारत मस्जिद नहीं हो सकती। वह मस्जिद तभी कही जायेगी, जब उसके मस्जिद होने का धर्म-संस्कार कर लिया जाये। बिना पूछे किसी की जमीन पर इमारत खडी करना सरासर डाकेजनी है। डाकेजनी पवित्र नहीं हो सकती। अगर उस इमारत को जिसका नाम झूठ-मूठ मस्जिद रख दिया गया हो, उखाड़ डालने की इच्छा या ताकत ‘अ’ में न हो, तो उसे यह हक बराबर है कि वह अदालत में जाये और उसे अदालत द्वारा गिरवा दे।” (मूलतः यंग इंडिया: 5 फरवरी 1925 को प्रकाशित; गाँधी सम्पूर्ण वांग्मय, खंड 26, पृष्ठ 65-66)।
प्रस्तुत है पत्रिका “सेवा समर्पण” में प्रकाशित गांधी जी के मूल लेख की छायाप्रति: “किसी भी धार्मिक उपासना गृह के ऊपर बलात अधिकार करना बड़ा जघन्य पाप है। मुगल काल में धार्मिक धर्मान्धता के कारण मुगल शासकों ने हिन्दुओं के बहुत से धार्मिक स्थानों पर कब्जा कर लिया था जो हिन्दुओं के पवित्र आराधना स्थल थे। इनमें से बहुत से लूटपाट कर नष्ट-भ्रष्ट कर दिए गए और बहुत को मस्जिद का रूप दे दिया। यद्यपि मन्दिर और मस्जिद यह दोनों ही भगवान की उपासना के पवित्र स्थान हैं और दोनों में कोई भेद नहीं है तथापि हिन्दु और मुसलमान दोनों की उपासना परम्परा अलग-अलग है। धार्मिक दृष्टिकोण से एक मुसलमान यह कभी बर्दाश्त नहीं कर सकता कि उसकी मस्जिद में, जिसमें वह बराबर इबादत करता चला आ रहा है, कोई हिन्दू उसमें कुछ ले जाकर धर दे। इसी तरह एक हिन्दू भी कभी यह सहन नहीं करेगा कि उसके उस मन्दिर में, जहां वह बराबर राम, कृष्ण, शंकर, विष्णु और देवों की उपासना करता चला आ रहा है कोई उसे तोड़कर मस्जिद बना दे। जहां पर ऐसे कांड हुए हैं वास्तव में ये चिन्ह गुलामी के हैं। हिंदू-मुसलमान दोनों को चाहिए कि जहां भी ऐसे झगड़े हों, वहां आपस में तय कर लें। मुसलमानों के वे पूजन-स्थल जो हिन्दुओं के अधिकार में हैं। हिन्दू उन्हें उदारता पूर्वक मुसलमानों को लौटा दें, इसी तरह हिन्दुओं के जो धार्मिक स्थल मुसलमानों के कब्जे में हैं उन्हें खुशी-खुशी हिन्दुओं को सौंप दें। इससे आपसी भेदभाव नष्ट होगा, हिन्दू-मुसलमानों में आपस में एकता की वृद्धि होगी, जो भारत जैसे धर्म प्रधान देश के लिए वरदान सिद्ध होगी।” ज्ञानवापी के जुड़े हुये तर्क और सत्य अत्यधिक प्रभावी हैं।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं आइएफडब्लूजे के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं।)

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