जो छपता है, वह शत-प्रतिशत सच नहीं होता !
के. विक्रम राव
यह एक गंभीर सबक है हर जिम्मेदार पत्रकार के लिए। एक प्रमुख अंग्रेजी दैनिक के पूर्व वरिष्ठ संपादक की गफलत, नासमझी और असावधानी का अंजाम है कि राजस्थान कांग्रेस में द्वंद्वयुद्ध ढीला पड़ गया। भाजपा को हानि हो गई। कारण ? इस पार्टी ने बुनियादी व्यावहारिक नियम की अनदेखी कर दी कि अखबार में जो छपा वह शत-प्रतिशत सच नहीं होता। इस तथ्य की अनुभूति अब भाजपा को पूर्णतया हो जानी चाहिए।
तो क्या मामला है ? राजस्थान में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और सचिन पायलट में टकराव हो रहा है। इसका भाजपा को लाभ होता। सोनिया-कांग्रेस के समक्ष उठापटक की समस्या उभर रही थी। खुद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने बांसवाड़ा (राजस्थान) दौरे पर (1 नवंबर 2022) कांग्रेस की इस गुटबाजी का उल्लेख सार्वजनिक तौर पर किया था। मगर अशोक सिंह लक्ष्मण सिंह गहलोत अपने पिताजी की भांति स्वयं भी जादूगर हैं। हर संकट को माकूल बना लेने की विलक्षणता रखते हैं। पर घटनाक्रम ने तेजी से करवट बदला गत 10 अगस्त से। तब लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव पर बहस का उत्तर देते हुए प्रधानमंत्री ने बताया कि किस भांति 5 मार्च 1966 को इंदिरा गांधी ने मिजोरम में भारतीय नागरिकों पर बमबारी कराई थी। यहां तक बात ठीक थी। मोदी के इस त्रासदपूर्ण घटना के वर्णन से लोकसभा में विपक्ष, खासकर कांग्रेस की दशा दयनीय हो गई थी।
उस दौर में मेजर जनरल रुस्तम जाल काबराजी 61 माउंटेन ब्रिगेड का थलसेना का कमांड अगरतला में कर रहे थे। उनकी सहायता के लिए भारतीय वायुसेना के 29 स्क्वेड्रन और 14 स्क्वेड्रन भेजे गए थे। बागडोगरा वायुयान स्थल से तूफानी (फ्रांसीसी डसाल्ट आरागन) जहाज तैनात किए गए थे। विवाद इस पर उठा कि क्या भारतीय वायुसेना के बमवर्षकों में राजेश पायलट शामिल थे ? वे भारतीय वायुसेना के अफसर थे। इस बात को इंडियन एक्स्प्रेस के संपादक शेखर गुप्ता ने 2011 में लिखा था। इसी को 2020 में उन्होंने दुहराया था। करीब 35 वर्षों बाद। इस विषय पर भाजपा नेता अमित मालवीय ने लिखा कि राजेश पायलट और सुरेश कलमाड़ी भारतीय वायुसेना के उन विमानों को उड़ा रहे थे। गमनीय बात इस प्रकरण में यह है कि स्वर्गीय राजेश पायलट राष्ट्रभक्त सैनिक अफसर थे। उनका राजनीति में प्रवेश और काबीना मंत्री बनना भी एक बड़ा दिलचस्प वाकया है।
वर्ष 1979 की एक सुबह राजेश पायलट को दिल्ली से एक फोन कॉल आया। तब वह जैसलमेर में तैनात थे। दूसरी तरफ स्वयं इंदिरा गांधी थीं, जो उस वक्त प्रधानमंत्री नहीं थीं। इंदिरा गांधी ने उन्हें कहा – “समय आ गया है, अब तुम्हारा ड्रीम पूरा होने वाला है। तुम्हें राजनीति में आना है। तुम्हें लोकसभा का चुनाव (1980) लड़ना है। वायुसेना से इस्तीफा दे दो।” राजेश पायलट इस्तीफा देकर अगली सुबह दिल्ली पहुंच गए। उन्होंने वायुसेना से 1979 में इस्तीफा दे दिया था। लोकसभा चुनाव होने में करीब छह महीने शेष थे। इंदिरा ने उन्हें उनकी जन्मभूमि पश्चिमी उत्तर प्रदेश के बजाय भरतपुर (राजस्थान) से लोकसभा का टिकट दिया। यह नामकरण भी इंदिरा गांधी ने ही किया। उन्होंने राजेश्वर प्रसाद विधूड़ी को कहा कि “तुम अब पायलट हो। अब यही तुम्हारी पहचान है। बहुत लंबा नाम है राजेश्वर प्रसाद विधूड़ी। जनता के बीच जल्द स्थापित होने के लिए लोकप्रिय नाम चाहिए। तुम्हारा नाम होगा राजेश पायलट।”
इस संपूर्ण पटकथा का क्लाइमैक्स (चरमोत्कर्ष) हुआ जब राजेश पायलट के पुत्र और गहलोत के प्रतिस्पर्धी सचिन पायलट ने एक दस्तावेज सार्वजनिक कर दिया। (चित्र देखें) यह राजेश पायलट का शासकीय नियुक्ति पत्र है जिस पर तत्कालीन राष्ट्रपति वीवी गिरी ने 29 अक्टूबर 1966 को हस्ताक्षर किए थे। अर्थात मिजोरम पर बमबारी के समय (5 मार्च 1966) राजेश पायलट वायुसेना के आसपास भी नहीं थे। तो कैसे मिजोरम में रहते ? तारीखें और तथ्य झूठ नहीं बोलते। भाजपा को जवाब टटोलना होगा।
(लेखक, वरिष्ठ पत्रकार हैं।)