जानें नागा साधु, साध्वी की रहस्यमय दुनिया!
नालेज डेस्क
आपने नागा साधु को देखा होगा कि वह कभी कपड़े नहीं पहने होता है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि ये साधु कपड़े क्यों नहीं पहनते हैं? नागा साधु हिंदू धर्मावलंबी साधु हैं, जो कि नग्न रहने और युद्ध कला में माहिर होने के लिए प्रसिद्ध होते हैं। जिनकी परंपरा गुरु शंकराचार्य द्वारा की गई थी, जो कि आज भी चल रही है। नागा साधुओं का कपड़ों को लेकर मानना है कि कपड़े वे लोग पहनते हैं जिन लोगों को अपनी सुरक्षा करनी है, हम बाबा हैं। इसलिए हमें सुरक्षा का कोई महत्व नहीं है। नागा साधु का शरीर समय के साथ साथ ऐसा हो जाता है कि इनको किसी मौसम में कोई फर्क नहीं पड़ता है. यह लोग हमेशा ध्यान में लीन रहते हैं। नागा साधुओं को दुनिया से कोई मतलब नहीं होता, न हीं इनका परिवार होता है। इनका परिवार नागा समुदाय के लोग ही होते हैं। नागा पंथ में शामिल होने के लिए जरूरी जानकारी हासिल करने में 6 साल लगते हैं। इस दौरान नए सदस्य एक लंगोट के अलावा कुछ नहीं पहनते। कुम्भ मेले में अंतिम प्रण लेने के बाद लंगोट भी त्याग देते हैं और जीवन भर यूं ही नंगे रहते हैं।
इसके साथ ही नागा सन्यासिन बनने के लिए किसी महिला को पहले 6 से 12 साल तक कठिन ब्रह्मचर्य का पालन करना होता है। इसके बाद गुरु यदि इस बात से संतुष्ट हो जाते हैं कि महिला ब्रह्मचर्य का पालन कर सकती है तो उसे दीक्षा देते हैं। नागा साधु, महिला साध्वी सन्यासिन बनाने से पहले अखाड़े के साधु-संत महिला के घर परिवार और पिछले जीवन की जांच-पड़ताल करते हैं। नागा साधु, महिला साध्वी को भी नागा सन्यासिन बनने से पहले स्वंयं का पिंडदान और तर्पण करना पड़ता है। जिस अखाड़े से महिला साध्वी सन्यास की दीक्षा लेना चाहती है, उसके आचार्य महामंडलेश्वर ही उसे दीक्षा देते हैं। नागा साधु, महिला साध्वी सन्यासिन बनाने से पहले उसका मुंडन किया जाता है और नदी में स्नान करवाते हैं। महिला नागा सन्यासिन पूरा दिन भगवान का जप करती है. सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठना होता है। इसके बाद नित्य कर्मो के बाद शिवजी का जप करती हैं। दोपहर में भोजन करती हैं और फिर से शिवजी का जप करती हैं। शाम को दत्तात्रेय भगवान की पूजा करती हैं और इसके बाद शयन। सिंहस्थ और कुम्भ में नागा साधुओं के साथ ही महिला सन्यासिन भी शाही स्नान करती हैं। अखाड़े में सन्यासिन को भी पूरा सम्मान दिया जाता है। जब महिला नागा सन्यासिन बन जाती हैं तो अखाड़े के सभी साधु-संत इन्हे माता कहकर सम्बोधित करते हैं। सन्यासिन बनने से पहले महिला को यह साबित करना होता है कि उसका परिवार और समाज से कोई मोह नहीं है। वह सिर्फ भगवान की भक्ति करना चाहती है। इस बात की संतुष्टि होने के बाद ही उसे दीक्षा दी जाती है। पुरुष नागा साधु और महिला नागा साधु में फर्क केवल इतना ही है की महिला नागा साधु को एक पीला वस्त्र लपेटकर रखना पड़ता है और यही वस्त्र पहनकर स्नान करना पड़ता है. नग्न स्नान की अनुमति नहीं है, यहां तक की कुम्भ मेले में भी नहीं।
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