जब CM कल्याण सिंह ने खुद मिला दिया DM को फोन!
06 दिसम्बर 92 की कहानी, कन्ट्रोल रूम प्रभारी की जुबानी
ज्ञान सिंह
06 दिसम्बर 1992 का दिन। अयोध्या में दो लाख से ज़्यादा कारसेवकों का जमावड़ा हो चुका था। उस दिन सांकेतिक कारसेवा का कार्यक्रम आयोजित था। सभी संवेदनशील स्थानों पर शांति व्यवस्था बनाए रखने के लिए मजिस्ट्रेटों की तैनाती का काम मेरे जिम्मे था और लगभग 45 मजिस्ट्रेट इस हेतु तैनात किए गए थे, जो अपने काउन्टर पार्ट पुलिस अधिकारियों के साथ यथा स्थान उपस्थित थे। प्रातः लगभग 11 बजे मेरे द्वारा विवादित स्थल और समस्त संवेदनशील स्थानों का भ्रमण किया गया। तत्समय कारसेवकों की भीड़ शांतिपूर्ण तरीक़े से छोटे-छोटे पात्रों में जल एवं बालू आदि लिए हुए निर्धारित स्थल पर शांतिपूर्वक अर्पण कर रही थी और प्रतीकात्मक कारसेवा चल रही थी। 11.30 बजे लगभग मैं फ़ैज़ाबाद वापस लौट आया और ज़िलाधिकारी आवास में निर्मित कन्ट्रोल रूम में अवस्थित हो गया। मेरे साथ एक अन्य सहयोगी अधिकारी शिव श्याम मिश्रा भी थे। लगभग पौने बारह बजे खबर लगी कि आक्रोशित भीड़ द्वारा विवादित ढाँचे का एक गुम्बद ध्वस्त कर दिया गया है। अयोध्या से टेलीफोन, वायरलेस और सभी प्रकार की संचार व्यवस्था पूरी तरह भंग हो चुकी थी और किसी प्रकार संदेशों का आदान-प्रदान या वार्तालाप संभव नहीं रह गया था। उस दिन दिल्ली, लखनऊ और अन्य जगहों से कन्ट्रोल रूम पर महत्वपूर्ण व्यक्तियों के फ़ोन आ रहे थे और वह सभी अयोध्या के बारे में तरह-तरह की जानकारी प्राप्त करना चाहते थे। हम लोग बाहर लॉन में बैठे इसी उधेड़बुन में मशगूल थे कि संचार व्यवस्था भंग हो जाने पर अब अयोध्या से संबंधित जानकारी कैसे प्राप्त हो सकेगी। तभी 12 बजे के आसपास एक अर्दली दौड़ता हुआ आया और बताया कि लखनऊ से होम से फ़ोन आया है। मैंने सोचा कि होम से किसी अधिकारी का फ़ोन होगा। दूसरी तरफ़ से आवाज़ आई, “मैं कल्याण सिंह बोल रहा हूँ।” होम डिपार्टमेंट में मैं किसी कल्याण सिंह से अपरिचित था, मैंने थोड़ा कड़क आवाज़ में पूछा, “कौन कल्याण सिंह बोल रहे हैं ?” उधर से आवाज़ आई, “मैं कल्याण सिंह मुख्यमंत्री बोल रहा हूँ।’ मैंने सुना है कि कुछ शिव सैनिकों के लोग गुम्बद में चढ़ गए हैं और तोड़फोड़ कर रहे हैं?” मुख्यमंत्री जी सीधे फ़ोन पर आ जायेंगे, सामान्यतया ऐसा होता नहीं है। मैंने मान लिया कि अब तो मेरा कल्याण निश्चित है। मैंने अनजाने में ही सही, मुख्यमंत्री जी से अभद्रता से बात की है। जो होगा देखा जायेगा, सोचकर मैंने विनम्रतापूर्वक कहा, “सॉरी सर! पहचानने में चूक हुई।’ सर! अयोध्या से सभी संचार साधन इस समय ध्वस्त हो गए हैं।’ खबर मैंने भी सुनी है। मैं डिटेल्स पता कर आपको जानकारी देता हूँ।” उधर से, “ठीक है आप मुझे पाँच मिनट में बताइये।” अब पाँच मिनट में जानकारी इकट्ठा करना तो किसी सूरत में संभव नहीं था। इसलिए हमने यह सुनिश्चित मान लिया कि अब हमारी नौकरी की रक्षा राम जी ही कर पायेंगे। सायंकाल कल्याण सिंह जी की सरकार बर्खास्त हो गई और डीएम, एसपी सस्पेंड कर दिए गये। राम जी की कृपा से हम बच गए। सुबह पता चला कि मेरा और उमेश तिवारी जी एडीएम का स्थानांतरण किया गया है। उमेश तिवारी जी को तो जाना पड़ा, पर शासन ने मेरा स्थानांतरण भी रद्द कर दिया और मैं आगे दो साल फ़ैज़ाबाद में ही बना रहा। उन्हीं कल्याण सिंह जी के निधन से मन बहुत व्यथित हुआ। अयोध्या के समस्त घटना चक्र की ज़िम्मेदारी उन्होंने स्वयं ले ली थी और इसके लिए दंड भी स्वीकार किया। ऐसे कुशल प्रशासक जिनकी प्रशासनिक हनक भी हो, संवेदनशील भी हों, अपने अधीनस्थों को संरक्षण भी देते हों, एक विरले राजनेता के रूप में सदैव याद किए जाते रहेंगे। उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि ….
(लेखक भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी रहे हैं।)
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