जब बैल चोरी की रिपोर्ट लिखाने पैदल थाने पहुंचे थे प्रधानमंत्री!
जानकी शरण द्विवेदी
आपको सहसा यकीन नहीं होगा, किन्तु है एकदम सत्य। एक बार इस देश का प्रधानमंत्री पैदल चलकर थाने में खुद बैल चोरी की रिपोर्ट लिखाने पहुंचा था। वह केवल यह जानना चाहता था कि थानों में आम नागरिकों के साथ पुलिस कैसा सलूक करती है। दरअसल, यह बात 1979 की है। सायंकाल करीब छह बजे उत्तर प्रदेश के इटावा जिला के उसराहर थाने में मैला कुचैला कुर्ता धोती पहने एक किसान पहुंचा। पुलिस वालों के पूछने पर उसने बताया कि उसे अपने चोरी गए बैलों की रपट लिखानी है। थाने के छोटे दरोगा ने पुलिसिया अंदाज में उससे दो-चार आड़े-टेड़े सवाल पूछे और बिना रपट लिखे किसान को चलता किया। जब वह किसान थाने से जाने लगा, तो एक सिपाही पीछे से आया और बोला, ‘थोड़ा खर्चा पानी दा,े तो रिपोर्ट लिख जाएगी।’ अंततः 35 रुपये लेकर रपट लिखने की बात तय हो गई। थाने के उसी कमरे के बीच में दरोगा की मेज और तीन कुर्सियां लगी थी। एक कोने में लिखिया मुंशी की चौकी थी, जिस पर बैठकर वह लिखा पढ़ी का काम करता था। रपट लिखकर मुंशी ने किसान से पूछा, “बाबा हस्ताक्षर करोगे कि अंगूठा लगाओगे।“ किसान ने हस्ताक्षर करने को कहा तो मुंशी ने रपट लिखी नकल चिक वाला पैड़ दफ़्ती शुदा आगे बढ़ा दिया। किसान ने अंगूठे वाला पैड उठाया तो मुंशी सोच में पढ़ गया कि जब इसने हस्ताक्षर करने को कहा है, तो अंगूठा लगाने की स्याही का पैड क्यों उठा रहा है। किसान ने हस्ताक्षर में नाम लिखा “चौधरी चरण सिंह“ और मैले कुर्ते की जेब से मुहर निकाल के कागज पे ठोंक दी जिस पर लिखा था “प्राइम मिनिस्टर आफ इंडिया“
यह देख कर पहले तो मुंशी उछल गया, फिर दरोगा। और इसके साथ ही थाने में हड़कम्प मच गया। असल में यह मैले कुर्ते वाले बाबा किसान नेता और भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह थे, जो थाने में किसानों की सुनवाई का औचक निरिक्षण करने पहुंचे थे। उन्होंने अपनी कारां का काफिला थाने से थोड़ी दूर पर ही खड़ा करवा दिया था। कुर्ते पर थोड़ा मिट्टी डाल कर उसे गंदा करने के बाद थाने आ गए थे। उसराहर का पूरा थाना निलम्बित कर दिया गया। इस तरह की अफ़वाएं भी उस समय ख़ूब फैली थीं लेकिन सिस्टम एकदम दुरुस्त हो गया था। आज पुनः आवश्यकता है, ऐसे युग पुरुष की व इसी तरह औचक निरीक्षण की। किन्तु अब न उस प्रकार के नेता हैं और न ही वैसा चरित्र। कुछ अधिकारी यदि सिस्टम को ठीक करने की कोशिश करते भी हैं, तो भ्रष्ट तंत्र उन्हें चुप रहने के लिए मजबूर कर देता है अथवा उनका तबादला कर दिया जाता है।