ग्राम सभा नंदौरी और मजरा भरवलिया के बीच बह रही राप्ती नदी दोनों गांव के बीच दीवार बनकर खड़ी

रोहित कुमार गुप्ता

उतरौला/बलरामपुर
तहसील क्षेत्र के ग्राम सभा नंदौरी और उसके मजरा भरवलिया के बीच बह रही राप्ती नदी दोनों गांव के बीच दीवार बनकर खड़ी है। भरवालिया वासियों ने नदी पार करने के लिए अपने निजी खर्चे से नाव की व्यवस्था कर रखी है। आवागमन के लिए रस्सी एवं लग्गे के सहारे नाव से रोज नदी पार करना पड़ता है। तहसील, कचहरी, स्कूल ,कालेज, अस्पताल पहुंचने के लिए यहां के लोग रोज अपनी जान जोखिम में डालकर नदी पार करते हैं। नदी पार करने के बाद इन्हें लगभग एक से दो किलोमीटर कच्चे, उबड़ ,खाबड़ रास्तों से होकर गुजरना पड़ता है। राशन कार्ड धारकों को राशन लेने के लिए नदी पार कर नंदौरी जाना पड़ता है।
गांव नदी कटान के मुहाने पर खड़ा हुआ है। अगर नदी ने इस साल कटान किया तो गांव के कई घर नदी में समा सकते हैं। पिछले वर्ष कटान को रोकने के लिए नदी पर ठोकर लगाने का काम शुरू हुआ था। थोड़ा सा ठोकर लगाने के बाद काम छोड़ दिया गया।
सबसे अधिक समस्या गर्भवती महिलाओं एवं शिशुओं को होती है। टीकाकरण व उपचार के लिए नाव से नदी पार कर कच्चे, उबड़ खाबड़ रास्तों से होते हुए नंदोरी एएनम सेंटर पहुंचना होता है। एएनम भी नदी पार कर गांव में महिलाओं और बच्चों का हाल-चाल जानने पहुंचा करती हैं। गांव में मूलभूत सुविधाओं का टोटा है। विकास के नाम पर कोई काम हुआ ही नहीं। अधिकतर सड़कें कच्ची या बहुत पुरानी खड़ंजा लगी हुई हैं। कच्चे फूस के मकानों में रह रहे मजलूमुन निशा, मुन्ना बेगम, मोबीन, तौफीक, इश्तियाक, इसराइल, तकदीरुन, नसीम आरा, सबरुननिशा, रफीकुननिशा, जुगरा बानो, हदीकुननिशा आदि पात्र परिवारों को आवास योजना, उज्जवला गैस आदि योजनाओं का लाभ नसीब नहीं हुआ।
लगभग 3000 आबादी वाले भरवलिया गांव में प्राथमिक व जूनियर हाई स्कूल बना हुआ है।
ग्रामवासी सलीमुउल्ला खान कहते हैं कि इस गंभीर समस्या का सामना पूर्वजों से चला आ रहा है। नदी पर स्थाई या अस्थाई पीपा पुल बनाने की मांग करते तमाम ग्रामवासी परलोक सिधार गए। लेकिन समस्या जस की तस बनी हुई है।
शबीउर्रहमान कहते हैं इस आधुनिक युग में भी हमारे ग्राम सभा के लोग लकड़ी की पुरानी नावं से नदी पार करने को मजबूर हैं। कई बार जनप्रतिनिधियों से नदी पर पक्का या अस्थाई पुल बनाने की मांग की गई लेकिन किसी जनप्रतिनिधि ने ठोस प्रयास नहीं किया।
कादर खान कहते हैं कि हमारा गांव अधिकारियों एवं जनप्रतिनिधियों की उपेक्षा का शिकार होकर रह गया है। चुनाव के दौरान तमाम नेता आते हैं और लंबे चौड़े खोखले वादे कर चले जाते हैं।
मुरतुजा कहते हैं कि सबसे अधिक समस्या बाढ़ के समय होती है जब नदी से नाव हट जाती है। ग्राम वासियों को तहसील, कचहरी, अस्पताल, ब्लॉक मुख्यालय पहुंचने के लिए 30 किलोमीटर का लंबा सफर तय करना पड़ता है।
शमशेर कहते हैं की नदी पर पुल ना होने के कारण गांव में बारात आने या ले जाने में बेहद दुश्वारियां का सामना करना पड़ता है। शाम के समय नाव का संचालन बंद हो जाता है इसलिए शाम होने से पहले आए हुए नाते रिश्तेदारों को घर भेजना पड़ता है। और हम लोगों को भी संध्या से पहले घर पहुंचना होता है।
ग्रामवासी व समाजसेवी कृष्ण कुमार गुप्ता कहते हैं कि नदी पर पुल बनवाने के लिए सांसद एवं विधायक से प्रयास किया जा रहा है। लोकसभा चुनाव के बाद ग्रामीणों के साथ जनप्रतिनिधियों से इस संबंध में मुलाकात कर वार्ता की जाएगी। आशा है कि जनप्रतिनिधि हमारी समस्या को गंभीरता से लेकर नदी पर पुल बनवाने कराने का प्रयास करेंगे।

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