क्यों और कहां पर किया था मां सीता ने श्राद्ध कर्म?
पं. अतुल शास्त्री
पुत्राभावे वधु कूर्यात, भार्याभावे च सोदनः। शिष्यों वा ब्राह्म्णः सपिण्डो वा समाचरेत।। गरुड़ पुराण में कहा गया है कि श्राद्धपक्ष में किया गया हर तर्पण, पितरों के स्वर्गारोहण के लिए एक-एक सीढ़ी बनाता है। बाल्मिकी रामायण में भी सीता द्वारा पिंडदान देकर दशरथ की आत्मा को मोक्ष मिलने का संदर्भ आता है। पौराणिक कथा के अनुसार, वनवास के दौरान भगवान राम, लक्ष्मण और सीता पितृ पक्ष के दौरान श्राद्ध करने के लिए गया धाम पहुंचे। वहां श्राद्ध कर्म के लिए आवश्यक सामग्री जुटाने हेतु राम और लक्ष्मण नगर की ओर चल दिए। उधर दोपहर हो गई थी। पिंडदान का समय निकलता जा रहा था और सीता जी की व्यग्रता बढती जा रही थी। अपराह्न में तभी दशरथ की आत्मा ने पिंडदान की मांग कर दी। गया जी के आगे फाल्गू नदी पर अकेली सीता जी असमंजस में पड़ गईं। उन्होंने नदी के साथ वटवृक्ष, केतकी के फूल और गाय को साक्षी मानकर बालू का पिंड बनाकर स्वर्गीय राजा दशरथ के निमित्त पिंडदान दे दिया। थोड़ी देर में भगवान राम और लक्ष्मण लौटे तो उन्होंने कहा कि समय निकल जाने के कारण मैंने स्वयं पिंडदान कर दिया। बिना सामग्री के पिंडदान कैसे हो सकता है? इसके लिए राम ने सीता से प्रमाण मांगा। तब सीता जी ने कहा कि यह फाल्गू नदी की रेत, केतकी के फूल, गाय और वटवृक्ष मेरे द्वारा किए गए श्राद्धकर्म की गवाही दे सकते हैं। इतने में फाल्गू नदी, गाय और केतकी के फूल तीनों इस बात से मुकर गए. सिर्फ वटवृक्ष ने सही बात कही। तब सीता जी ने दशरथ का ध्यान करके उनसे ही गवाही देने की प्रार्थना की। दशरथ जी ने सीता जी की प्रार्थना स्वीकार कर घोषणा की कि सीता ने ही मुझे पिंडदान दिया। इस पर राम आश्वस्त हुए लेकिन तीनों गवाहों द्वारा झूठ बोलने पर सीता जी ने उनको क्रोधित होकर श्राप दिया कि फाल्गू नदी! जा तू सिर्फ नाम की नदी रहेगी। तुझमें पानी नहीं रहेगा। इस कारण फाल्गू नदी आज भी गया में सूखी रहती है। गाय को श्राप दिया कि तू पूज्य होकर भी लोगों का जूठा खाएगी। केतकी के फूल को श्राप दिया कि तुझे पूजा में कभी नहीं चढाया जाएगा। वट वृक्ष को सीता जी का आर्शीवाद मिला कि उसे लंबी आयु प्राप्त होगी और वह दूसरों को छाया प्रदान करेगा तथा पतिव्रता स्त्री तेरा स्मरण करके अपने पति की दीर्घायु की कामना करेंगी। यही कारण है कि गाय को आज भी जूठा खाना पडता है। केतकी के फूल को पूजा पाठ में वर्जित रखा गया है और फाल्गू नदी के तट पर सीताकुंड में पानी के अभाव में आज भी सिर्फ बालू या रेत से पिंडदान दिया जाता है।
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