कोर्ट ने पूछा-अधिकारियों पर अभियोग चलाने की अनुमति क्यों नहीं दे रही सरकार
स्वच्छ गंगा मिशन को पलीता लगा रहे लापरवाह अधिकारी
कोर्ट ने गंगा मैली करने वाले अधिकारियों की जवाबदेही तय करने का दिया निर्देश
प्रयागराज(हि.स.)। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से पूछा है कि वह स्वच्छ गंगा मिशन को पलीता लगा रहे लापरवाह अधिकारियों के खिलाफ अभियोग चलाने की अनुमति क्यो नहीं दे रही है। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने 15 मई 18 के पत्र से राज्य सरकार से कानपुर नगर के कुछ अधिकारियों के खिलाफ कर्तव्य निभाने में लापरवाही बरतने के लिए अभियोग चलाने की अनुमति मांगी है।
मेसर्स तन्नर्स इंडिया की याचिका की सुनवाई न्यायमूर्ति एम एन भंडारी तथा न्यायमूर्ति आर.आर अग्रवाल की खंडपीठ कर रही है। कोर्ट ने कहा है कि अधिकारियों की जवाबदेही तय किया जाना हमेशा के लिए उचित कदम है। ऐसे मे लापरवाह अधिकारियों के खिलाफ अभियोग चलाने की अनुमति न देने का उचित कारण नहीं है।
इससे पहले कोर्ट ने उप्र जल निगम, प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड व जिलाधिकारी कानपुर नगर के परस्पर विरोधाभाषी हलफनामे दाखिल करने पर नाराजगी प्रकट की थी और प्रबंध निदेशक जल निगम, सदस्य सचिव प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड व जिलाधिकारी को बेहतर हलफनामे के साथ तलब किया था और कहा था कि नालो का गंदा पानी बिना शोधित सीधे गंगा मे जा रहा है। ऐसी ही स्थिति रही तो कोर्ट अधिकारियों के वेतन रोकने पर विचार करेगी।
कोर्ट के निर्देश पर अधिकारी पेश हुए। बोर्ड ने हलफनामा दाखिल किया। अपर महाधिवक्ता मनीष गोयल ने जल निगम की तरफ से हलफनामा दाखिल करने के लिए दो दिन का समय मांगा। इस पर याचिका सुनवाई के लिए 21 जनवरी को पेश करने का निर्देश दिया गया है।
कोर्ट ने कहा कि कानपुर में 175 चर्म उद्योग चालू है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि एसटीपी की शोधन क्षमता जब तक न बढ़े तब तक नयी टेनरी न खोली जाय। याची अधिवक्ता उदय नंदन व वरिष्ठ अधिवक्ता शशि नंदन का दावा है कि कानपुर नगर में 400 टेनरी (चर्म उद्योग) चल रहे हैं। जब कि प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड का कहना है कि 271 टेनरी ही चालू है। कोर्ट ने कहा कि इसके सत्यापन की जरूरत है। इसलिए टेक्नोक्रेट व वकीलों की निगरानी टीम बनाकर मानीटरिंग कराया जाना चाहिए।