कोर्ट कचहरी में विजय दिलाती है मां सिद्धिदात्री
पंडित अतुल शास्त्री
नवरात्रि का नौवां दिन देवी सिद्धिदात्री को समर्पित है। यह माँ आदि शक्ति का नौवां और अंतिम रूप है। आठ सिद्धियों को उत्पन्न करने वाली इन देवी की पूजा से पारिवारिक सुखों में वृद्धि होती है और माता अपने भक्तों पर कोई विपदा नहीं आने देती हैं। मां का ज्ञानी रूप माँ दुर्गा का नौंवा अर्थात सिद्धि दात्री स्वरूप है। इनके नाम में ’सिद्धिदात्री’ में निहित आठ सिद्धियाँ है अनिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, लिषित्वा और वशित्व। ऐसी मान्यता है कि मां की आराधना करने वालों को मां यह सभी सिद्धियाँ देती है। माना जाता है कि देवीपुराण में भगवान शिव को यह सभी सिद्धियाँ महाशक्ति की पूजा करने से मिली हैं। उनकी कृतज्ञता से भगवान शिव का आधा शरीर देवी का बन गया था और वह अर्धनारीश्वर के नाम से प्रसिद्ध हो गए। यही वजह है कि देवी दुर्गा के इस अंतिम स्वरुप को नव दुर्गाओं में सबसे श्रेष्ठ और मोक्ष प्रदान करने वाला माना जाता है। यह श्वेत वस्त्रों में महाज्ञान और मधुर स्वर से भक्तों को सम्मोहित करती है। यह देवी भगवान विष्णु की अर्धांगिनी हैं और नवरात्रों की अधिष्ठात्री भी हैं। माँ सिद्धिदात्री को ही जगत को संचालित करने वाली देवी कहा गया है। माँ सिद्धिदात्री चार भुजाओं वाली हैं। इनका वाहन सिंह है। यह कमल पुष्प पर भी आसीन होती हैं। इनकी दाहिनी तरफ के नीचे वाले हाथ में कमल पुष्प है।
नवदुर्गा के स्वरूप में साक्षात पार्वती और भगवती विघ्नविनाशक गणपति को भी सम्मानित किया जाता है। मान्यता है कि नवें दिन जो भक्त सिद्धिदात्री की पूजा उपासना के साथ नवाहन का प्रसाद, नवरस युक्त भोजन तथा नौ प्रकार के फल-फूल आदि का अर्पण करके नवरात्र का समापन करते हैं, उनको इस संसार में धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति होती है। अतः अंतिम दिन भक्तों को पूजा के समय अपना सारा ध्यान निर्वाण चक्र जो कि हमारे कपाल के मध्य स्थित होता है, वहां लगाना चाहिए। ऐसा करने पर देवी की कृपा से इस चक्र से संबंधित शक्तियां स्वतः ही भक्त को प्राप्त हो जाती है। नवमी तिथि पर माँ को विभिन्न प्रकार के अनाजों का भोग लगाएं जैसे- हलवा, चना-पूरी, खीर और पुए और फिर उसे गरीबों को दान करें। इससे जीवन में हर सुख-शांति मिलती है। माँ सिद्धीदात्री के पूजन में भी आप हल्के नीले रंग का उपयोग कर सकते हैं। चंद्रमा की पूजा के लिए यह सर्वोत्तम दिन है। यह मां का प्रचंड रूप है, जिसमे शत्रु विनाश करने की अदम्य ऊर्जा समाहित होती है और इस स्वरूप को तो स्वयं त्रिमूर्ति यानी की ब्रह्मा, विष्णु, महेश भी पूजते हैं। इसका अभिप्राय यह हुआ कि यदि यह माता अपने पात्र से प्रसन्न हो जाती हैं तो शत्रु उनके इर्द-गिर्द नहीं टिकते हैं। साथ ही उसको त्रिमूर्तियों की ऊर्जा भी प्राप्त होती है। जातक की कुंडली का छठा भाव और ग्यारहवां भाव इनकी पूजा से सशक्त होता है। लेकिन साथ-साथ तृतीय भाव में भी जबरदस्त ऊर्जा आती है। शत्रु पक्ष परेशान कर रहें हो, कोर्ट-केस हो तो माता के इस स्वरूप किए पूजा करने से विशेष लाभ मिलता है। यद्यपि मां का यह स्वरूप एक दिन की अर्चना से प्रसन्न मुश्किल से ही होता है। लेकिन फिर भी इस दिन यदि इन्हें वर्ष भर पूजने का संकल्प भर ले लिया तो शत्रु पक्ष से व्यक्ति खुद को निश्चिन्त समझे। पूजन विधि को समझाते हुए उन्होंने बताया कि सर्वप्रथम शुद्ध होकर मां दुर्गा की पूजा अर्चना करें। मां के वंदना मंत्र का उच्चारण करें। मां को आज के दिन हलवा पूरी का भोग लगायें। आज के दिन हवन अवश्य करें। माता के मंत्र ’ऊं ऐं ह््रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे’ या फिर ग्रहों के बीज मंत्र या फिर किसी कामना विशेष को लेकर संबंधित देवी-देवता के मंत्र का जाप करें। चाहें तो विजय की कामना करते हुए श्रीरामचरित मानस की किसी चौपाई से भी हवन कर सकते हैं। माँ दुर्गा के सिद्धिदात्री स्वरूप की उपासना करने के लिए शास्त्रों में ‘या देवी सर्वभूतेषु लक्ष्मी रूपेण संस्थिता। नमस्तसयै, नमस्तसयै, नमस्तसयै नमो नमः’ मंत्र की साधना का वर्णन है।
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