कोरोना के बिना लक्षण वाले मरीजों को जांच के लिए डॉक्टर के पर्चे की जरूरत नहीं : दिल्ली हाईकोर्ट
नई दिल्ली। दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि जिन लोगों को कोरोना के लक्षण नहीं हैं। उन्हें दिल्ली में जांच कराने के लिए डॉक्टर के पर्चे की जरूरत नहीं है लेकिन दिल्ली के पते वाला आधार कार्ड दिखाना जरूरी है। जस्टिस हीमा कोहली की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि जिन लोगों को अपना टेस्ट कराना है उन्हें आईसीएमआर के फार्म भरना जरूरी होगा।
कोर्ट ने कहा कि दिल्ली सरकार रोजाना 14 हजार लोगों का जो टेस्ट करती है उसमें दो हजार बिना लक्षण वाले मरीजों का टेस्ट किया जाएगा। कोर्ट ने कहा कि पिछले कुछ दिनों में कोरोना के मामलों में तेजी आई है। हाईकोर्ट ने दिल्ली सरकार को निर्देश दिया कि वो दिल्ली के प्रमुख मेट्रो स्टेशनों के पास टेस्टिंग सेंटर स्थापित करें ताकि यात्रियों को अपना टेस्ट कराने में आसानी हो।
पिछले 31 अगस्त को हाईकोर्ट ने दिल्ली सरकार को निर्देश दिया था कि जब अनलॉक-4 के बाद जब एक राज्य से दूसरे राज्यों में लोगों का आवागमन शुरु हो गया है तो वे प्रवासी मजदूरों समेत दिल्ली के बाहर से आनेवाले लोगों की टेस्टिंग के लिए बस स्टाप पर टेस्टिंग सेंटर स्थापित करे। सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने आईसीएमआर से पूछा था कि वो ज्यादा टेस्टिंग को प्रोत्साहन क्यों नहीं दे रहे हैं। तब आईसीएमआर ने कहा था कि राज्य सरकार चाहे तो वो अपनी नीति बना सकती है। हाईकोर्ट ने कहा था कि दिल्ली में कोरोना के मामले फिर से धीरे-धीरे बढ़ रहे हैं। साठ फीसदी आरटी-पीसीआर टेस्ट की क्षमता का पूरा उपयोग भी नहीं हो रहा है। दिल्ली एक दिन में 14 हजार टेस्ट कर सकता है लेकिन रोजाना केवल 4 से 6 हजार टेस्टिंग ही की जा रही है। उसके बाद हाईकोर्ट ने दिल्ली सरकार को निर्देश दिया था कि वे बिना लक्षणों मरीजों की टेस्टिंग के लिए ताजा एडवाइजरी जारी करे।
पिछले 19 अगस्त को सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च(आईसीएमआर) और दिल्ली सरकार को निर्देश दिया था कि जो लोग एक राज्य से दूसरे राज्य में जाना चाहते हैं उनकी आरटी-पीसीआर टेस्टिंग पर विचार करें। कोर्ट ने कहा था कि जो लोग दूसरे राज्यों में जाना चाहते हैं उन्हें कोरोना का टेस्ट नहीं होने की वजह से प्रवेश नहीं करने दिया जाता है। ऐसा करना ट्रैवल करने के अधिकार का उल्लंघन है। सुनवाई के दौरान दिल्ली सरकार ने कहा था कि नेशनल सेंटर फॉर डिसीज कंट्रोल के मुताबिक दिल्ली सरकार की रणनीति ठीक है और उसमें कोई परिवर्तन करने की कोई जरुरत नहीं है। तब कोर्ट ने दिल्ली सरकार से कहा था कि जिन्हें कोई लक्षण नहीं हैं और वे दूसरे राज्य में जाना चाहते हैं उनकी टेस्टिंग करने की रणनीति पर विचार करें। कोर्ट ने कहा था कि जो प्रवासी मजदूर वापस आ रहे हैं उनकी टेस्टिंग के लिए बार्डर पर या औद्योगिक इलाकों में कैंप लगाए जाएं ताकि कोरोना संक्रमितों की पहचान हो सके। प्रवासी मजदूरों के लिए आसान तरीका अपनाया जाए ताकि कोरोना का दूसरा दौर नहीं आए। कोर्ट ने आईसीएमआर को निर्देश दिया था कि वो दिल्ली में कोरोना के संक्रमण पर अपना आकलन कोर्ट के सामने पेश करे।
पिछले 6 जुलाई सुनवाई के दौरान दिल्ली सरकार की ओर से वकील सत्यकाम ने कहा था कि दिल्ली में हेल्थकेयर और दूसरी सुविधाओं में सुधार के लिए पर्याप्त कदम उठाए गए हैं। दिल्ली सरकार ने कहा था कि हाईकोर्ट की दूसरी बेंच ने कोरोना को लेकर दायर याचिकाओं का ये कहते हुए निस्तारण कर दिया है कि दिल्ली सरकार ने कोरोना से निपटने के लिए पर्याप्त कदम उठाए हैं। इसलिए यह याचिका अब सुनवाई योग्य नहीं है। तब कोर्ट ने कहा था कि पहले की याचिकाएं कोरोना संक्रमित मरीजों के इलाज, बेड की उपलब्धता, पीपीई किट, एंबुलेंस और दूसरी सुविधाओं को लेकर था।
याचिका वकील राकेश मल्होत्रा ने दायर किया है। याचिका में निजी और सरकारी अस्पतालों और लैब्स में कोरोना की पर्याप्त टेस्टिंग करने का दिशानिर्देश जारी करने की मांग की गई है। सुनवाई के दौरान राकेश मल्होत्रा ने कोर्ट से कहा था कि दिल्ली के निजी अस्पतालों को भी कोरोना अस्पताल घोषित किया गया है। इन अस्पतालों को भी लक्षणों वाले मरीजों के साथ-साथ बिना लक्षणों वाले मरीजों का भी टेस्ट करने का दिशानिर्देश जारी करने की मांग की गई है।