कोरोना का दंश: इमाम हुसैन का तीजा, नहीं उठे जुलूस
वाराणसी(एजेंसी)। वैश्विक महामारी कोरोना ने इस वर्ष लगभग सभी पर्वों की खुशियों पर ग्रहण लगाने के लिए सैकड़ों साल पुरानी रवायत को भी स्थगित करने के लिए विवश कर दिया है। मंगलवार शाम को कोरोना का दंश एक बार फिर 12वीं मोहर्रम को दिखा। इमाम हुसैन की शहादत के तीजे के सिलसिले से उठने वाले कोई भी जुलूस कोविड प्रोटोकाल के पालन में नही उठ पाया।
सुन्नी समुदाय के फन ए सिपहगिरि के जुलूस और न ही शिया हजरात के मातम के जुलूस उठ नहीं पाये। शिया जामा मस्जिद के प्रवक्ता फरमान हैदर ने बताया कि शारीरिक दूरी के नियमों का पालन कर इमाम हुसैन के रौजों पर कुछ ही लोगों ने जाकर नज्र और मातम किया। इनमें दरगाह के फातमान, सदर इमामबाड़े और रामनगर के रौजे अजादारों से खाली ही रहे । उन्होंने बताया कि इस साल लाखों की भीड़ होने वाले जुलूस की जगह 2 से 4 लोग ही रौजों पर रहे। शहर के अजादारों ने मोहर्रम पर प्रशासन की सभी गाइडलाइन्स का पूर्ण रूप से अनुपालन किया। इन 12 दिनों में वाराणसी के हर इलाके ने प्रशासन के साथ पूरे सामंजस्य के साथ काम किया और अपनी सैकड़ों वर्ष पुरानी रिवायतों को बहुत छोटे रूप में तब्दील किया। उन्होंने बताया कि तीजे के रोज बहुत से घरों में से अजाखाने ठंडे कर दिए जाते हैं, हालांकि कुछ घरों में ये अजाखाने इमाम के चालीसवें तक और कुछ में साथी तक रखे जाते हैं ।
शिया जामा मस्जिद के प्रवक्ता फरमान हैदर ने बताया कि 11 वी मोहर्रम को भी लुटे हुए काफिले का जुलूस स्थगित करना पड़ा। कोरोना गाइडलाइन्स के अनुपालन करने की वजह से नहीं उठाया गया। उन्होंने बताया कि जुलूस से पहले होने वाली मजलिस भी कम लोगों के बीच पूरी की गई। मजलिस को खिताब हरदिल मौलाना अकील हसन ने किया। उसके बाद हाजी फरमान हैदर, शुजात हुसैन, सरफराज हुसैन तथा समर शिवालवी ने किया। मर्दानी मजलिस का आयोजन मुर्तुजा जाफरी, जीशान जाफरी ने किया। मर्दानी मजलिस के पश्चात औरतों की मजलिस हुई। जिसको नुजहत फरमान ने खिताब किया, नुसरत फातिमा, वाजिहा ने नौहा ख्वानी की।
बताते चलें कि लुटे हुए काफिले का जुलूस उस काफिले की याद में उठाया जाता है जो कि कर्बला से 11 मोहर्रम निकल था। जब 10 मोहर्रम को हुसैन के काफिले के सभी जंग के लायक मर्द शहीद हो गए तो इस काफिले की अगुवाई इमाम हुसैन की बहन जनाब के जैनब ने और उनके बीमार बेटे हजरत आबिद ने की। इस लुटे हुए काफिले को कर्बला से कूफा और कूफा से सीरिया के 1000 मील से अधिक का सफर तय कराया गया। इस सफर में हुसैन के काफिले के सभी बच्चे शहीद हो गए, सिर्फ एक बच्चा जनाब बाकिर बचे जो कि बाद में शिया इस्लाम के पांचवें इमाम बने।