काशी नगरी आदिशक्ति की आराधना में हुई लीन, पहले दिन मां शैलपुत्री के दरबार में उमड़े श्रद्धालु

– आधीरात से ही दरबार में पहुंचने लगे थे श्रद्धालु, अन्य देवी मंदिरों में भी श्रद्धालुओं के जयकारों से गूंज रहें, घरों और मंदिरों में कलश स्थापना

वाराणसी (हि.स.)। शारदीय नवरात्र के पहले दिन (आश्विन शुक्ल प्रतिपदा तिथि) सोमवार से काशी पुराधिपति की नगरी मातृशक्ति आराधना में लीन हो गई है। नवरात्र के पहले दिन परम्परानुसार श्रद्धालु नर-नारियों ने अलईपुर स्थित आदिशक्ति मां शैलपुत्री के दरबार में हाजिरी लगाई। वैश्विक महामारी कोविड के चलते पूरे दो साल बाद माता के आंगन में झोली फैलाने आये श्रद्धालु मां के दिव्य स्वरूप का दर्शन कर आह्लादित दिखे। दर्शन पूजन के बाद लोगों ने मातारानी से घर परिवार और देश में सुख-शांति की कामना की।

दरबार में लोग आधीरात के बाद सेे ही पहुंचने लगे। श्रद्धालु माता रानी के प्रति श्रद्धा का भाव दिखाते कड़ी सुरक्षा के बीच बैरिकेडिंग में कतारबद्ध होकर अपनी बारी का इन्तजार मां का गगनभेदी जयकारा लगाकर करते रहें। मंदिर में आये श्रद्धालुओं के चलते आसपास मेले जैसा दृश्य नजर आ रहा था। मंदिर के आस-पास पूजा साम्रगी, नारियल, चुनरी, अड़हुल की अस्थाई दुकानों पर महिलाओं की भीड़ पूजन सामग्री खरीदने के लिए जुटी थी।

शारदीय नवरात्र के पहले दिन मां दुर्गा के प्रथम स्वरूप शैलपुत्री के दर्शन की धार्मिक मान्यता है। पर्वतराज हिमालय के यहां पुत्री रूप में उत्पन्न होने के कारण इनका नाम शैलपुत्री पड़ा था। पर्वतराज हिमालय शक्ति, दृढ़ता, आधार व स्थिरता का प्रतीक है। मां शैलपुत्री को अखंड सौभाग्य का प्रतीक भी है। माना जाता है कि मां दुर्गा ने देवासुर संग्राम में प्रथम दिन शैलपुत्री का रूप धारण कर असुरों का संहार किया था। भगवती का वाहन वृषभ, दाहिने हाथ में त्रिशूल और बायें हाथ में कमल सुशोभित है। अपने पूर्व जन्म में ये प्रजापति दक्ष की कन्या के रूप में प्रकट हुई थीं। तब इनका नाम सती था। इनका विवाह भगवान शंकर से हुआ था। एक बार वह अपने पिता के यज्ञ में गई तो वहां अपने पति भगवान शंकर के अपमान को सह न सकीं। उन्होंने वहीं अपने शरीर को योगाग्नि में भस्म कर दिया। अगले जन्म में शैलराज हिमालय की पुत्री के रूप में जन्म लिया और शैलपुत्री नाम से पूजनीय व वंदनीय हुई। इस जन्म में भी मां शैलपुत्री महादेव की ही अर्धांगिनी बनीं। आदि शक्ति शैलपुत्री अनन्त शक्तियों की स्वामिनी है। योगी और श्रेष्ठ साधक नवरात्र के पहले दिन माता के इस स्वरूप की उपासना करते हैं। यहीं से उनकी योग साधना प्रारम्भ होती है।

घरों में चंडी और देवी पाठ की गूंज

शारदीय नवरात्र के पहले दिन नौ दिन तक आदि शक्ति के भक्ति और आराधना का संकल्प लेकर अभिजीत मुहुर्त में घरों में कलश स्थापना किया गया। घरों और देवी मंदिरों में अलसुबह से ही दुर्गा चालीसा स्तुति,सप्तशती चण्डी पाठ, आरती, मंत्र फिजाओं में गूंजने लगे। सूर्य की पहली उजास किरणों के लालिमा में देवी के जयकारा, घंट घड़ियाल बजने, चंहुओर धूप अगरबत्ती, हवन से निकलने वाले धुएं से पूरा माहौल आध्यात्मिक दिखने लगा है। नवरात्र के पहले दिन दुर्गाकुण्ड स्थित भगवती कूष्माण्डा, महालक्ष्मी मंदिर लक्ष्मीकुण्ड लक्सा सहित सभी प्रमुख और छोटे-बड़े देवी मंदिरों में दर्शन पूजन के लिए श्रद्धालु जुटे रहें। लोगों ने दरबार में नारियल चुनरी मां को अर्पित कर सुख समृद्धि की कामना की।

शारदीय नवरात्र में इस बार एक भी तिथि का क्षय नही

शारदीय नवरात्र में लम्बे समय बाद एक भी तिथि का क्षय न होने से अबकी नवरात्र पूरे नौ दिनों का है। लेकिन चार अक्टूबर को दोपहर 1.30 बजे तक ही नवमी है। इसी अवधि में दुर्गा सप्तशती पाठ, हवन व कन्या पूजन किया जाएगा। चार अक्टूबर को अपराह्न कालिक दशमी मिलने से विजयदशमी भी इसी दिन मनाई जाएगी और नीलकंठ दर्शन, शमी पूजन, अपराजिता पूजन व जयंती ग्रहण आदि अनुष्ठान संपन्न होंगे। इस बार देवी का आगमन हाथी पर हुआ है और प्रस्थान भी हाथी पर हो रहा है जो देश और समाज के लिए बेहद शुभदायक है।

श्रीधर

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