करवा चौथ पर सुहागिनों ने धूमधाम से किया व्रत, चांद देखकर खोला व्रत

रोहित कुमार गुप्ता
उतरौला (बलरामपुर)
उतरौला बाजार सहित आसपास के ग्रामीण इलाकों में करवा चौथ का त्योहार बड़ी धूमधाम से मनाया गया। इस पर्व पर सुहागिन महिलाओं ने पूरे दिन निर्जला व्रत रखकर अपने पति की लंबी उम्र और सुख-समृद्धि की कामना की। करवा चौथ का यह पर्व सुहागिनों के लिए विशेष महत्व रखता है, और इस दौरान वे अपने पतियों की सलामती और दीर्घायु के लिए प्रार्थना करती हैं।
सुबह के समय महिलाओं ने जल्दी उठकर सबसे पहले सरगी ग्रहण की। सरगी में फल, मिठाई, और अन्य पौष्टिक पदार्थ शामिल होते हैं, जिसे महिलाएं अपने व्रत की शुरुआत से पहले खाती हैं। इसके बाद उन्होंने पूरे दिन निर्जला व्रत रखा और शाम के समय करवाचौथ की कथा सुनने के लिए मंदिरों का रुख किया।

करवा चौथ की पौराणिक कथाएं और महत्व

करवा चौथ का पर्व भारतीय परंपरा और संस्कृति में गहरी आस्था और भक्ति का प्रतीक है। इसके पीछे कई पौराणिक कथाएं जुड़ी हुई हैं, जो इस त्योहार के महत्व को दर्शाती हैं। इनमें से कुछ प्रमुख कथाएं इस प्रकार हैं:

वीरवती की कथा
प्राचीन समय में वीरवती नाम की एक सुंदर और धर्मपरायण महिला थी, जिसने अपने पहले करवा चौथ के व्रत पर अपने पति की लंबी उम्र के लिए उपवास रखा। पूरे दिन निर्जला उपवास रखने के कारण वीरवती बहुत कमजोर हो गई और उसकी स्थिति देख उसके भाईयों ने उसे चांद निकलने का झूठा भ्रम दिया ताकि वह व्रत तोड़ सके। जैसे ही वीरवती ने व्रत तोड़ा, उसे खबर मिली कि उसके पति की मृत्यु हो गई है। उसने अपने पति की सलामती के लिए पुनः तपस्या की और मां पार्वती की कृपा से उसके पति को पुनर्जीवित किया गया। तभी से करवा चौथ का व्रत एक सच्ची भक्ति और प्रेम का प्रतीक माना जाता है।

सत्यवान और सावित्री की कथा

सत्यवान और सावित्री की कथा भी करवा चौथ से जुड़ी हुई है। जब सत्यवान की मृत्यु हो गई, तो सावित्री ने यमराज से अपने पति के प्राण वापस मांगे। उसकी सच्ची भक्ति और समर्पण को देख यमराज ने सत्यवान को पुनर्जीवित कर दिया। यह कथा सुहागिनों को यह सिखाती है कि सच्चे प्रेम और भक्ति से भगवान को भी प्रसन्न किया जा सकता है।

महिलाओं ने मिट्टी के बने करवा को सुहागिनों द्वारा बदला और विधिपूर्वक उसकी पूजा-अर्चना की। शाम के समय महिलाएं मंदिरों में इकट्ठा हुईं और करवा चौथ की कथा सुनकर पति की लंबी उम्र की प्रार्थना की। जब रात को चांद निकला, तो सुहागिनों ने चांद को छलनी से देखा और करवे के पानी से अर्घ्य देकर अपने व्रत का पारण किया। इसके बाद ही उन्होंने जल ग्रहण किया और अपने पति के हाथ से भोजन ग्रहण कर व्रत पूरा किया।
करवा चौथ केवल एक धार्मिक व्रत ही नहीं, बल्कि एक ऐसा पर्व है, जो पति-पत्नी के बीच के रिश्ते को और भी मजबूत बनाता है। इस दिन महिलाएं अपने पति की दीर्घायु और सुख-समृद्धि के लिए भगवान की पूजा करती हैं। यह पर्व न केवल उनके आपसी प्रेम को बढ़ाता है, बल्कि परिवार के बीच के रिश्तों को भी मजबूत करता है।
उतरौला और इसके आसपास के इलाकों में करवा चौथ का यह त्योहार बड़े उल्लास और श्रद्धा के साथ मनाया गया, जहां महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और परिवार की खुशहाली के लिए प्रार्थना करती नजर आईं।

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